याद रखना! जैसा कर्म बीज बो रहे हो, फसल भी वैसी ही काटनी पड़ती है

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By Mohit DevkarPublished On: April 26, 2021

महेश दीक्षित

तुम्हारे जीवन की कर्म-भूमि रतिभर बंजर नहीं है…वह तो बेजा फलदायी और अत्यंत उर्वरा है…इसमें जिस तरह के कर्म भाव का बीज तुम बोते हो, वह पैदा न हो और फलदायी न हो ऐसा हो नहीं सकता…सवाल है कि तुमने किस भाव से कौनसा, किस किस्म का बीज बोया है…तो तुमने जैसा बीज बोया है, तुमको वैसी ही फसल काटनी है…वैसा ही तुमको फल मिलना तय है…जिसे तुम ईश्वर, भगवान, खुदा और गाड कहते हो, वो इस फसल (फल) में जरा भी काट-छांट नहीं करता है…वो चाहे भी तो नहीं कर सकता है… वो तो ईमानदारी से सिर्फ तुम्हारे बोए गए कर्म बीज की फसल लहलहाने और उसके फलदायी होने तक उसकी निगरानी भर करता है…और वक्त आने पर तुम्हारे हाथों में सौंप देता है कि यह संभालों तुम्हारा कर्म फसल (फल)…। ऐसे में सवाल है कि, तुम किस्म का बीज और किस भाव से जीवन की कर्म भूमि में रोजाना बो रहे हो…तुम कहो कि तुमने बीज तो धोखे का, दुख का, द्वेष का, झूठ का, फरेब का, अकड़-अहंकार का और मक्कारी का बोया है…और फसल (फल) तुम सुख और प्रेम की पा जाओ, तो यह संभव नहीं है…याद रखना, जिस भाव कर्म का बीज तुम जवानी से लेकर अब तक बोते आ रहे हो…उसके कर्मफल में कटौती कैसे भी संभव नहीं है… खुद ईश्वर-खुदा के लिए भी ऐसा कर पाना संभव नहीं है…चाहे तुम इसके लिए कितने ही पूजा-पाठ, अनुष्ठान कर लो… मंदिर-मस्जिद, गुरुद्वारे, गिरजाघर बनवा दो…दानवीर हो जाओ..तीर्थ यात्राएं कर लो…संत-महंतों और मंडलेश्वरों के अंगूठे चाट लो…तुमको कर्म की फसल (फल) तो वैसी ही काटनी है, जिस भाव कर्म का बीज तुमने जीवन भूमि में बोया था…। इसलिए भगवद गीता में श्री कृष्ण भी आगाह करते हैं कि-

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकमज़्णि॥

इसका अर्थ है कि, कर्म बीज बोने पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन उससे कर्म फल पर नहीं… इसलिए तुम चिंता सिर्फ कर्म बीज और भाव की करो…।

इसलिए होश में आओ…और अपनी बहुमूल्य जीवन कर्म भूमि में उस भाव और किस्म का बीज बोना शुरू कर दो, जैसी फसल (फल) आखिरात में तुम चाहते हो…चाहते हो कि आखिरात में प्रेम पूर्ण और सुखपूर्वक मृत्यु से महामिलन हो, तो तथाकथित उन्नति के लिए झूठ-फरेब और दंद-फंद सब छोड़ इसी वक्त से जीवन की कर्म भूमि में बिना चाहना के अपनों और सार्वजनीन के लिए प्रेम के बीज बोना शुरू कर दो…गारंटी है…फिर तुम्हारे जीवन की भूमि पर आखिरात में फूल भले न आएं, लेकिन दुखकारी कांटों की फसल तो कम से कम नहीं उगेगी…और तुम मुस्कराते हुए अपने किरदार को ब-कौशल पूरा निभाते हुए संसार से विदा हो सकोगे…।