दिनेश निगम ‘त्यागी’
इस सच से कोई अनजान नहीं कि कोरोना महामारी से निबटने में वैक्सीन की महत्वपूर्ण भूमिका है। बावजूद इसके इसे लेकर लगातार आरोप-प्रत्यारोप जारी हैं। तब से ही सवाल उठाए जाने लगे थे, जब वैक्सीनेशन अभियान शुरू नहीं हुआ था। हद तब हो गई जब मप्र ने एक दिन के वैक्सीनेशन में रिकार्ड बनाया। इस उपलब्धि पर हर प्रदेशवासी को गर्व होना चाहिए लेकिन इस पर भी सवाल उठाए जाने लगे। कहा गया कि फर्जी आंकड़े दिखाकर वर्ल्ड रिकार्ड का दावा किया गया। मुझे लगता है कि ऐसे आरोपों और बहस से प्रदेश का हर नागरिक दुखी हुआ।
राजनीति अपनी जगह है। पक्ष-विपक्ष मे बहस होना चाहिए लेकिन यदि प्रदेश किसी मसले पर दुनिया में उपलब्धि हासिल कर रहा है तो राजनीति से ऊपर उठकर एक सुर में इसकी तारीफ और प्रशंसा होना चाहिए। कांग्रेस विरोध करने की बजाय यह कहकर अपनी भी पीठ थपथपा सकती थी कि चूंकि कमलनाथ और अरुण यादव जैसे नेताओं ने वैक्सीनेशन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने की अपील लोगों से की थी, इसकी वजह से भीड़ उमड़ी और रिकार्ड बना। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपील करने के लिए पहले ही कमलनाथ एवं अरुण यादव को शुक्रिया बोल चुके थे। पर लगता है कांग्रेस यहां चूक कर गई।
दिग्विजय ने ऐसे कराया विरोधियों का मुंह बंद….
धारा 370 से संबंधित बयान के कारण घिरे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह द्वारा अब तक भाजपा के किसी नेता के खिलाफ मानहानि का केश किए जाने की खबर नहीं है, लेकिन सायबर सेल जाकर शिकायत करने का उनका कदम एक तीर से कई निशाने साधता दिख रहा है। सायबर सेल जाकर उन्होंने ट्वीटर और मीडिया क्लब चैट के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। आरोप लगाया गया था कि उनकी बात को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया, वह भी असंवैधानिक तरीके से। दिग्विजय ने शिकायत दर्ज कराने के बाद ही उन पर तालिबानी, पाक परस्त होने एवं बाहर से फंडिग का आरोप लगाने वाले नेताओं के खिलाफ मानहानि का केश करने की चेतावनी दी थी। दिग्विजय ने मानहानिक का केश भले नहीं किया लेकिन सायबर सेल के बाद से इसे लेकर भाजपा चुप है और अन्य विरोधी भी। दिग्विजय के खिालफ हमले कम हुए हैें। इस तरह दिग्विजय ने एक तीर से दो निशाने साध लिए। एक, पार्टी हाईकमान को यह संदेश देने में सफल रहे कि धारा 370 को लेकर उन्होंने वह नहीं कहा था, जो प्रचारित हुआ और दो, भाजपा बैकफुट पर आ गई। हालांकि इस बीच दिग्विजय का ऐसा कोई बयान भी नहीं आया जिससे भाजपा को हमला करने का मौका मिले।
पृथ्वीपुर में होगी भार्गव के कौशल की परीक्षा….
प्रदेश के अपराजित योद्धा राज्य के पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव का जल्दी ही एक बड़ी चुनौती से सामने होने वाला है। इसमें उनके राजनीतिक कौशल की परीक्षा होगी। यह चुनौती है पृथ्वीपुर विधानसभा सीट के लिए होने वाला उप चुनाव। सीट कांग्रेस के कद्दावर नेता पूर्व मंत्री बृजेंद्र सिंह राठौर के निधन के कारण खाली हुई है। क्षेत्र में राठौर परिवार का खासा दबदबा है और असर भी। भाजपा के कद्दावर नेता गोपाल भार्गव को जबलपुर के साथ निवाड़ी जिले का भी प्रभारी मंत्री बनाया गया है। पृथ्वीपुर विधानसभा सीट इसी जिले के अंतर्गत आती है। साफ है कि यहां भाजपा की जीत का दारोमदार भार्गव के कंधों पर होगा। चुनौती इसलिए भी बड़ी है क्योंकि दमोह विधानसभा सीट के लिए भी उन्हें भूपेंद्र सिंह के साथ जवाबदारी सौंपी गई थी, लेकिन यह सीट भाजपा के हाथ से निकल गई। यहां के तो प्रभारी मंत्री ही भार्गव हैं, इसलिए भाजपा जीती तो मुख्यमंत्री शिवराज के साथ उनकी भी वाहवाही और हारी तो ठीकरा सिर्फ भार्गव के सिर ही फूटेगा। समस्या यह भी है कि बृजेंद्र सिंह राठौर के निधन के कारण कांग्रेस को सहानुभूति का लाभ भी मिल सकता है। लिहाजा, चुनौती का मुकाबला कर भार्गव सीट कैसे भाजपा की झोली में डालते हैं, यह देखने लायक होगा।
कमलनाथ के गायब होने पर अटकलें का दौर….
राजनीतिक हलकों में कमलनाथ के गायब होने और निष्क्रयता को लेकर अटकलें तेज हैं। बीमार होने व अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद उन्हें स्वस्थ तो बताया जा रहा है लेकिन वे अब तक भोपाल नहीं आए। उनकी उपस्थिति उनके द्वारा लिखे गए पत्रों एवं बयानों के जरिए ही देखने को मिल रही है। जून में ही वे कांग्रेस की संभागवार बैठकें लेने वाले थे। इसका कार्यक्रम भी जारी हो गया था। अचानक बताया गया कि सोनिया गांधी ने दिल्ली में जरूरी बैठक बुलाई है, इसमें कमलनाथ को हिस्सा लेना है। लिहाजा, बैठकें स्थगित कर दी गर्इं। इसके बाद न कमलनाथ आए और न ही बैठकों का कोई नया कार्यक्रम जारी हुआ। जैसा आमतौर पर होता है, कमलनाथ को लेकर अटकलों का दौर प्रारंभ हो गया। कोई कह रहा है कि कमलनाथ बदले जाने वाले हैं तो किसी का कहना है कि अभी वे पूरी तरह से स्वस्थ नहीं है। वजह जो भी हो लेकिन कमलनाथ के न आने से कांग्रेस की पूरी सक्रियता बयानों तक ही सीमित है। एक पुल के उद्घाटन के कारण पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई, इसके खिलाफ जरूर कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता सड़कों पर दिखाई पड़े हैं। कांग्रेस का काम इससे चलने वाला नहीं है। कमलनाथ को लेकर स्थिति स्पष्ट की जाना चाहिए।
काम की अलग स्टाइल से सुर्खियां बटोरते प्रद्युम्न….
ज्योतिरादित्य सिंधिया के कट्टर समर्थक, प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर की आप प्रशंसा करें या आलोचना, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा में वे ही हैं। कभी वे महाराज को साष्टांग दंडवत करने के कारण सुर्खियों में रहते हैं, कभी नालों में उतरकर, सार्वनजिक शौचालयों में प्रवेश कर खुद सफाई करने के कारण चर्चा में रहते हैं तो कभी बिजली के खंबे चढ़कर बिजली सुधारने एवं गरीब परिवार की देहरी में बैठकर रोटी मांग कर खाने के कारण। हाल में मंत्रिमंडल की बैठक में यशोधराराजे सिंधिया से कथित विवाद और मंच से गिर जाने के कारण वे शोहरत हासिल कर बैठे। यशोधरा एवं प्रद्युम्न मंत्रिमंडल की बैठक में किसी भी बहस से इंकार कर रहे हैं लेकिन अगले ही दिन तोमर को प्रदेश भाजपा कार्यालय तलब कर लिया गया। उन्हें लगभग सवा घंटे तक सुहास भगत के सामने हाजिरी देकर स्पष्टीकरण देना पड़ा। सवाल यह है कि यदि कोई विवाद नहीं हुआ था तो यह हाजिरी क्यों? इसके बाद वे एक कार्यक्रम में मंच से गिर गए तो तोमर ने कहा कि शायद मुझमें अहंकार आ गया था इसलिए मुझे ऊपर वाले ने चेतावनी दे दी। इस तरह तोमर से जुड़ी हर घटना से एक बात साफ है कि चर्चा के हर कारण से जनता जुड़ी है। इसलिए वे काम की अपनी अलग स्टाइल से जननेता के तौर पर उभर रहे हैं। इससे उन्हें राजनीतिक नुकसान की बजाय लाभ की संभावना ज्यादा दिखती है।