मेरठ में नीले ड्रम वाले मुस्कान कांड और इंदौर के राजा रघुवंशी-सोनम प्रकरण जैसे मामलों के बाद से विवाह को लेकर युवाओं का नजरिया काफी बदल गया है। अब युवक-युवती ही नहीं, उनके परिवारजन भी गुण-दोष को लेकर पहले से कहीं अधिक सतर्क हो गए हैं। ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि अब कुंडली मिलान को लेकर परामर्श के मामलों में वृद्धि हुई है। कई परिवार अब तब तक विवाह की सहमति नहीं देते जब तक 36 में से कम से कम 25 गुण न मिल जाएं।
ग्रहों की कृपा हो तभी बने सुखद दांपत्य जीवन
आचार्य मनीष स्वामी के अनुसार, कुंडली मिलान करते समय सबसे ज़रूरी बात यह होती है कि सप्तम भाव में कोई अशुभ या क्रूर ग्रह मौजूद न हो। विशेष रूप से राहु, केतु और शनि जैसे ग्रह न तो इस भाव में स्थित हों और न ही उनकी दृष्टि इस पर पड़े। साथ ही सप्तम भाव पूरी तरह खाली भी नहीं होना चाहिए। वहां किसी शुभ ग्रह की उपस्थिति या दृष्टि होना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि यदि कुंडली में राहु अशुभ स्थिति में हो, तो व्यक्ति में शराब सेवन की प्रवृत्ति हो सकती है और वह धन का दुरुपयोग कर सकता है।

हर दिन बढ़ रही कुंडली मिलान की मांग
इंडियन काउंसिल ऑफ एस्ट्रोलॉजिकल साइंस के सचिव आचार्य कौशल वत्स ने बताया कि प्रतिदिन करीब पांच से सात लोग कुंडली मिलान के लिए संपर्क कर रहे हैं। पहले जब कुंडली में गुण कम मिलते थे, तो लोग वैकल्पिक उपायों से विवाह कराने की कोशिश करते थे। लेकिन अब अधिकांश परिवार तभी आगे बढ़ते हैं जब कुंडली में 25 से 36 के बीच गुण मिलते हों। यदि 25 से कम गुण हों, तो रिश्ते पर विचार ही नहीं किया जा रहा। खास बात यह है कि आईटी कंपनियों में काम करने वाले युवा भी अब कुंडली मिलान को लेकर खासे सजग हो गए हैं।
इन दिनों कई ज्योतिषाचार्यों को विवाह से पहले कुंडलियां दिखाकर सलाह ली जा रही है। ज्यादातर मामलों में अंतिम निर्णय तभी लिया जा रहा है जब ग्रह-योग और गुणों का मिलान संतोषजनक हो। हाल ही में शहर में ऐसे 18 मामले सामने आए हैं, जहाँ कुंडली में पर्याप्त गुण न मिलने पर रिश्तों की बातचीत रोक दी गई। ज्योतिषाचार्य विनोद त्यागी का कहना है कि कुंडली मिलान में ग्रहों की स्थिति और गुणों की संख्या का महत्वपूर्ण स्थान होता है।
पुराने रीती-रिवाजों को फिर से मिल रहा सम्मान
अब समाज एक बार फिर कुछ पारंपरिक रीति-रिवाजों को अपनाने लगा है। पहले जहां कन्याओं के लिए गौरी पूजा, सोलह सोमवार व्रत और अन्य धार्मिक विधियों का विशेष महत्व था, अब वे प्रथाएं फिर से प्रचलन में आ रही हैं। ज्योतिषाचार्य प्रवीण के अनुसार, चातुर्मास के दौरान विवाह नहीं किए जा रहे हैं, और अब रात्रिकालीन फेरों की बजाय दिन में फेरे लिए जा रहे हैं, जिसे ‘सनडाउन वेडिंग’ कहा जा रहा है। इसके साथ ही चाक पूजन जैसी पारंपरिक रस्में भी पूरी श्रद्धा के साथ निभाई जा रही हैं।