लिट चौक में बोले अभिनेता विनय पाठक, ‘नाटक से मिलता है सुकून, फिल्मों से चलती है रोजी-रोटी’

Abhishek singh
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मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में आयोजित लिट चौक फेस्टिवल के दौरान फिल्म अभिनेता विनय पाठक ने दर्शकों से संवाद किया। उन्होंने कहा कि अभिनय कोई विशेष या अनोखी चीज नहीं है, बल्कि यह हम सभी के भीतर मौजूद होता है। जीवन में हम कई मौकों पर अभिनय करते हैं। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जब घर में रिश्तेदार आते हैं, तो हम अपने भाव छुपाकर चेहरे पर मुस्कान लाते हैं। फूफा जी को देखकर खुशी जाहिर करना, भले ही मन से न हो, भी एक तरह का शिष्टाचारपूर्ण अभिनय ही है।

एक सवाल के जवाब में विनय पाठक ने कहा कि नाटक करना उन्हें आत्मिक संतोष देता है, जबकि फिल्मों से उनकी आर्थिक जरूरतें पूरी होती हैं। उन्होंने थिएटर की तारीफ करते हुए कहा कि नाटक उन्हें सुकून देता है और उनके भीतर के इंसान और अभिनेता को जीवित रखता है। जो लोग थिएटर से जुड़ना चाहते हैं, वे समय निकाल ही लेते हैं। थिएटर और फिल्म के कलाकारों की तुलना पर उन्होंने कहा कि दोनों की अपनी-अपनी खूबियां होती हैं और श्रेष्ठता का आकलन करना उचित नहीं है। हर कलाकार अपने क्षेत्र में बेहतरीन काम करता है।

बॉक्स ऑफिस की कमाई से मिलती है ताकत

अभिनेता विनय पाठक ने कहा कि मुंबई में बॉक्स ऑफिस पर जब कोई फिल्म हिट हो जाती है, तो उसे एक अलग ही ताकत मिलती है। उन्होंने बताया कि जब उनके लिए मौका आया, तो उन्होंने इसे भुनाने की कोशिश की और एक फिल्म बनाई, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई। बावजूद इसके, उन्होंने कहा कि वे अब तक मिले अपने कामों से संतुष्ट और खुश हैं।

लिट चौक फेस्टिवल में अभिनेता अनूप सोनी ने भी शिरकत की। उन्होंने कहा कि कला वास्तविकता से कटी हुई नहीं होती, बल्कि यह भारतीय दर्शकों के दिलों को गहराई से छूती है। उनका मानना है कि अभिनय का प्रभाव लंबे समय तक दर्शकों के मन में बना रहता है। पुराने दौर के अभिनेताओं का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वे शर्ट उतारकर नहीं, बल्कि अपने अभिनय और फिटनेस पर ध्यान देकर प्रभाव छोड़ते थे। उन्होंने यह भी साझा किया कि वे खुद फिटनेस को प्राथमिकता देते हैं और नियमित रूप से वर्कआउट करते हैं।

सिनेमा से अलग है नाटक का अनुभव

लिट चौक में फिल्म अभिनेता गजराज राव ने कहा कि उन्हें रंगमंच से गहरा लगाव है और नाटक का आनंद सिनेमा में नहीं मिल सकता। उन्होंने बताया कि थिएटर को समय की आवश्यकता होती है, लेकिन पारिवारिक और आर्थिक जिम्मेदारियों के कारण उन्हें कुछ पहलुओं को पीछे छोड़ना पड़ा। उन्होंने स्वीकार किया कि जीवन की भागदौड़ में कुछ चीजें अधूरी रह जाती हैं। गजराज राव ने यह भी कहा कि आजकल दर्शकों की पसंद में विविधता है। एक दर्शक “लापता लेडीज” जैसी फिल्म पसंद करता है, तो दूसरा “पुष्पा” जैसी फिल्म का दीवाना है। आजकल कंटेंट की गुणवत्ता सबसे ज्यादा मायने रखती है।