रमजान ईद – यादें कैद नहीं रहतीं

Mohit
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रमजान ईद - यादें कैद नहीं रहतीं

विजय सिंह –

आज सुबह मैने माहोल देखते डरते डरते , जाकीर को फोन लगाया, मैंने बोल : जाकीर , विजय मामा बोल रहा हूँ, सब ठीक हैं, ना सब! जाकीर ने जवाब दिया, हाँ, मामा सबलोग ठीक हैं !

जाकीर, मतलब कॉमरेड जानीमियां का बड़ा बेटा है , जो हर ईद पर हमलोगों को बराबर ग्यारह बजे के करीब पार्टी ओफिस नरोडा रोड बुलाने आता, चलो सब मामा लोग अब्बू , अम्मी बुलवा रहे हैं !

और, हम सब लोग पहुंच जाते ईद की मुबारकबादी देनें, मीठा, बिरयानी, सिमई सामने आ जाती, और, हमारी नसीहत की क्लास लग जाती ! कामरेड जानीमियां हमारे में सबसे सीनीयर जिनकी उम्र अब लगभग अस्सी के करीब होगी, क्योंकि हमारे साथ के लगभग ६० से उपर के हैं !

नसीहत की क्लास में मीठे ठपके डांट डपट सबके हिस्से में झोली में गिरते , बहन हमारी बोलती कुछ तो खा लेने दो, भाईयों को! भगत सिंह राजपूत, रामसागर सिंह परिहार, राममूर्ति तिवारी, कृपाशंकर शर्मा, चंद्रकांत रुपेरा, अन्ना दुराई सबको उनकी डांट डपट और कामरेड का प्यार अदभुत था ! इसे हम लोग मिनी पार्टी क्लास कहते थे ! समय के चलते सबके अपने रहने के ठिकाने बदल गये !

आज की तारीख में कामरेड जानीमियां स्वस्थ सलामत हैं, यही हमारी ईदी है!