मैं अभी हाल ही रातापानी अभयारण्य में तफरीह करते हुए देलावाड़ी रेंज के दुर्गम जंगल में गिन्नौरगढ का वह किला देखकर आया जहाँ से गोंड़ रानी कमलापत (Rani Kamlapat) का शासन चलता था। किला जीर्णतम स्थिति में है वहाँ तक पहुंचना फिलहाल जोखिम भरा है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार यह किला 800 से 1000 वर्ष पुराना परमारकालीन है..। परमारों के बाद यहाँ गौंड़ राजाओं का कब्जा हुआ। यानी कि उधर गोड़वाना, गढ़ाकोटा के राजा गोंड़ थे तो इधर भोपाल (Bhopal) का इलाका भी उन्हीं के बिरादरों के कब्जे में रहा बाद में मुगल शासकों ने धोखा देकर इसे कब्जालिया।
गिन्नौरगढ को यदि संरक्षित किया जाता तो संभव है कि इसकी प्रसिद्धि भी मांडू की भाँति होती। भोपाल से 45 किमी दूर स्थित इस किले की दस किलोमीटर की परिधि में 4 तालाब और 24 बाबडियाँ हैं..इन बाबड़ियों में से एक को देखने का अवसर मिला। गाइड ने बताया कि भूतल में इसके चार तल्ले और हैं तथा यहाँ से एक सुरंग किले तक जाती है। लोग जितना रानी दुर्गावती के बारे में जानते हैं फिलहाल उतना कमलापत के बारे में नहीं जानते..।
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हबीबगंज (Habibganj) को रानी कमलापत रेल्वे स्टेशन का नाम दिए जाने के बाद यह जिग्यासा का विषय है कि ये रानी कौन थीं..? भोपाल ताल के ऊपर बने कमला पार्क के जरिए रानी कमलापत को जो नहीं जान पाए थे वे अब उनके नाम से बने विश्वस्तरीय रेल्वे स्टेशन के जरिये जानेंगे। गौरवशाली व्यक्तित्वों को पुनर्प्रतिष्ठित करने का जो अभियान प्रारंभ हुआ है वह जारी रहना चाहिए। जिस तरह इलाहाबाद, मुगलसराय और अब हबीबगंज को नई पहचान मिली है वैसे ही बिहार के बख्तियारपुर को नया नाम मिलना चाहिए। बख्तियार खिलजी वही राक्षस है जिसने नालंदा विश्वविद्यालय को जलाकर राख में मिलाया था..। सिलसिला जारी रहे..