नितिनमोहन शर्मा। साहब बहादुरों…इतनी हिम्मत कहा से “पाते” हो जो इस शहर के नेतृव से खेल रहे हो? इतनी हिमाकत किसके दम पर कर रहे हो कि जनता के चुने हुए जनप्रतिनिधियों को पहचानने से भी इंकार कर रहे हो? कहा से लाये हो ये कलेजा जो इन्दौर जैसे शहर के साथ भी खेल रहे हो? सरकार की पगार की ताकत तो ये नजर नही आती। न पद-कुर्सी का दबदबा। फिर आखिर ऐसी कौन सी “शिलाजीत” गटक ली है जो भाजपा जैसी “बाहुबली पार्टी” के पार्षद, एमआईसी सदस्यों तो ठीक, शहर के प्रथम नागरिक को भी घोलकर पिये जा रहे हो?
जिस शहर का जिक्र देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के अन्य देशों में करते है, उस शहर का “धणी धोरी” आप कब से और कैसे बन गए? जो इन्दौर प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान का “सपनो का शहर” है, उस शहर के जनप्रतिनिधि आपसे त्रस्त कैसे हो गए? क्या आप लोगो को सीएम का भी डर नही लगता? कि वही से ” टिप्स ” झेल रहे हो?
इस शहर में याद नही कि ऐसी हिमाकत वाली अफसरशाही कभी आई हो। रही हो या फिर टिकी हो। पर आप सब इतने आरोप प्रत्यारोप के बाद भी न केवल टिके हुए हो, बल्कि अंगद की तरह जमे हुए भी हो। कुछ तो बात है। अन्यथा कल महापौर पुष्यमित्र भार्गव को दो टूक ये क्यो कहना पड़ता कि जहा देना हो सन्देश दे दो लेकिन काम तो अब “हिसाब किताब” से ही होगा। आमतोर पर शांत, सहज बने रहने वाले महापौर को तल्ख लहजे में आप सब लोगो को क्यो चेताना पड़ा कि दो ढाई साल जो कर लिया, कर लिया…पर अब हमारे हिसाब से चलना होगा।
याद नही इस शहर को ऐसी कोई सुरते हाल कभी बने हो। यहाँ के नेता तो दूर, पार्टी का सामान्य कार्यकर्ता ही जनता के काम करवा लेता है। पर अब तो आप लोगो ने पार्षदो को भी नाकों चने चबवा दिए। आप सबसे और आपकी कार्यप्रणाली से इतने त्रस्त हो गए कि वे उस बैठक में आपके खिलाफ मुखर हो गए जो प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी विकास यात्रा को लेकर बुलाई गई थी।
बैठक कोई बन्द कमरे में नही थी और न कैमरों-मोबाइल से दूर थी। अपनी ही प्रदेश में सरकार और नगर निगम में शहर सरकार होने के बाद भी पार्षदो को क्यो अपनी ही सरकार की ” जांघ उगाड़ना” पड़ी? आमतौर पर ऐसा होता नही। आपने भी ये ही सोचा होगा न कि अराजकता के किस्से कहानियां टुकड़े टुकड़े में चलते रहेंगे, जैसे अब तक चल रहे थें। होना जाना तो कुछ नही। लेकिन एक साथ पार्षदो का गुस्सा आप साहब बहादुरों के लिए फुट पड़ा। महापौर में भी सुर में सुर मिलाया। क्योकि वो भी इन सबके “भुगतभोगी” हैं और 6 महीने से वे खट्टे-मीठे, कड़वे-कसैले अनुभवों से रूबरू हो रहे हैं।
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कौन अफसर आप लोगो को हिमाकत का ये मंत्र पड़ा गया? या आप भाजपा की अंदरूनी गुटबाजी का फायदा उठा रहे हो? नगर सरकार और प्रदेश सरकार के बीच के अनमनेपन का कही फायदा तो नही उठा रहे आप? कि आप लोगो को “सरकार” से दिशा निर्देश है नगर सरकार को “फेल्युअर” साबित कर दो। इन्दौर-भौपाल की लड़ाई का फायदा तो नही उठा रहे आप?
अगर ऐसा हो रहा है तो ये भाजपा जाने और आप जाने। भाजपा की निगम परिषद जाने और आप जानो। लेकिन हम इन्दौरी ये बर्दाश्त नही करेंगे कि जिन्हें हमने गली मोहल्लों और शहर के डेवलपमेंट के लिए चुना, उन्हें आप पहचानने से इंकार कर दो। उनका काम न करो। पीने के पानी, स्ट्रीट लाइट, साफ सफाई जैसे जरूरी कामो के लिए भी ऐसा रवैया रखो कि जैसे नेता ने अपने वार्ड में मेट्रो ट्रेन मांग ली हो..!!
फिर क्या मतलब हम सबका जिन्होंने डबल नही, ट्रिपल इंजन की सरकार चुनी? आपकी मोहताजी पर ही जीना है तो फिर नगर निगम के चुनाव क्यो करवाये गए। जुलाई 2022 के पहले दो-ढाई साल से आप सब ही तो शहर के कर्णधार थे। चुनाव के बाद, पार्षदो के आने के बाद तो भूलने की कोशिश करो न कि अब नई निगम परिषद अस्तित्व में आ गई है और कामकाज अब पार्षदो, एमएससी सदस्यों और महापौर की मंशा के अनुरूप होगा। ना की आपके हिसाब से।
साहब बहादुरों आप पर कल लगे आरोप गलत नही है। सब सच है। सबको पता भी था। पर बोल कोई नही रहा था। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने निगम के कार्यक्रम में ही, आप सबकी मौजूदगी में अफसरशाही के हावी होने का मुद्दा उठाया था। तब उसे गुटीय चश्मे से देखा गया। जबकि विजयवर्गीय ने जमीनी हकीकत बेबाकी से सबके बीच प्रस्तुत कर दी थी। बावजूद आप बेफिक्र बने रहें।
तो साहब बहादुरों कम से कम इतना तो बताओ कि ये बेफिक्री का दाना पानी कहां से प्राप्त हो रही हैं। किसकी खुराक पर खुर्राट बने हए हो। पता है नही बता पाओगे। लेकिन अब कुछ भी छुपा नही हैं। कल सब उजागर हो गया। अब भी वक्त संभल जाइए। ” सिखाये पूत कचहरी” मत चढ़ो। क्योकि कल महापौर बोल चुके है कि हमारे पास खोने को कुछ नही और आने वाले 5 साल तो हम ही हैं। समझे की नही? इससे स्पष्ट तो आप ओर आपको शह देने वालो को समझा नही सकते। तो समझ जाओ और संभल भी जाओ। इन्दौर से खेलना बन्द करो। ये शहर के प्रथम नागरिक, पार्षदो के साथ साथ इन्दौर का भी अपमान है।
सुन रहे है न सीएम साहब…!!!