इंदौर। 70 का दशक जनसंघ का तो 80 का दशक भाजपा के संघर्ष का युद्ध काल था। नवरूपांतरित भाजपा को कांग्रेस के दमनकारी नेतृत्व से जूझना, लडना और दमन का शिकार होना नियति थी। भाजपा के वास्तुशिल्प को गढने और मांगलिक करने का उत्तरदायित्व कुशाभाऊ ठाकरे और प्यारेलाल खंडेलवाल बखूबी निभा रहे थे।
बात बडे भैय्या की वे और उनके अनन्य साथीवृंद स्व. प्रकाश सोनकर, फूलचंद वर्मा, सत्यनारायण सत्तन, आदि प्यारेलाल खंडेलवाल से सदैव जुडे रहें। इस टोली का नेतृत्व स्व.राजेंद्र धारकर करते थे। जो कार्यकर्ता निर्माण में गुरू सांदीपनि की भांति थे।
भाजपा से मेरा परिचय 28 दिसंबर 80 को हुआ और बडे भैय्या से परिचय प्रकाश सोनकर के साथ 1983 में हुआ।
बडे भैय्या में एक चुबंकीय आकर्षण था। उनके बडे सुपुत्र राजेंद्र शुक्ला ने शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव 84-85 में लडा मैने, 86-87 में। बडे भैय्या की छवि भले ही बाहुबली की रही पर वे वाकई मसीहाई शैली के राजनेता थे। उस दौर में कांग्रेसी क्षत्रप स्व. महेश जोशी के यहां जमघट राजनैतिक रसूख के कारण जुटता था किंतु बडे भैय्या के यहां बगैर राजनैतिक पद के भी जनसैलाब उमडता था और कोई एक भी निराश होकर नहीं लौटता था। वो दौर इंदौर में मिल मजदूरों का दौर था।
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इंटक, भाकपा, माकपा ताकतवर मजदूर संगठन थे तो बडे भैय्या बी एम एस को ताकत प्रदान करने का काम करते थे।
राजगढ में प्यारेलाल जी खंडेलवाल ने जब दिग्विजय सिंह को हराया उसमें बडे भैय्या की महती भूमिका थी। इसका मै प्रत्यक्ष साक्षी हूं। प्यारेलाल के दोनों चुनाव में मै बड़े भैया के साथ रहा। सांवेर में प्रकाश सोनकर, की हर विजय का पहला श्रेय बड़े भैया को जाता था। बडे भैय्या दो बार विधानसभा लडे दोनों चुनाव में मै उनकी परछाई की तरह साथ रहा। दुर्भाग्यवश दोनों चुनाव में वे हार गये थे।
मोहन बल्लीवाला हत्याकांड में बडे भैय्या को आरोपी बनाया गया। उस घटनास्थल पर मै भी मौजूद था। बाद में वे बरी भी हुऐ। कालांतर की राजनीति में अटल, राजमाता के लाडले बडे भैय्या, और संघर्ष काल के जुझारू शनै:शनै: कालब्राह्य होते गये। उन कारणों का और नामों का उल्लेख फिर कभी। आज तो केवल इतना की विष्णु प्रसाद शुक्ला राजनीति में स्वाभिमान, खुद्दारी, और कार्यकर्ता हितैषी व्यक्तित्व के रुप में सदैव स्मृति में रहेंगे। वे अपने दौर में वाकई इंदौर के बालठाकरे थे। ईश्वर मोक्ष प्रदान करें।