आज विश्व पृथ्वी दिवस है

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धैर्यशील येवले

जो है, मेरे घर की छत
वही है ,दीवारें मेरे घर की
इसे कहते है ,
आकाश ,
यही तो मेरा घर है ।

ये वृक्ष , पशु , पक्षी
निर्भय हो विचरते है
निकलते है
नवांकुर मेरी
कोख से
भर देती हूँ उसमे मैं
रंग ,स्वाद ,रस , और गंध
सब कुछ है , लयबद्ध
मुझे इससे प्यार है
यही तो मेरा घर है ।

धवल शिखरों
से मंडित
सागरो से सुशोभित
गगन चुम्बी देवदार
विशाल बांहे
मखमली दूब का
गुदगुदाना
ओंस की बूंदे
मेरी पलको पर
रुकती कहा है
सभी की शरारतें
बरकरार है ,
यही तो मेरा घर है ।

बस थोड़ा उद्दंड
हो गया है मानव
मनमानी पर उतरा है
उसे अपनी भूल का
भान करा कर
मैंने उसका पंख कुतरा है ।
बेसुरा कैसे गाने दूंगी
मिलाना उसे भी सुर है
यही तो मेरा घर है ।

सूर्य ,चंद्रमा ,तारे
मैंने छत पर सज़ा रखे है
कभी उजले कभी गहरे
होते मेरे परिधान है
जन्म ,मृत्यु का भी फेर है
यही तो मेरा घर है ।