दिनेश निगम ‘त्यागी’
पृथ्वीपुर में भाजपा का मुद्दा परिवारवाद है लेकिन रैगांव, खंडवा में इसे लेकर वह आशंकित भी है। परिवारवाद के कारण टिकट न देने का प्रयोग भाजपा के लिए चुनौती बन गया है। वजह इससे पहले हुआ दमोह विधानसभा सीट का उप चुनाव है। यहां भाजपा ने दिग्गज नेता जयंत मलैया को दरकिनार कर कांग्रेस से आए राहुल लोधी को टिकट दिया था। मलैया अपने बेटे के लिए टिकट चाहते थे। नतीजा, दमोह में भाजपा को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। रैगांव और खंडवा में भी भाजपा ने यही प्रयोग दोहराया।
नेतृत्व ने खंडवा में भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्ष सिंह चौहान की दावेदारी खारिज कर दी और रैगांव में वरिष्ठ नेता जुगुल किशोर बागरी के परिवार को टिकट नहीं दिया। इनके निधन के कारण ही दोनों सीटों में उप चुनाव हो रहे हैं। जिस तरह दमोह सीट मलैया की पर्याय थी, उसी तरह खंडवा नंदकुमार सिंह चौहान एवं रैगांव जुगुल किशोर बागरी के नामों से जानी जाती हैं। भाजपा ने यहां भी परिवारवाद के आधार पर टिकट न देने का निर्णय लिया। अब नेतृत्व के सामने चुनौती इन सीटों को किसी भी हालत में जीतने की है। वर्ना प्रयोग पर सवाल उठेंगे। इसलिए इन दोनों सीटों पर ज्यादा ताकत झोंकी जा रही है। आशंकित भाजपा को खुद को मजबूत दिखाने के लिए कांग्रेस के एक विधायक सचिन बिरला को कांग्रेस से तोड़कर पार्टी में लाने की कसरत करना पड़ गई।
पत्नी की चिंता छोड़ पृथ्वीपुर में डटे ये मंत्री-
भाजपा का जो नेता क्षेत्र में जाए बगैर घर बैठे चुनाव जीत जाता है। जिनकी पत्नी बीमार है और भोपाल के एक निजी अस्तपाल में भर्ती, ऐसे दिग्गज नेता पृथ्वीपुर विधानसभा सीट में पार्टी की जीत के लिए डेरा डाल कर रह गए हैं। हम बात कर रहे हैं प्रदेश के पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव की। वे निवाड़ी जिले के प्रभारी मंत्री हैं और बुंदेलखंड में भाजपा के सीनियर नेता, इस नाते उनके कंधों पर पृथ्वीपुर में पार्टी को जिताने की जवाबदारी है। पृथ्वीपुर सीट कभी भाजपा के अनुकूल नहीं रही। अपवाद छोड़ दें तो यहां कांग्रेस ही विजय पताका फहराती रही है।
इस अंचल के कद्दावर कांग्रेस नेता पूर्व मंत्री बृजेंद्र सिंह राठौर के निधन के कारण इस सीट के लिए उप चुनाव हो रहा है। कांग्रेस ने उनके बेटे नितेंद्र सिंह राठौर को प्रत्याशी बनाया है। भाजपा के लिए राह अब भी आसान नहीं है। लिहाजा, भार्गव 20-22 दिन से पृथ्वीपुर में हैं। भोपाल में इलाज करा रहीं अपनी पत्नी को देखने तक नहीं आए। सीट में ब्राह्मण और यादव मतदाता निर्णायक हैं। भाजपा ने यादवों के लिए सपा के टिकट पर पिछला चुनाव लड़े शिशुपाल यादव को प्रत्याशी बनाया है। ब्राह्मणों को पार्टी के पक्ष में लामबंद करने की जवाबदारी भार्गव के कंधों पर है। मंत्री की मेहनत और पार्टी की रणनीति कितनी सफल होती है, नतीजे बताएंगे।
दबे-लुनावत की भूमिका में भूपेंद्र-सबनानी-
वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में जब दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को भाजपा ने सत्ता से बाहर किया, तब से ही पार्टी के चुनाव प्रबंधन का काम अनिल माधव दवे एवं उनके सहयोगी विजेश लुनावत देख रहे थे। चुनाव लोकसभा के हों, विधानसभा के या फिर कोई उप चुनाव, भाजपा की ओर से चुनाव प्रबंधन और रणनीति बनाने का काम इनके नेतृत्व में ही होता था। दुर्भाग्य से दवे और लुनावत दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं। भाजपा में इस बात को लेकर चिंता थी कि आखिर दवे और लुनावत की जवाबदारी कौन निभा पाएगा। लगता है भाजपा में खोज पूरी हो गई है।
दवे की भूमिका के लिए प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह को ढूंढ़ लिया गया है और लुनावत की कमी भाजपा के प्रदेश महामंत्री भगवानदास सबनानी पूरी करते दिख रहे हैं। भूपेंद्र भाजपा चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक हैं और सबनानी उनके सहयोगी। भूपेंद्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खास हैं और सबनानी को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा का भरोसा हासिल है। एक लोकसभा एवं तीन विधानसभा सीटों के उप चुनाव जब कांग्रेस के साथ भाजपा के लिए भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गए हैं तब भूपेंद्र और सबनानी चुनाव प्रबंधन के काम में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
इस मंत्री को आता है चर्चा में बने रहना-
लोगों और मीडिया के बीच चर्चा में कैसे रहा जाता है, यह सीखना है तो कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के बाद प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा से टिप्स लिए जा सकते हैं। दिग्विजय की तरह नरोत्तम भी अपनी कार्यशैली एवं बेबाक बयानों के कारण हमेशा चर्चा में रहते हैं। नरोत्तम फिर चर्चा में हैं लेकिन अलग कारण से। जब एक लोकसभा एवं तीन विधानसभा सीटों के लिए उप चुनाव हो रहे हैं, तब पहली बार नरोत्तम प्रचार अभियान से नदारद हैं। उनका नाम स्टार प्रचारकों की सूची में है, लेकिन अब तक वे किसी क्षेत्र में प्रचार करने नहीं गए। इसके मायने तलाशे जा रहे हैं। कांग्रेस को मौका मिल गया।
भाजपा दिग्विजय सिंह को ढूंढ़ रही थी और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने सवाल दाग दिया, नरोत्तम प्रचार अभियान से दूर क्यों हैं? जवाब अब तक नहीं आया है। दूसरा, नरोत्तम विपक्षी नेताओं की पसंद बने हुए हैं। पहले अजय सिंह से कई मुलाकातों के कारण चर्चा में रहे, इसके बाद डा. गोविंद सिंह एवं कांतिलाल भूरिया ने उनसे मुलाकात की। अब कमलनाथ के खास सज्जन सिंह वर्मा उनके घर जाकर एक घंटे की चर्चा कर आए। गोविंद सिंह पहले ही कह चुके हैं कि विपक्ष के साथ कैसे संबंध होना चाहिए, यह नरोत्तम से सीखना चाहिए। बहरहाल, नरोत्तम चर्चा में हैं।
मंत्री जी, फिर भी सवाल तो बरकरार है
महिला के बालों में उलझा मंत्री का चश्मा-
प्रदेश के एक मंत्री उप चुनाव लड़ रहीं एक महिला प्रत्याशी के बालों से अपना चश्मा निकालने और जांघों में हाथ रख देने के कारण विपक्ष के निशाने पर हैं। कांग्रेस का आरोप है कि एक तरफ मुख्यमंत्री और भाजपा कन्या पूजन का नाटक कर रहे हैं, दूसरी तरफ उनके मंत्री सार्वजनिक तौर पर महिलाओं के साथ ऐसी हरकत कर रहे हैं। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस मसले पर मंत्री का बचाव किया है। उन्होंने कहा कि मंत्री ने अपनी बहन के बालों से चश्मा निकाल लिया तो क्या हो गया। कांग्रेस हमेशा हर बात गलत चश्में और नजरिए से देखती है।
मंत्री भी लगातार सफाई दे रहे हैं। बावजूद इसके दो सवाल बरकरार हैं। एक, चश्मा महिला प्रत्याशी के बालों में कैसे उलझ गया कि मंत्री को उसे उनके बालों से निकालना पड़ा और दो, मंच में जब वे उसी महिला प्रत्याशी के बगल में बैठे नेता से बात कर रहे थे तो उन्होंने अपने हाथ की कोहनी उसके पैरों में कैसे रख दी। मंत्री ने जब हाथ रखा तो महिला असहज दिख रही थी। मंत्री का ऐसा करना किसी के गले नहीं उतर रहा। सवाल यह है कि क्या सार्वजनिक जीवन के व्यक्ति को सार्वजनिक कार्यक्रमों में सावधानी नहीं बरतना चाहिए। कांग्रेस यदि इसे मुद्दा बना रही है तो क्या गलत है?