भाजपा ने रविवार को इंदौर के 33 मंडल अध्यक्षों और प्रतिनिधियों की सूची जारी की, जिससे संगठन के भीतर लंबे समय से जारी इंतजार का समापन हुआ। इससे तीन दिन पहले ग्रामीण क्षेत्र के 16 मंडल अध्यक्षों के नाम भी घोषित किए गए थे। फिलहाल, इंदौर विधानसभा-2 के दीनदयाल और रामायण मंडलों के अध्यक्षों के नाम को होल्ड पर रखा गया है। यह सूची भाजपा के निर्वाचन अधिकारी विवेक नारायण शेजवलकर और जिला पर्यवेक्षक सुधीर गुप्ता के अनुमोदन के बाद जारी की गई।
इंदौर में 33 मंडलों में केवल दो महिलाओं को अध्यक्ष पद
हालांकि पार्टी ने महिलाओं को 33% आरक्षण देने का वादा किया था, लेकिन यह लक्ष्य शहर और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में पूरा नहीं हो सका। इंदौर के 33 मंडलों में से केवल दो महिलाओं को अध्यक्ष बनाया गया है। लक्ष्मणसिंह गौड़ मंडल के लिए इंदु श्रीवास्तव और एपीजे अब्दुल कलाम मंडल के लिए परवीन बी को जिम्मेदारी सौंपी गई है। परवीन बी इस सूची में शामिल होने वाली एकमात्र मुस्लिम महिला हैं। वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में किसी भी महिला को अध्यक्ष नहीं बनाया गया, जिससे पार्टी के इस निर्णय पर सवाल उठ रहे हैं।
अध्यक्षों की नियुक्ति में आई कई चुनौतियाँ
मंडल अध्यक्षों की सूची तैयार करने में संगठन को विभिन्न स्तरों पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। विधानसभा-1 में सभी मंडल अध्यक्षों को बदल दिया गया, जबकि कुछ पुराने अध्यक्षों ने पद पर बने रहने की इच्छा व्यक्त की, जिसे संगठन ने खारिज कर दिया। विधानसभा-2 में एक मंडल के लिए रायशुमारी से पहले ही विरोध और शिकायतें उठने लगीं। विधानसभा-4 में पूर्व मंडल अध्यक्ष सचिन जैसवानी ने यह शिकायत की कि उन्हें रायशुमारी में शामिल नहीं किया गया, जबकि विधानसभा-5 और राऊ में भी मंडल अध्यक्षों के बदलाव की संभावना जताई जा रही थी।
विधायकों की प्राथमिकता
इस बार मंडल अध्यक्षों की सूची में विधायकों का प्रभाव साफ तौर पर देखा गया, हालांकि क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल ने पहले यह स्पष्ट किया था कि चुनाव संगठन की प्रक्रिया के तहत होंगे और विधायकों की सिफारिशों पर मंडल अध्यक्षों का चयन नहीं किया जाएगा। इसके बावजूद, खासकर इंदौर ग्रामीण की सूची में विधायकों का दबदबा स्पष्ट रूप से दिख रहा है। आने वाले चुनावों में इन मंडल अध्यक्षों और उनकी टीमों की महत्वपूर्ण भूमिका होने की संभावना है। हालांकि, महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलने और विधायकों के बढ़ते प्रभाव ने पार्टी के संगठनात्मक संतुलन और पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं। इस सूची को भोपाल से अंतिम मंजूरी दी गई, लेकिन स्थानीय नेताओं और विधायकों के बीच खींचतान ने इसे तैयार करने की प्रक्रिया को जटिल बना दिया।