अर्जुन रिछारिया
दोस्तों आज मैं आपको एक ऐसे अभियान की जानकारी दे रहा हूं जो इंदौर में पूरे अनुशासन और शांति के साथ चल रहा है। यह नगर निगम की वसूली और गुंडागर्दी के खिलाफ एक ऐसी आवाज है जो सही तरीके से समाज के निचले तबके को सशक्त बनाने की बात कहती है।
स्मार्ट सिटी और क्लीन सिटी के नाम पर हमारे शहर में पिछले कई सालों से ठेलेवालों को बलपूर्वक हटाया जा रहा है। ये वे लोग हैं जो आपको किसी मॉल या रिलायंस फ्रेश स्टोर की तुलना में सस्ता और बेहतर सामान दे रहे हैं और सम्मानपूर्वक अपनी आजीविका चला रहे हैं। चूंकि केंद्र सरकार के स्मार्ट सिटी और क्लीन सिटी प्रोजेक्ट में इन सब बातों के भी नंबर हैं। इनके पीछे करोड़ों रुपए के फंड और अधिकारियों, नेताओं के तथाकथित फायदे छुपे हुए हैं। इन्हीं सब वजहों से धीरे धीरे ये ठेलेवाले बलपूर्वक शहर से गायब होते जा रहे हैं। या तो इन्हें स्वच्छता के नाम पर परेशान किया जा रहा है या फिर अतिक्रमण के नाम पर खदेड़ा जा रहा है।
एक बार सोचकर देखिए कि सरकार खुद कितनी कन्फ्यूज है। वह बात तो आत्मनिर्भरता की करती है लेकिन इन लोगों को आत्मनिर्भरता से हटाकर दर दर भटकने पर मजबूर कर रही है। बात हो रही है वोकल फॉर लोकल की लेकिन सरकार तेजी से फुटपाथ व्यापारियों, छोटे दुकानदारों और ठेलेवालों को हटाकर मॉल कल्चर ला रही है। इसे कहते हैं हाथी के दांत खाने के कुछ और दिखाने के कुछ और।
आप खुद तय कर लीजिए कि आप कैसा इंदौर चाहते हैं। वह शहर जहां आप मॉल या बड़ी दुकानों से महंगा सामान खरीदें और स्थानीय दुकानदारों को मरने के लिए छोड़ दें या फिर ऐसा शहर जहां उन्हें आत्मनिर्भर बनाएं और उनकी आजीविका के बारे में भी सोचें।
क्लीन सिटी, स्मार्ट सिटी सारी विचारधाराएं अच्छी हैं लेकिन इनकी आड़ में गरीबों को मरने पर मजबूर मत करिए। आप सोची समझी रणनीति के तहत अभी तक जनता को बेवकूफ बनते आए हैं लेकिन अब यह नहीं चलेगा। इन सब्जी, फलवालों और फुटपाथ व्यापारियों को हटाने की जरूरत नहीं है बल्कि इन्हें साथ लेकर सिस्टम बनाने की जरूरत है। यह भी हमारे समाज का हिस्सा हैं। इन्हें उठाकर आप शहर के बाहर नहीं फेंक सकते। इनके ठेले तोड़कर निगम के ट्रेंचिंग ग्राउंड में नहीं डाल सकते।
एक अंडेवाले के ठेले पर शहर को अत्याचार दिख गया तो मामला दबाने के लिए उसे सारी सुविधाएं दे दी गई। कई सालों से ठेलेवालों पर यह अत्याचार हो रहा है लेकिन किसी को नहीं दिखा। यह सब इसलिए नहीं दिखा क्योंकि यह स्वच्छता और अतिक्रमण की आड़ में किया जाता रहा।
आज इंदौर शहर का हर ठेलेवाला एकजुट हो रहा है। शायद सरकार और अधिकारियों को इसकी भनक न हो लेकिन कुछ समय बाद यह एक बड़ा आंदोलन बनेगा। गुस्सा उबल रहा है, संभल जाइए। लॉकडाउन और कोरोनाकाल में दाने दाने के लिए संघर्ष करने वाला यह वर्ग अब भड़कने वाला है। हर ठेलेवाला यह तख्ती लगाकर घूम रहा है… मेरा भी परिवार है, जीने का अधिकार है, मेहनत की रोटी खाने दो। यह 5 रुपए की तख्ती बहुत ताकतवर है साहब, क्लीन सिटी और स्मार्ट सिटी के नाम पर इसे उखाडऩे की कोशिश मत करना, वरना यह आपके पतन की शुरुआत होगी।