भोपाल।मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मानते हैं कि प्रदेश के कुछ इलाकों में कोरोना से जुड़ी जरूरी दवाओं की कालाबाजारी हो रही है। वे यह भी कहते हैं कि यह हैवानियत है।लेकिन चौथी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे शिवराज अपने राज्य में,अपनी आंखों के सामने हो रही इस हैवानियत को रोक नही पा रहे हैं। वे बातें तो बड़ी बड़ी कर रहे हैं पर सरकारी अमला उन पर अमल न करके उन्हें हंसी का पात्र बना रहा है।
अब यह जगजाहिर है कि मध्यप्रदेश में कोरोना कहर ढा रहा है।पिछले एक महीने से प्रदेश में हाहाकार मचा हुआ है।अस्पतालों में जगह नही है।जगह है तो ऑक्सीजन नही है।ऑक्सीजन है तो वेंटिलेटर नहीं है। डाक्टर नही हैं।स्टाफ नही है।पूरे प्रदेश में दवाओं की खुलेआम काला बाजारी हो रही है।खासतौर पर रेमडिसिवर इंजेक्शन तो कई गुने दाम पर बिक रहा है।कहीं सरकारी कर्मचारी इंजेक्शन चुरा रहे हैं तो कहीं सरकारी डाक्टर मरीजों के लिये आये इंजेक्शन बेचकर उन्हें नकली इंजेक्शन लगा रहे हैं।
निजी अस्पतालों में खुलेआम लूट हो रही है। पूरे राज्य में हालात यह हैं कि ज्यादातर निजी अस्पतालों में योग्य डाक्टर नही हैं।कोरोना मरीज आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक डॉक्टरों तथा सपोर्ट स्टाफ के भरोसे हैं। लूट खुलेआम हो रही है।सबसे पहले उसी अस्पताल का किस्सा सामने आया था जिसमें खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह कोरोना इलाज के लिए भर्ती हुए थे।
महीने भर से चल रही इस लूट पर मुख्यमंत्री का ध्यान तब गया जब दमोह उपचुनाव से उन्हें फुर्सत मिली।पहले उन्होंने कहा कि दवाओं की काला बाजारी करने वालों के खिलाफ रासुका के तहत कार्रवाई की जाएगी।कुछ जिलों में कुछ लोगों के खिलाफ रासुका के तहत कार्रवाई हुई भी लेकिन सरकार उसे रोक नही पायी।
मुख्यमंत्री लगातार चेतावनी देते रहे लेकिन उनकी चेतावनी हवा में ही घूमती रही।आम आदमी हर जगह लुटा।अस्पताल,मेडिकल स्टोर ,जांच केंद्र,एम्बुलेंस सब जगह मनमानी चल रही है।
एक महीने बाद अब उंन्होने निजी अस्पतालों की मनमानी रोकने के लिए हाई पावर कमेटी बनाई है।इसमें तीन वरिष्ठ अफसरों को रखा गया है।यह अफसर निजी अस्पतालों की लूट को रोकेंगे।सरकार ने इलाज के रेट तय कर दिए हैं।सभी निजी अस्पतालों से कहा गया है कि वे सरकार द्वारा तय की गई दरों पर ही इलाज करें।यदि ज्यादा बसूलेंगे तो सरकार उनके खिलाफ सख्त कदम उठाएगी।
इसकी शुरूआत भी हुई है।पिछले दो दिन में भोपाल में प्रशासन 4 निजी अस्पतालों में छापे मारकर मरीजों के साथ हो रही लूट को पकड़ा। बिलों की गड़बड़ी पर मरीजों के परिजनों को पैसे वापस दिलाये।जांच के दौरान यह पाया गया कि निजी अस्पताल तीन से चार गुना बिल बसूल रहे हैं।
इससे पहले सरकार ने कोरोना जांच के रेट तय किये थे।जैसे ही रेट तय हुए निजी जांच केंद्रों ने जांच ही बंद कर दी।या फिर बहुत ही सीमित कर दी सरकार उनके खिलाफ कुछ नही कर पाई।
पांच किलोमीटर के लिए एम्बुलेंस का किराया हजारों में बसूले जाने की शिकायत के बाद सरकार ने एम्बुलेंस के रेट भी तय कर दिए हैं।अब देखना है कि निजी एम्बुलेंस वाले सरकार के आदेश को कितना मानते हैं।
मुख्यमंत्री लगातार बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं लेकिन उन पर अमल नही हो पा रहा है।अब तो कांग्रेस यह आरोप लगा रहे हैं कि उनके मंत्री के परिजन ही रेमडिसिवर इंजेक्शन को ब्लैक में बेच रहे हैं।पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी यह आरोप लगाया है।
हर स्तर पर गड़बड़ हो रही है लेकिन सरकार उसे रोक नही पा रही है।दरअसल सरकार का डर ही खत्म हो गया है। भोपाल के हमीदिया अस्पताल से हुई 863 रेमडिसिवर इंजेक्शन की चोरी का मामला पुलिस ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है।खुद भोपाल डीआईजी ने कहा है कि अस्पताल स्टाफ को रिकॉर्ड मिलाने का समय दिया गया है।जबकि अस्पताल सूत्र कहते हैं कि सभी इंजेक्शन बड़े लोगों की बंदरबांट का शिकार हुये हैं।इसलिए सिर्फ कागज पूरे करके मामला खत्म कर दिया जाएगा।
मुख्यमंत्री लगातार गम्भीर बातें कह रहे हैं।लेकिन उनकी पार्टी के विधायक, मंत्री और बड़े सरकारी अफसर उनके कहे पर अमल नही होने दे रहे।
अब मुख्यमंत्री व्यथित होकर यह कहें कि दवाओं की काला बाजारी हैवानियत है तो बुरा लगता है।लेकिन उससे भी ज्यादा बुरा तब लगता है जब जो हैवानियत मुख्यमंत्री को बुरी लग रही है वह अफसरों को अच्छी लगने लगे।आपदा में अवसर का खेल बड़े पैमाने पर सरकार में बैठे अफसर खेल रहे हैं।मुख्यमंत्री बस अपनी बेवसी दिखा रहे हैं।
अब उन्होने प्रदेश में हैवानियत रोकने के लिए बड़े अफसरों की टीम बनाई है।उम्मीद की जानी चाहिए कि ये तीन बड़े अफसर मुख्यमंत्री की इच्छा के अनुरूप हैवानियत को रोकेंगे।या फिर ये भी मंत्रियों की तरह मात्र शोभा की वस्तु बनकर आकंड़े पूरे करेंगे।
फिलहाल मुख्यमंत्री दुखी हैं।लेकिन फिर भी प्रदेश की दुखी जनता लुट रही है,पिट रही है,मर रही है।बाकी तो रामराज है।