लिवर हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है जो डाइजेशन, मेटाबोलिज्म, हार्मोन्स प्रोडक्शन और टॉक्सिन्स को हटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन कई बार यह अंग फैटी लिवर जैसी समस्याओं का शिकार बन जाता है जिसका परिणाम लिवर सिरोसिस और अंततः लिवर फेलियर हो सकता है। इसी विषय पर डॉक्टरों को प्रशिक्षण देनें के लिए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) और गट क्लब इंदौर द्वारा इंदौर के सयाजी होटल में रविवार 14 अप्रैल 2024 को (सीएमई) का आयोजन किया गया। सीएमई गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट, हेपेटोलॉजिस्ट, प्राथमिक चिकित्सकों और फैटी लिवर रोग के क्षेत्र में रुचि रखने वाले अन्य चिकित्सकों के लिए अत्यंत लाभदायक रहा जहाँ फैटी लिवर रोग का वैश्विक परिदृश्य और भारत में इसका बढ़ता प्रभाव, फैटी लिवर रोग के जोखिम कारक मोटापा, अस्वस्थ आहार, जीवनशैली में बदलाव, फैटी लिवर रोग के विभिन्न चरण, फैटी लिवर रोग का समय पर निदान, फैटी लिवर रोग का प्रबंधन, सारोग्लिटाज़ार, रेस्मेटिरोम जैसे विषयों पर चर्चा की गई।
गट क्लब के प्रेसिडेंट गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. हरिप्रसाद यादव ने फैटी लिवर के बारे में कहा, “मोटापा और फैटी लिवर के जोखिम को बढ़ाने के कई कारक हैं। जिनमें बहुत ज्यादा वजन या मोटापा, टाइप 2 डायबिटीज, हाइपरटेंशन, जेनेटिकल हिस्ट्री शामिल है। मोटापा और फैटी लिवर से लिवर फेलियर को रोकने के लिए वजन नियंत्रित रखें, डायबिटीज और हाइपरटेंशन को काबू में रखें, संतुलित आहार लें, पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं, नियमित रूप से व्यायाम करें और शराब का सेवन न करें। इन उपायों को अपनाकर मोटापा और फैटी लिवर के जोखिमों और लिवर फेलियर जैसी गंभीर स्थितियों से बचा जा सकता है। यदि मरीज मोटापा या फैटी लिवर से पीड़ित हैं तो चिकित्सक से नियमित रूप से जांच करवाने के लिए प्रोत्साहित एवं जागरूक करें, जिससे भविष्य में होने वाली गंभीर समस्याओं से बचा जा सके।”
आईएमए के प्रेसिडेंट डॉ. नरेन्द्र पाटीदार ने नॉन – अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज विषय पर चर्चा में कहा, “मोटापे के कारण शरीर में बहुत ज्यादा मात्रा में फैट बनने लगता है, जो लिवर में भी जमा हो सकता है। इस स्थिति को फैटी लिवर कहा जाता है। इसके मुख्यतः दो प्रकार होते हैं एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज जो शराब के अधिक सेवन के कारण होता है और नॉन-एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज (एनएएफएलडी) जो मोटापे, टाइप 2 डायबिटीज, हाइपरटेंशन और अन्य मेटाबोलिक बीमारियों के कारण होता है। एनएएफएलडी दुनिया में सबसे आम लिवर रोग है जो कि 30 से 40 प्रतिशत वयस्कों को प्रभावित करता है। एनएएफएलडी के गंभीर रूप, जैसे कि स्टीटोहेपेटाइटिस और फाइब्रोसिस, लिवर फेलियर का कारण बन सकते हैं।”
इस सीएमई का उद्देश्य फैटी लिवर रोग के बारे में जागरूकता बढ़ाना तो था ही, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को इस जटिल बीमारी के नवीनतम निदान और उपचार विकल्पों से लैस करना भी था। कार्यक्रम में भाग लेने से चिकित्सक इस बढ़ती हुई स्वास्थ्य समस्या का अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने में सक्षम होंगे। सीएमई में डॉ. अमित सिंह बर्फा, डॉ. एके पंचोलिया, डॉ. अश्मित चौधरी, डॉ. अजय जैन, डॉ. रवि राठी, डॉ. टी नूर, डॉ. वीपी पांडे, डॉ. सुबोध बाँझल ने विशेष भूमिका निभाई।