कल मनाई जाएगी वट पूर्णिमा, यहां जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि से लेकर सब कुछ

वट पूर्णिमा व्रत हिंदू विवाहित महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र और सुखमय दांपत्य जीवन के लिए किया जाता है। इसमें वट वृक्ष की पूजा, कथा श्रवण और परिक्रमा की जाती है। 2025 में यह व्रत 10 जून को मनाया जाएगा, और पारण 11 जून को होगा।

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Vat Purnima Vrat 2025 : हिंदू संस्कृति में वट पूर्णिमा व्रत को अत्यंत पवित्र और फलदायी माना गया है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना हेतु किया जाता है।

मान्यता है कि इस दिन श्रद्धा और नियमपूर्वक उपवास और वट वृक्ष की पूजा करने से दांपत्य जीवन में प्रेम, विश्वास और समरसता बनी रहती है। यह व्रत विवाहित स्त्रियों को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देता है और पति-पत्नी के बीच आने वाले सभी प्रकार के कलह, समस्याएं और संकट दूर करने में सहायक होता है।

वट वृक्ष का आध्यात्मिक स्वरूप

वट या बरगद के वृक्ष को हिंदू धर्म में अत्यंत पूजनीय माना गया है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें त्रिदेवों का वास माना जाता है, जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और शाखाओं में महादेव शिव का निवास होता है। इस कारण इसकी पूजा करने से सभी देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। इसके प्रभाव से घर में सुख-शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। जिन दंपतियों को संतान प्राप्ति में बाधा हो, उनके लिए भी यह व्रत अत्यंत लाभकारी माना गया है।

Vat Purnima Vrat 2025 : तिथि और शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, वट पूर्णिमा व्रत 2025 में 10 जून, मंगलवार को मनाया जाएगा। पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 10 जून को सुबह 11:35 बजे से होगी और यह 11 जून को दोपहर 1:13 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि और व्रत की परंपराओं को ध्यान में रखते हुए पूजा और व्रत 10 जून को ही किया जाएगा।

वट पूर्णिमा व्रत और पूजा विधि

व्रत के दिन महिलाएं प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ, शुभ रंग के वस्त्र पहनती हैं, विशेषकर लाल या पीला रंग शुभ माना जाता है। वे सोलह श्रृंगार करती हैं और संकल्प लेकर व्रत आरंभ करती हैं। बरगद के वृक्ष के चारों ओर कच्चे सूत (धागा) से 7, 11, 21, 51 या 108 बार परिक्रमा की जाती है, और प्रत्येक परिक्रमा के साथ पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुखद दांपत्य जीवन की कामना की जाती है। यदि संभव हो, तो पति के साथ परिक्रमा करना अधिक शुभ फलदायी माना जाता है।

वृक्ष की पूजा में फल, मिठाई, भीगे चने आदि का भोग लगाया जाता है। पूजा के उपरांत महिलाएं वृक्ष के नीचे बैठकर या घर में वट सावित्री व्रत कथा का पाठ या श्रवण करती हैं। यह कथा पत्नी सावित्री की अटल निष्ठा, शक्ति और पतिव्रता धर्म को दर्शाती है। पूजा के बाद किसी सुहागिन महिला, ब्राह्मण या ज़रूरतमंद को श्रद्धा अनुसार सुहाग सामग्री, फल और दक्षिणा दान करने का विशेष महत्व है।

व्रत पारण की विधि

व्रत का पारण अगले दिन, यानी 11 जून बुधवार को किया जाएगा, जब पूर्णिमा तिथि 1:13 बजे दोपहर में समाप्त होगी। इस दिन सुबह स्नान कर के भगवान विष्णु और शिव का स्मरण करते हुए व्रत समाप्ति के लिए धन्यवाद देना चाहिए। पारण करने से पहले दान देना शुभ माना जाता है – जैसे अन्न, वस्त्र या फल।

व्रत का पारण सादा सात्विक भोजन से किया जाता है। कुछ महिलाएं खीर, भीगे चने या फल-मिठाई से व्रत खोलती हैं। ध्यान रहे, इस दिन प्याज और लहसुन का प्रयोग वर्जित होता है, और व्रत के बाद केवल सात्विक भोजन ही ग्रहण किया जाता है।

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