अरविंद तिवारी- सरकार के माइक वन और टू यानी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के रिश्तो में साल भर बाद अचानक बहुत गर्मजोशी आ गई है। मिश्रा फिर सरकार के मुख्य प्रवक्ता की भूमिका में आ गए हैं और मौका मिलने पर मुख्यमंत्री की जमकर तारीफ मैं कोई कसर बाकी नहीं रखते हैं। दरअसल बंगाल में भाजपा की हार ने शिवराज सिंह चौहान को लेकर जो राजनीतिक चर्चाएं थी उन्हें विराम दे दिया है। दूसरा यह है कि कोई भी यह नहीं चाहता कि कोविड के इस दौर में कांग्रेस को कोई मौका मिले और सरकार के लिए नई परेशानी खड़ी हो। वैसे माइक टू पहले भी कई बार माइक वन के संकटमोचक की भूमिका निभा चुके हैं।
पिछले दिनों जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शहडोल में जनप्रतिनिधियों और अफसरों से रूबरू हो रहे थे तब उनका अंदाज बिल्कुल अलग था। राजनेता नहीं राजनीतिज्ञ की भूमिका का निर्वहन करते हुए मुख्यमंत्री ने बैठक में मौजूद कांग्रेस के जिला अध्यक्ष और कोतमा के कांग्रेस विधायक सुनील सराफ को न केवल उनकी बात कहने का मौका दिया बल्कि यह भी कहा कि यहां ना कांग्रेस न भाजपा। यहां हम जनता के मददगार की भूमिका में हैं और इस बात की चर्चा करने के लिए बैठे हैं कि जो कमियां हैं उन्हें कैसे दूर किया जाए। मुख्यमंत्री का रवैया देख बैठक में कांग्रेसियों से उलझने के लिए तैयार बैठे भाजपा के दिग्गजों के तेवर भी ठंडे पड़ गए।
संकट के समय सज्जनता और सहनशीलता कभी-कभी आपका बहुत मजबूत पक्ष हो जाता है। इंदौर के प्रभारी मंत्री श्री तुलसी सिलावट के साथ भी ऐसा ही कुछ है। कोरोना संक्रमण के भयावह दौर में सिलावट अपने इसी अंदाज के कारण सबके चहेते बन गए। वह स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के बीच तो तालमेल जमा ही रहे हैं, छोटे-मोटे मुद्दों को लेकर असंतुष्ट लोगों और जनप्रतिनिधियों के बीच भी सेतु बन गए हैं। अपनी गलतियों को स्वीकार करने से भी उन्हें गुरेज नहीं रहता है और जहां सरकार का पक्ष दमदार से रखना होता है वहां भी वे पीछे नहीं रहते हैं। सही कहा जाता है कि सबको साध लेते हैं तुलसी भाई।
असम में भाजपा फिर सत्ता में आ गई है। मध्य प्रदेश में अभी नगरीय निकाय चुनाव की दूर-दूर तक कोई संभावना दिख नहीं रही है। जो 4 उपचुनाव होना है उनमें भी अभी समय दिख रहा है। ऐसे में सुहास भगत की नई भूमिका जल्दी तय हो जाए तो चौंकने की जरूरत नहीं है। असम के विधानसभा चुनाव में नरेंद्र सिंह तोमर के साथ मिलकर जो शानदार पारी भगत ने खेली है वह आने वाले दिनों में भारतीय जनता पार्टी में उनका कद और बढ़ाने वाली है। देखना बस इतना है कि वह नार्थ ईस्ट में ही किसी अहम भूमिका में रखे जाते हैं या फिर किसी और चुनौतीपूर्ण दायित्व पर तैनात किए जाते हैं।
कांग्रेस के तीन कद्दावर नेताओं को पार्टी में अपनी भूमिका का लंबे समय से इंतजार है। तीनों प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे हैं और केंद्र में मंत्री भी। ये नेता है कांतिलाल भूरिया सुरेश पचौरी और अरुण यादव। भूरिया अभी विधायक हैं और यदि कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ते हैं तो उनके लिए कुछ संभावना है। यादव को एक बार फिर खंडवा से लोकसभा उपचुनाव लड़ने का मौका मिल सकता है रही बात पचौरी की तो कांग्रेस के इस कद्दावर नेता की भूमिका अब दिल्ली के बजाय भोपाल में ही तय होती नजर आ रही है और इसमें भी मुख्य भूमिका कमलनाथ को ही अदा करना है।
देपालपुर का इतिहास बड़ा विचित्र है। दोनों दिवंगत पटेलो निर्भय सिंह और रामेश्वर पटेल कि कभी नहीं पटी फिर जगदीश पटेल और प्रेम नारायण पटेल आमने-सामने रहे और अब मनोज पटेल और विशाल पटेल। लेकिन कोरोना के इस कठिन दौर में दोनों युवा पटेलों विशाल और मनोज को एक जाजम पर बैठा दिया है। दोनों सियासत को भूल कर गांव-गांव घूम रहे हैं और लोगों के मददगार की भूमिका में हैं यही कारण है कि सांवेर और महू के बजाय देपालपुर क्षेत्र में कोरोना से निपटने के इंतजाम अब ठीक-ठाक हो गए हैं। किसी ने सही कहा कि देर आए पर दुरुस्त आए।
मुरैना के बारे में यह कहा जाता है कि वहां यदि ठाकुर और गुर्जर किसी अफसर के खिलाफ एकजुट हो जाएं तो यह माना जाना चाहिए की शराब और रेत के अवैध कारोबार पर नकेल कस दी गई है। लो प्रोफाइल पर तेजतर्रार आईपीएस अफसर सुनील पांडे ने यहां बड़े नेताओं की सरपरस्ती में चल रहे शराब और रेत के कारोबार पर ऐसा शिकंजा कसा कि सब त्राहि-त्राहि करने लगे हैं। इनमें एक पूर्व मंत्री और कुछ विधायक भी शामिल हैं। अब कोशिश या हो रही है कि यहां की राजनीति पर नियंत्रण करने वाले 2 बड़े नेताओं को भरोसे में लेकर एसपी को जिले से बाहर का रास्ता दिखाया जाए। दिन पहले तो सोशल मीडिया पर उनके तबादले की खबर तक प्रसारित हो गई।
मैनेजमेंट तो युवा आईएएस अफसर अनूपपुर कलेक्टर चंद्रमोहन ठाकुर जैसा। बे जब कांग्रेस की सरकार थी तब अनूपपुर में पदस्थ हुए थे और अभी भी वही बरकरार हैं। कब वे कांग्रेसियों के प्रिय पात्र थे और अब भाजपाइयों के। स्थिति यह है कि उन्होंने कांग्रेस के एक विधायक का तो फोन उठाना ही बंद कर दिया है। परेशान विधायक मुख्यमंत्री के सामने यह कह कर अपना दुखड़ा रो चुके हैं कि मैं उन्हें निजी काम से नहीं जनता से जुड़े मुद्दों के लिए कॉल करता हूं। हां एक बात जरूर है ठाकुर से मंत्री बिसाहूलाल सिंह तब भी प्रसन्न थे और अब भी प्रसन्न है। कारण आप पता कीजिए।
चलते चलते
संबंध निभाने में कैलाश विजयवर्गीय का कोई सानी नहीं है इन संबंधों का फायदा वह गाहे-बगाहे इंदौर को दिलवा ही देते हैं। कभी पीसी सेठी और फिर महेश जोशी के दौर में भी ऐसा फायदा इंदौर को मिला है। जब इंदौर में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की भारी मारामारी चल रही थी तब विजयवर्गीय इतनी मशीनों का बंदोबस्त करवा दिया कि सब चौंक पडे। इसके पहले ऑक्सीजन और रेमडेसिविर इंजेक्शन के मामले में भी लंबी उनकी पहुंच का फायदा इंदौर को मिला।
पुछल्ला
पता करिए वह कौन युवा आईएएस अफसर है जो अपने आईएएस अफसर पति को तलाक दे रही है। दोनों अफसर बहुत लो प्रोफाइल हैं, दोनों की सादगी की चर्चा है लेकिन विचार मेल नहीं खाने के कारण यह फैसला ले रहे है।
अब बात मीडिया की
♦️ सेल्यूट लोकमत पत्र समूह के सीएमडी पूर्व सांसद श्री विजय दर्डा को जिन्होंने अपने दिवंगत पत्रकार श्री संजीव गुप्ता के परिजनों को 1000000 की आर्थिक मदद की है। दिल्ली में लोकमत समूह के लिए पत्रकारिता करने वाले श्री गुप्ता को बेहतर से बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए श्री दर्डा ने आधी रात को कई लोगों के दरवाजे पर दस्तक दी थी।
♦️ दैनिक भास्कर समूह ने भी असमय काल के गाल में समाने वाले अपने स्टाफ के लोगों के लिए बड़ी मदद की घोषणा की है। भास्कर अपने बीमार साथियों के इलाज में भी पूरी मदद करेगा और दिवंगत साथियों के बच्चों की पढ़ाई और परवरिश में भी योगदान देगा। सुधीर जी आपका यह निर्णय भास्कर के साथियों के लिए बहुत बड़ा संबल है।
♦️ नईदुनिया इंदौर के साथियों की बड़ी दिक्कत यह है कि आखिर वह किसकी माने। स्टेट एडिटर सतगुरु शरण अवस्थी की या इंदौर संस्करण के संपादक कौशल किशोर शुक्ला की। इसी के चलते यहां का संपादकीय स्टाफ दो धडों में बंट गया है।
♦️ वरिष्ठ पत्रकार श्री मिलिंद वायवर मृदुभाषी अखबार के इंदौर संस्करण के संपादक हो गए हैं। वह पहले दैनिक भास्कर, पत्रिका और राज एक्सप्रेस में अहम भूमिका में रह चुके हैं।