Chhath Puja : लोक आस्था का महापर्व छठ की शुरुआत हो चुकी है, और इस साल 2024 में यह पर्व 5 नवंबर को नहाय खाय से शुरू होकर, 6 नवंबर को खरना, 7 नवंबर को संध्या अर्घ्य और 8 नवंबर को भोरवा घाट के अर्घ्य के साथ समाप्त होगा। यह पर्व सूर्य देव की पूजा और आभार व्यक्त करने का एक अहम अवसर है। इस महापर्व का संबंध सिर्फ आज के समय से नहीं है, बल्कि यह रामायण और महाभारत काल से जुड़ा हुआ है।
आइए, जानते हैं कि छठ महापर्व का रामायण और महाभारत से क्या संबंध है..
रामायण काल में छठ का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठ पर्व का संबंध रामायण काल से भी है। जब भगवान श्रीराम 14 वर्षों का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे, तो उन्हें रावण वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए एक विशेष यज्ञ करने का विचार आया। इसके लिए वे ऋषि-मुनियों से सलाह लेने गए और राजसूय यज्ञ करने का निर्णय लिया। इसी बीच, मुद्गल ऋषि ने उन्हें अपने आश्रम आने का निमंत्रण दिया। जब श्रीराम और माता सीता उनके आश्रम पहुंचे, तो ऋषि ने माता सीता पर गंगा जल छिड़ककर उन्हें शुद्ध किया।
इसके बाद मुद्गल ऋषि के कहने पर माता सीता ने शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य देव की पूजा की और छठ का व्रत किया। इस व्रत के जरिए सीता माता ने सूर्य देव से आशीर्वाद प्राप्त किया, और यही परंपरा आज भी मनाई जाती है। इस प्रकार, छठ महापर्व का संबंध रामायण काल से जुड़ा हुआ है, जिसमें सूर्य देव की उपासना की जाती है।
महाभारत काल से छठ पर्व का संबंध
महाभारत काल से भी छठ पर्व जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब पांडवों ने अपना सब कुछ जुए में हार लिया था, तब द्रौपदी ने भगवान सूर्य की उपासना के लिए छठ व्रत किया। छठ के इस व्रत से द्रौपदी की मनोकामना पूरी हुई और पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाट वापस मिल गया। यही नहीं, इस पर्व का एक अन्य महत्वपूर्ण संबंध सूर्य पुत्र कर्ण से भी है।
सूर्य पुत्र कर्ण और छठ पर्व
कर्ण, महाभारत के एक प्रमुख पात्र, सूर्य देव के परम भक्त थे। कहा जाता है कि कर्ण प्रतिदिन घंटों पानी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते थे। उनकी यह अडिग भक्ति और सूर्य देव की कृपा से ही कर्ण एक महान योद्धा बने थे। कर्ण की इस पूजा विधि को ही छठ पूजा का प्रारंभ माना जाता है, जिसमें सूर्य देव की उपासना और अर्घ्य देने की परंपरा अब तक चली आ रही है।
छठ पर्व की लोकप्रियता और प्रसार
छठ पर्व मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में मनाया जाता है, लेकिन अब इस पर्व की महिमा को देखते हुए यह भारत के अन्य हिस्सों के साथ-साथ विदेशों में भी मनाया जाने लगा है। यह पर्व सूर्य देव की उपासना का पर्व है और इसमें सूर्योदय और सूर्यास्त के समय विशेष पूजा अर्चना होती है।
विशेष महत्व
छठ पूजा में भक्त विशेष रूप से सूर्य देवता और उनके योगदान के लिए आभार व्यक्त करते हैं। इसमें दिनभर उपवासी रहकर सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है और उनकी कृपा प्राप्त करने की कामना की जाती है। इस पर्व को हिंदू धर्म के लोग बड़े श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाते हैं, लेकिन इसके प्रति अन्य धर्मों में भी एक खास श्रद्धा दिखाई देती है।
इस तरह छठ महापर्व का संबंध न केवल आधुनिक समय से है, बल्कि यह रामायण और महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है। छठ का पर्व हमारे प्राचीन धार्मिक इतिहास का हिस्सा है, जिसमें सूर्य देव की उपासना की जाती है। इसके माध्यम से हम न केवल सूर्य देव के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपराओं को भी मजबूत करते हैं।