डा. पुष्पेन्द्र दुबे
उत्तर भारत में यह आम धारणा है कि दक्षिण भारत में हिंदी की उपेक्षा होती है। हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित न करने के लिए दक्षिण भारत जिम्मेदार है। लेकिन स्थिति इसके उलट है। कल 2 अक्टूबर को सुदूर केरल के कालिकट जिले के हिंदी प्राध्यापकों ने एक वेबिनार आयोजित किया। उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के हिंदी शिक्षकों ने एक संगठन बनाया है, जिसका नाम एच एस एस हिंदी अध्यापक एसोसिएशन, कालिकट, केरल है। इस एसोसिएशन में 158 हिंदी शिक्षक जुड़े हुए हैं। मलयालम उनकी मातृभाषा है और हिंदी उनकी आजीविका की भाषा है। उनका हिंदी प्रेम देखते ही बनता है। मेरी जानकारी में उत्तर भारत में दक्षिण भारतीय भाषाओं को लेकर ऐसा कोई संगठन दिखायी नहीं देता है। उनके द्वारा आयोजित वेबिनार का विषय : समकालीन साहित्य : सृजन के विविध आयाम था। व्याख्यान हो जाने के बाद सदस्यों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किया। इसमें सदस्यों ने सुमधुर कंठ में कविता, भजन, गीत और गजल प्रस्तुत की। एक सदस्या सफिया ने अपनी लेखन यात्रा के संस्मरण साझा किए।
z`उन्होंने बताया कि एक बार प्रो आरसू उनके विद्यालय में आए थे। उन्होंने पूछा कि पढ़ाने के अलावा हिंदी की और क्या सेवा करती हो ? यह तुम्हारी आजीविका है, इसलिए कुछ लिखा करो। सदस्या ने अपनी आवाज में आरसू जी को अपना लिखा हुआ भेज दिया। तब आरसू जी ने कहा कि इसे आलेख में भेज दो, प्रकाशित करेंगे। इस प्रकार का प्रोत्साहन पाकर लिखना शुरू किया। हाल ही में केरल के हिंदी सेवियों ने मध्यप्रदेश के कहानीकारों की कहानियों का मलयालम में अनुवाद किया है। उनमें सफिया ने भी कहानीकार विवेक द्विवेदी की कहानी का अनुवाद किया है। इनमें तीस कहानीकारों को शामिल किया गया है। कुछ ही समय में यह पुस्तक प्रकाशित होगी। यह वेबिनार करीब दो घंटे चला। सभी उपस्थितों ने अपने विचार हिंदी भाषा में व्यक्त किए। बहुत आग्रह करने पर आभार मलयालम भाषा में माना गया। यह बात ऐसे ही नहीं कही जाती है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है।