महू: अंबेडकर जन्मस्थली एवं बाबा साहब के नाम से स्थापित सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय में संविधान निर्माता के द्वारा बनाए गए नियमों के विरुद्ध कार्य करते हुए अपनों को लाभ पहुंचाने का कार्य कुलपति महोदया एवं प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत प्रोफ़ेसर किशोर जॉन के द्वारा किया जा रहा है। विश्वविद्यालय में योग्यता एवं अनुभव को प्राथमिकता ना देकर अपने जान पहचान वालों को महत्व दिया जा रहा है। विश्वविद्यालय द्वारावर्षों पूर्व अतिथि विद्वानों को जारी किए गए पत्रों में छेड़छाड़ की जा रही है तथा संबंधितसभीपक्षों को सूचित नहीं किया गया।।वर्तमान समय में वैश्विक महामारी का दौर चल रहा है। ऐसे में कुलपति महोदया द्वारा विश्वविद्याल में शैक्षणिक सत्र 2019-20 मेंकार्य पर रखे गए 22अतिथि विद्वानों में से 17 अतिथि विद्वानों को मार्च माह में कार्य से स्थगित कर दिया गया तथा उन्हें किसी भी प्रकार का मानदेय आज तक नहीं दिया गया।
साथ ही विश्वविद्यालय में कुलपति महोदया के द्वारा कार्य हेतु रोके गए 4-5अतिथि विद्वान पूर्ण रूप से मानदेय प्राप्त कर रहे हैं जोकि कुलपति के व्यक्तिगत संपर्क मेंहोने का फायदा ले रहे हैं।इस भेदभाव पूर्णनीति के कारण विश्वविद्यालय के 17 योग्य एवं अनुभवी अतिथि विद्वान अपने परिवारों के साथ बिना तनख्वाह के महामारी में संघर्ष कर रहे हैं जिनके लिए विश्वविद्यालय परिवार को कोई सहानुभूति नहीं है। ऐसी ही कई अव्यवस्थाएं विश्वविद्यालय में संचालित की जा रही है जोकि असामाजिक, अविधिक एवं अमानवीय कृत्य की श्रेणी मेंआती है जिनमें से कुछ निम्न है।
प्रबंध विषय में यूजीसी के द्वारा निर्धारित योग्यता अनुरूपअतिथि विद्वान को ना रखकर कुलपति महोदय के पतिदेव डॉ आर के शुक्ला के शोधार्थी भरत भाटी को रखा गया जिनका ना तो पीएचडी है और यूजीसी नेट पर भी संदेह है। जबकि विश्वविद्यालय द्वारा 07/03/2019को जारी आदेश में पीएचडी या यूजीसीनेट उम्मीदवार को अधिकृत किया गया था। महामारी के दौर में उच्च योग्यता धारी एवं शैक्षणिक अनुभव वाले अतिथि विद्वान को कार्य सेस्थगित कर भरत भाटी जैसेअयोग्यउम्मीदवार को व्यक्तिगत संबंधों की वजह से प्राथमिकता देकर रोका गया।
ग्रामीण विकास विषय में अतिथि विद्वान उपस्थित होने पर भी पंचायती राज के प्रशिक्षण कार्यक्रम में कुलपति महोदया के संपर्कके अतिथि विद्वान मनोज गुप्ता (जोकि लैंगिक अध्ययन विषय में है) प्राथमिकता के तौर पर प्रशिक्षण कार्य आवंटित किया जाता है जोकि गलत है, साथ ही अतिथि विद्वान के पद पर नियुक्ति के समय मनोज गुप्ता को पीएचडी उपाधि प्राप्त नहीं हुई थी फिर भी उन्हें वरीयता दी गई।
शैक्षणिक सत्र 2019-20 20 में हिंदी विभाग हेतु कोई अतिथि विद्वान आमंत्रित नहीं किया गया था फिर भी विश्वविद्यालय द्वारा 22 जून 2020 को आयोजित किए गए हिन्दी विषय से सम्बन्धित राष्ट्रीय वेबीनार में कुसुम त्रिपाठी को हिंदी विभाग में दर्शाया गया है जबकि कुसुम त्रिपाठी की नियुक्ति महिला अध्ययन विषय में अतिथि विद्वान के रूप में हुई है। इस तरह कुलपति महोदया के द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर विश्वविद्यालय से संबंधित गलत प्रचार प्रसार किया जा रहा है।
विश्वविद्यालय के द्वारा महामारी के दोर में सेवा से स्थगित किए जाने एवं मानदेय वितरण न किए जाने की शिकायतअतिथि विद्वानकेद्वारायूजीसी, मानवाधिकार आयोग भारत सरकार, विकलांग पुनर्वास केंद्र, श्रम विभाग, इंदौर जिला कलेक्टर, उच्च शिक्षा भोपाल मध्य प्रदेश में शिकायत करने के बावजूद भी इन संस्थाओंएवं विश्वविद्यालय के द्वारा शिकायतकर्ता को आज दिनांक तक कार्यवाही से संबंधित कोई जानकारी नहीं दी गई।