अरुण दीक्षित
भोपाल: पिछले कुछ समय से भाजपा “कमाल” करती रही है!ऐसा ही कमाल मध्यप्रदेश भाजपा ने मंगलवार की शाम को किया। उसने अपनी प्रदेश कार्यसमिति के सदस्यों की सूची जारी की।इस सूची में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित चार सौ से ज्यादा नाम थे।कमाल की बात यह थी कि शिवराज सहित हर नेता के नाम के आगे उसकी जाति लिखी हुई थी। जैसे ही सूची मीडिया तक पहुंची हंगामा हो गया। आनन फानन में सूची बदली गयी !देर रात दूसरी सूची जारी हुई।
सूची तो बदल गयी।उसे जारी करने बाले मीडिया प्रभारी ने यह भी कह दिया कि पहली सूची गलती से जारी हो गयी थी उसे सुधार कर दुबारा जारी किया गया है।लेकिन न तो प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा कुछ बोले और न ही बात बात पर मीडिया की ओर दौड़ने वाले नेता।उधर इस एक गलती ने भाजपा तो दूर उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है।अनुशासन की मर्यादा के चलते पार्टी के नेताओं ने “मौन” धारण कर लिया है।लेकिन वे मानते हैं कि पार्टी के स्तर पर बहुत बड़ी गलती हुई है।
उल्लेखनीय है कि विष्णु दत्त शर्मा 15 फरबरी 2020 को मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बनाये गए थे। उन्होंने 17 फरबरी को अपना कार्यभार ग्रहण किया था।करीब एक साल बाद 13 जनवरी 2021 को उन्होंने अपने पदाधिकारी घोषित किये थे।इसके 6 महीने बाद 8 जून को कार्यसमिति के सदस्यों के नाम घोषित किये। जम्बो कार्यसमिति में कौन छूटा, किसका नाम जुड़ा,कौन किस पर भारी रहा और कौन हाशिये पर पहुंच गया,इन सवालों पर चर्चा न करके सूची के पीछे की भावना पर बात की जाए तो इतना साफ है कि भाजपा में जाति सबसे महत्वपूर्ण हो गयी है।इसीलिए जब सूची बनी तो हर नेता के नाम के सामने उसकी जाति लिखी गयी।उसे सीधे मीडिया तक पहुंचा दिया गया।
पार्टी से जुड़े अधिकांश बड़े नेता यह मानते हैं कि संगठन में जातिगत समीकरणों का ध्यान रखा जाता रहा है।लेकिन नेताओं की जाति बताने का ऐसा साहस अभी तक किसी नेता ने नही किया।एक वरिष्ठ नेता के मुताविक एक ओर हम पूरा जीवन संघ के निर्देश पर जाति विहीन समाज की अवधारणा पर काम करते रहे और अब जाति ही सबसे महत्वपूर्ण हो गयी।यह तो संघ की विचारधारा के ही खिलाफ है।
पार्टी की इस वापस ली गई सूची पर कोई नेता बात करने को तैयार नही है।उन्हें मालूम है कि बड़ी गलती हुई है।इसके दूरगामी परिणाम होंगे।इसलिये वे इसे मानवीय भूल कह कर आगे बढ़ रहे हैं।लेकिन सच यह है कि चार सौ से ज्यादा लोगों की जाति पहचान कर उसे दर्ज करना और फिर उसे मीडिया तक पहुंचाना मात्र मानवीय भूल नही हो सकती है।यह भाजपा की राजनीति का वह चेहरा सामने ला रही है जिसे वह हमेशा छिपाती रही है। ऐसा नही है कि लोग इस मुद्दे पर बोल नही रहे हैं! जमाने तक तक संघ और भाजपा से जुड़े रहे लोगों ने सोशल मीडिया में अपनी पीड़ा जाहिर की है।
एक जमाने मे ग्वालियर की राजनीति में भाजपा का चेहरा रहे वरिष्ठ नेता राज चड्ढा ने तो अपनी फ़ेसबुक वाल पर बहुत ही तल्ख टिप्पणी की है।उन्होंने लिखा है-प्रदेश भाजपा कार्यसमिति के सदस्यों के नाम के आगे उनकी जाति का उल्लेख निंदनीय,लज्जाजनक और राष्ट्रीय एकता की जड़ों में मट्ठा डालने वाला है।खेद है कि यह काम उस पार्टी के कर्णधारों ने किया है जो संघ की शाखाओं में आज तक गाते रहे हैं-भूल कर के भी मुख पर जाति पंथ का नाम न हो ! सत्ता की भूख कहाँ तक ले जाएगी।
यह भी एक संयोग है कि जिस पदाधिकारी ने यह सूची जारी की वह भी ग्वालियर से ही ताल्लुक रखता है। चड्ढा अकेले नही हैं।एक जमाने में संघ के लिए नया संविधान लिखने वाले हिन्दू चिंतक अनिल चावला भी इस सूची से क्षुब्ध हैं।चावला कहते हैं-राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ भाजपा की मातृसंस्था है।संघ का मूल उद्देश्य हिंदुओं को संगठित करना है।अपनी स्थापना के समय से ही संघ हिंदुओं के बीच जाति की दीवार को खत्म करने के लिये प्रयासरत है।उसका मूल उद्देश्य ही समाज में समरसता स्थापित करना है। भाजपा सहित संघ के सभी आनुषंगिक संगठन इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए कटिबद्ध हैं।
मध्यप्रदेश भाजपा की कार्यसमिति में जाति के उल्लेख को उपरोक्त संदर्भ में देखने की आवश्यकता है।भाजपा द्वारा जाति उल्लेख के साथ सूची प्रकाशित करना कोई छोटी घटना नही है।यह सूची यह प्रदर्शित करती है कि भाजपा संघ के मूल सिद्धांतों से कितनी दूर निकल आयी है।कुछ हद तक यह संघ की विफलता को भी दर्शाता है।यदि स्थापना के साढ़े नौ दशक बाद संघ से जुड़ा एक राजनीतिक दल जाति को ऐसी प्रमुखता दे रहा है तो संघ को भी आत्ममंथन करने की जरूरत है।
एक जमाने में मध्यप्रदेश में भाजपा के पितृपुरुष कुशाभाऊ ठाकरे के बहुत करीब रहे अनिल चावला कहते हैं- हल्ला मचने पर जाति आधारित सूची को वापस ले लेना और दूसरी सूची जारी कर देना पर्याप्त नही कहा जा सकता।भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष को इसके लिये क्षमा याचना करनी चाहिए।संघ को भी भाजपा से अपने रिश्ते पर पुनर्विचार करना चाहिये।यदि भाजपा हिन्दू समाज में समरसता कायम करने के उद्देश्य से भटक कर केवल चुनाव लड़ने वाली मशीन बन गयी है तो फिर संघ को अपने सभी प्रचारक भाजपा से वापस ले लेने चाहिये! अगर नही तो उसे अपने उद्देश्य फिर से स्पष्ट करने चाहिए।क्योंकि संघ की दृष्टि से यह एक भयंकर भूल है।जिसकी कोई क्षमा नही है।
सालों तक संघ और भाजपा की मुख्य धारा में रहे एक अन्य वरिष्ठ नेता इस सूची को देखकर आश्चर्यचकित नही हैं।नाम न छापने की शर्त पर वे कहते हैं-सब कुछ बदल गया है!क्या संघ और क्या भाजपा!दोनों ही संघटन कुछ व्यक्तियों के हितसाधन का जरिया बन गए हैं।जिस भाजपा में पहले नेताओं समूह फैसला करके व्यक्तियों तक पहुंचाता था उसमें अब व्यक्ति फैसले लेते हैं और समूह उनका पालन करता है।जब मूल ही बदल गया तो जाति का उल्लेख बहुत छोटी बात है।क्योंकि यह इस देश की कड़बी सच्चाई है कि राजनीति जाति पर टिक गई है।बिना जाति के राजनीति सम्भव नही है।
प्रदेश कार्यसमिति की सूची में जाति के अलाबा भी कई और ऐसे बिंदु हैं जो चर्चा में हैं।उन पर भी चर्चा चल रही है।खासतौर पर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का नाम न होना चर्चा में है। लेकिन उमा भारती अभी तक नही बोली हैं ! न जाति पर न अपना नाम न होने पर।वैसे वह यह साफ कर चुकी हैं कि वे प्रदेश में सक्रिय राजनीति में लौटेंगी।देखना यह है कि अब संघ और उमा भारती क्या कदम उठाते हैं।