आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, संस्कृति विभाग मध्य प्रदेश शासन द्वारा आचार्य शंकर जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित पंच दिवसीय आचार्य शंकर प्रकटोत्सव के चतुर्थ दिवस में शंकर जयंती पर नगर में साधु संतो, नगरवासियों की उपस्थिती में भव्य मंगल शोभा यात्रा निकली। पालकी में आचार्य शंकर को विराजमान कर यात्रा एकात्म धाम से शंकराचार्य तिराहा, जेपी चौक होते हुए गुरु गुफा में पूजन उपरांत मार्कण्डेय संन्यास आश्रम में समाप्त हुई। नगर में विभिन्न स्थानों पर सामाजिक एवं धार्मिक संगठनों में पुष्पवर्षा, आरती कर स्वागत किया। यात्रा में नगर के महामंडलेश्वर विवेकानंद पुरी, महामंडलेश्वर नर्मदानंद बापजी,महामंडलेश्वर प्रणवानंद सरस्वती, स्वामी मस्त गिरि सहित संतजन विशेष रूप से सम्मिलित हुए।
कलश सर पर रखते हुए आगे आगे कन्याएँ चली। यात्रा में पारम्परिक वाद्ययंत्र,शंख, घंटा,मजीरे के वादन के साथ साथ शंकर दूतों, युवाओं ने ‘जय जय शंकर, हर हर शंकर’ का उद्घोष किया।
श्भज गोविंदम भज गोविंदम के शाश्वत स्वरों से गूंजा एकात्म धाम
ब्रह्मोत्सव के आरंभ में श्रृंगेरी सिस्टर्स ने आचार्य शंकर द्वारा रचित भज गोविन्दम स्तोत्र का पाठ करके दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया।
जो काम साधु संतो को करना था वह मप्र सरकार ने किया – युगपुरुष स्वामी परमानंद गिरि
शाम को ब्रम्होत्सव में मुख्य अतिथि अखंड परम धाम, हरिद्वार के संस्थापक युगपुरुष स्वामी परमानंद गिरि महाराज शामिल हुए,उन्होंने कहा कि हम सन्यासियों का सौभाग्य है कि सरकार के प्रयासों से भगवान शंकर के ज्ञान को जन- जन तक पहुंचाने के लिए ओंकारेश्वर में एकात्म धाम का निर्माण किया जा रहा है। स्वामी जी ने बताया आचार्य शंकर ने केवल बाहरी मंदिर ही नही बल्कि हमारे मन मंदिर को मजबूत बनाने के लिए श्रम किया। उन्होंने कहा कि विश्व कल्याण की भावना से मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग ने आचार्य शंकर के शाश्वत अद्वैत वेदांत के सिद्धांत के लोकव्यापीकरण का जो किया वह प्रशंसनीय है,साथ ही स्वामी जी ने कहा की आवश्यकता है की आचार्य शंकर के विचारो को हमे तावीज में बंद करके रखना नहीं चाहिए हमे उन विचारों के बीज को विश्व में जन जन ले जाना चाहिए। साथ ही लोकमान्य तिलक का उदहारण देते हुए बताया की कैसे देश के स्वतंत्रता के आंदोलन में जेल जाने के बाद भी अध्यात्मिक मार्ग को नहीं छोड़ा।साथ ही एक महत्वपूर्ण सीख देते हुआ बताया की ईश्वर से ब्रम्ह की मांग नही गुरु की मांग करनी चाहिए। अंत में ने कहा कि जो काम साधु सन्यासी ने नहीं किया वो काम मध्यप्रदेश सरकार ने किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता महामंडलेश्वर नर्मदानंद बापजी ने की। उन्होंने कहा कि महापुरुष श्रृष्टि नहीं दृष्टि बदलते है।आचार्य शंकर के विचाओ का अनुसरण करके एक श्रेष्ठ समाज,उन्नत राष्ट्र का निर्माण कर सकते है।
जो अनुभव कभी न बदले वो सत्य
सारस्वत वक्ता प्रो रामनाथ झा ने कहा कि जहा अनुभव भी बात होती है वहा गुरु की आवश्यकता होती है, जो अनुभव न बदले वहा सत्य है जो अनुभव बदल जाए वो मिथ्या । प्रो झा ने जगदीश चंद बसु का उदहारण बतलाते हुए वेदांत और विज्ञान के संबंध पर प्रकाश डाला।साथ ही आचार्य शंकर के स्तोत्र में वर्णित जननी के योगदान के महत्व व पुत्र का माता के प्रति कर्तव्य बोध करवाया।
साथ ही वेद व शंकरभाष्य पारायण के साथ दिन की शुरुआत हुई। आचार्यों द्वारा वेद की 9 शाखाओं का पारायण किया गया।
ज्ञात हो कि ओंकारेश्वर में 108 फीट की आचार्य शंकर की प्रतिमा की स्थापना के साथ ही कार्यक्रमों का आयोजन न्यास द्वारा किया जा रहा है, शंकर जयंती के अवसर पर राजधानी भोपाल में भी शंकर प्रकटोत्सव का आयोजन वृहद स्तर पर किया गया , जिसमें द्वारिका शंकराचार्य सदानंद सरस्वती जी महाराज, जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि महाराज भी शामिल हुए ।