मानव जीवन को सार्थकता प्रदान करता – महावीर दर्शन
ढाई हजार वर्ष बाद भी चिर प्रासंगिक- महावीर दर्शन
जैन धर्म 24 तीर्थंकरों के जीवन और शिक्षा पर आधारित है। तीर्थंकर यानी वो आत्माएं जो मानवीय पीड़ा और हिंसा से भरे इस सांसारिक जीवन को पार कर आध्यात्मिक मुक्ति के क्षेत्र में पहुंच गई हैं। जैन धर्म के साथ ही प्रत्येक जाति-धर्म के लिए 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के संदेशों का ख़ास महत्व है। वे भारतीय साहित्य और धर्म के भी महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हैं। उनकी शिक्षाएं जैन धर्म के मूल तत्वों पर आधारित हैं और प्रत्येक समाज में सही जीवन जीने के लिए एक मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। उनकी शिक्षाएं जीवन की गुणवत्ता, शांति और सामर्थ्य के लिए एक मार्गदर्शन का कार्य करती हैं।
महावीर स्वामी का जन्म लगभग 599 ईसा पूर्व हुआ था। उनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम तृषला था। वे वैशाली नगरी में जन्मे थे। महावीर का जन्म बहुत ही आध्यात्मिक परिस्थितियों में हुआ था। उनके प्रारंभिक जीवन का विवरण उनके अनेक लोकप्रिय कथाओं और परंपराओं में मिलता है। उनके पिता सिद्धार्थ ने उन्हें संसारिक विषयों से दूर रखकर आध्यात्मिक जीवन का आदान-प्रदान कराया।
महावीर स्वामी ने अपने जीवन को आध्यात्मिकता के माध्यम से समृद्ध किया। उन्होंने समाज में निराधारितता, विवेकहीनता और दुख की परिणामकारी प्रकृति को दूर किया। उनका जीवन साधना, संयम, और समर्पण का प्रतीक था। महावीर स्वामी ने अपने जीवन में अनेक उदाहरण स्थापित किए जो हमें धर्म, आध्यात्मिकता और सहिष्णुता के महत्व को समझाते हैं।
भगवान महावीर का जीवन परम्परागत रूप से एक तपस्वी और ध्यानी के रूप में चित्रित किया जाता है, जिन्होंने अपने जीवन को संयम, संतोष, और परम आत्मसमर्पण के माध्यम से व्यतीत किया। उनके उपदेशों का उद्दीपन देने वाला हर एक शब्द एक गहरे संदेश को व्यक्त करता है, जो मनुष्य को उनके अंदरीय और बाह्य जीवन को सही राह दिखाने में मदद करता है।
यह वर्ष भगवान महावीर का 2550 वां जयंती वर्ष है। स्वाभाविक रूप से न केवल जैन समाज अपितु संपूर्ण भारतीय समाज इस ऐतिहासिक अवसर को भगवान महावीर के आदर्श को जन-जन तक पहुंचाने के लिए उपयोग करना चाहता है। भगवान महावीर के दर्शन ने संपूर्ण मानव जाति को अपने उस अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रोत्साहित किया है जिसके अंतर्गत यह कहा जाता है की आत्मिक आनंद की अनुभूति भौतिक संसाधनों में नहीं है अपितु साधना पथ पर है। विश्व की सभी संस्कृतियां भगवान महावीर के इस दर्शन को आत्मसात कर निश्चय ही मानव जीवन के इस अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति में सफल सिद्ध होगी।
महावीर स्वामी की शिक्षाएं विविधताओं में व्याप्त हैं, लेकिन उनके चार मुख्य सिद्धांत हैं – अहिंसा, अपरिग्रह, अस्तेय, और ब्रह्मचर्य। ये सिद्धांत जैन धर्म के चार आवश्यक रत्न (जीव, ज्ञान, ध्यान, और धर्म) के अभिन्न अंग हैं और सभी जीवों के लिए शिक्षा और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
अहिंसा, जो अनिर्देशित हिंसा के अभाव को संकेत करता है, उनका प्रमुख सिद्धांत है। वे मानते थे कि सभी जीवों में जीवन है और इसलिए हमें सभी के प्रति सहानुभूति और समर्पण का भाव रखना चाहिए। उनका यह सिद्धांत न केवल व्यक्तिगत रूप से हिंसा से बचने की बात करता है, बल्कि समाज में समानता, शांति, और सहयोग के लिए भी उत्साहित करता है।
अपरिग्रह और अस्तेय उनके द्वितीय और तीसरे मुख्य सिद्धांत हैं, जो संयम, सादगी, और उदारता के प्रति आह्वान करते हैं। अपरिग्रह उनकी शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो संपत्ति और सामग्री के प्रति आत्मनियंत्रण को संजोने का काम करता है।
भगवान महावीर स्वामी का चौथा मुख्य सिद्धांत ब्रह्मचर्य है, जो ब्रह्मा के साथ चार्य का अर्थ है। इस सिद्धांत के अनुसार, व्यक्ति को अपने विचारों, वचनों, और कर्मों को नियंत्रित करना चाहिए और सम्यक् चारित्र के माध्यम से अपने जीवन को ब्रह्मचर्य में बिताना चाहिए।
महावीर स्वामी की शिक्षाएं आध्यात्मिक विकास और समृद्धि के लिए एक मार्गदर्शक रूप हैं। उनके उपदेशों का अनुसरण करने से मनुष्य अपने अंतरंग और बाह्य जीवन में संतोष, शांति और समृद्धि को प्राप्त कर सकता है। उनके उपदेशों का महत्वपूर्ण अंग है ध्यान और विचार, जो व्यक्ति को अपने आत्मा की शुद्धि और उन्नति के लिए प्रेरित करता है।
महावीर जयंती का उत्सव जैन समुदाय के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह एक ऐसा त्योहार है जो सामाजिक एकता, सहिष्णुता और आध्यात्मिकता को बढ़ावा देता है। महावीर स्वामी के संदेश ने समाज को धर्म, सहिष्णुता, और समझदारी की ओर प्रेरित किया। उनके जीवन और संदेश को याद करने के लिए महावीर जयंती का उत्सव मनाया जाता है जो समाज को धार्मिक और आध्यात्मिक उत्साह से भर देता है।
समाज में शांति, समृद्धि, और सहयोग के लिए, भगवान महावीर स्वामी की शिक्षाओं को सहर्ष स्वीकार किया जाना चाहिए। उनके उपदेशों को अपनाकर, हम सभी एक सशक्त, सामर्थ्यशाली और धार्मिक समाज का निर्माण कर सकते हैं, जो सभी जीवों के साथ संवाद, समर्थन, और सहयोग को प्रोत्साहित करता है। भगवान महावीर स्वामी के उपदेश हमें एक सद्भावनापूर्ण और आदर्श समाज की दिशा में अग्रसर कर सकते हैं।