समाचार पत्रों में छपी किसी भी खबर को रहने दिया जाए ‘संज्ञान-विहीन’, उठाए जा रहे ये कदम

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यह अनिश्चितता के बीच कुछ सुनिश्चितता को महसूस करने जैसी स्थिति का प्रतीक है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अफसरों को ताजा निर्देश हैं कि समाचार पत्रों में छपी किसी भी खबर को ‘संज्ञान-विहीन’ रहने न दिया जाए। यानी न सिर्फ समाचार पर ध्यान दें, बल्कि उससे संबंधित कार्यवाही भी सुनिश्चित की जाए। मामला शिवराज की तरफ से ‘खबर सही है तो तत्काल एक्शन लें, स्थितप्रज्ञ न बने रहनें’ वाला है।

संभव है कि आने वाले चुनावी साल के मद्देनजर शिवराज ने यह सजगता दिखाई हो। मुमकिन यह भी है कि अफसरशाही के चक्रव्यूह को न भेद पाने वाली असमय समाप्त कर दी गयी खबरों के उड़ाए जाते प्राण-पखेरू की स्थिति मुख्यमंत्री तक पहुंच गयी हो। जो भी हो, बात है सुखद अनुभूति वाली। छोटे से लेकर बड़े समाचार पत्रों का नियमित अध्ययन (केवल अवलोकन नहीं) करने वाले किसी भी व्यक्ति से पूछ लीजिए। वह बताएगा कि मामूली नजर आने वाले समाचार पत्र और माध्यम भी कई ऐसे रहस्योद्घाटन करते हैं, जो किसी बड़े मीडिया हाउस में आसानी से ‘बिग ब्रेकिंग’ वाली जगह पा सकते हैं। लेकिन पाठक वर्ग के अभाव में उन्हें यथोचित सम्मान तो दूर, बातचीत में उचित स्थान तक भी नहीं मिल पाता है।

जितना शिवराज सिंह चौहान को समझा है, उस आधार पर यह विश्वास किया जा सकता है कि उन्होंने यह निर्देश देने से पहले इस दिशा में वह तैयारी भी कर ही ली होगी, जिससे ऐसे किसी भी समाचार के साथ अनाचार को होने से रोका जा सके। यह होना भी चाहिए था। उम्मीद है कि ऐसा अब हो भी जाएगा। किसी सत्य का उद्घाटन इस आधार पर महत्व का मोहताज नहीं होता कि उसका स्रोत कोई अत्याधुनिक दफ्तर है या फिर वह जगह, जो आज भी समाचार पत्र के नाम पर महज एकाध टेबल-कुर्सी और भयानक तरीके की शेष विपन्नताओं की शिकार है। क्योंकि कुशल सत्यान्वेषी सुविधा के मोहताज नहीं होते। वह अपनी क्षमता और सूझबूझ से उन आडम्बरों को सहज रूप से पार कर लेते हैं, जो न्यूज़ रूम के नाम वाली किसी जगह पर ‘ब्रेकिंग न्यूज’ ‘बिग स्कूप’ या ‘स्कैम’ के नाम से श्रृंगारित की जाती हैं।

शिवराज की यह व्यवस्था निश्चित ही जमीन से जुड़ी ऐसी पत्रकारिता की जड़ों को और मजबूत करेगी। कहने का मतलब यह नहीं कि बड़े प्रतिष्ठानों में ऐसे समाचारों की गुंजाईश नहीं है, इस विवेचना का मतलब केवल उस पत्रकारिता से है, जो अभिजात्य वर्ग की न होने के बाद भी किसी से कम नहीं नहीं है। यदि ऐसे समाचारों को भी जिम्मेदार व्यवस्था की बारयाबी मिलेगी तो फिर यह उम्मीद की जा सकती है कि ‘खबर का असर’ एक स्लोगन से आगे उस सच का रूप ले सकेगा, जो पत्रकारिता के भविष्य को कायम रखने के लिहाज से बहुत आवश्यक है।

ऐसा संभवत: किसी राज्य में पहली बार हो रहा है और ऐसा होना हरेक राज्य के लिए बार-बार जरूरी भी है। क्योंकि शासन के पास हरेक वह सच पहुंचना बहुत आवश्यक है, जो इसलिए नहीं रोका जाना चाहिए कि उस सच का उद्ग्म किसी छोटे माध्यम से हुआ है। शिवराज ने सच को और नजदीक से और उसके बहुत सूक्ष्म रूप में सुनने की जो कोशिश की है, वह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इससे पत्रकारिता जगत के विराट और सूक्ष्म रूप के बीच का सरकार के स्तर का अंतर पाटने की शुरुआत हो सकेगी। इससे निश्चित ही उन पत्रकार बंधुओ का भी उत्साह बढ़ेगा, जो अब तक अपने द्वारा उद्घाटित सत्य को लेकर यह सोचकर ही मन मसोस लेते हैं कि वे ‘आप लिखें, खुदा बांचें’ वाली स्थिति हेतु अभिशप्त हैं।

पत्रकारिता के मूल तत्व के अपनी-अपनी आकांक्षाओं वाले पोखरों में रुक जाने की भयावह स्थिति के बीच आशा की जा सकती है कि शिवराज के इस रुख से यह तटबंध टूटेंगे और फिर उस धारा का प्रवाह सुनिश्चित होगा, जो आज भी धारदार पत्रकारिता को कायम रखने की क्षमता से युक्त है।