इंदौर। चुनावी गीतों को सोशल मीडिया के कारण एक बड़ा विस्तार मिला है क्योंकि बहुत कम लागत में अपना सन्देश वायरल करना सम्भव हुआ है. लेकिन समय के साथ चुनावी प्रचार गीतों में झूठे तथ्य भी शामिल किए जाने लगे हैं और प्रतिद्वंदी को बुरा बताने की नकारात्मकता भी बढ़ी है.
ये बातें स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश द्वारा आयोजित परिचर्चा “चुनावी गीतों का बदलता दौर” में चुनावी गीतों के निर्माण से जुड़े गीतकार आलोक जैन, संगीतकार पवन भाटिया एवं गायक कपिल पुरोहित ने कहीं. इस रोचक एवं ज्ञानवर्धक परिचर्चा के साथ स्टेट प्रेस क्लब ने विधानसभा चुनावों के परिपेक्ष्य में आयोजित होने वाले विशेष आयोजनों की शुरुआत भी कर दी, जिसमें निकट भविष्य में आमने-सामने, संवाद इत्यादि समेत अनेक आयोजन होने हैं.
चुनावी गीतों के लिए जाने माने गीतकार आलोक जैन ने कहा कि सोशल मीडिया की लोकप्रियता के कारण चुनावी गीतों का स्कोप बहुत बढ़ गया है. चुनावी गीत से पूर्व समस्त उपलब्ध जानकारियों के साथ क्षेत्र की जनता के मद्देनज़र प्रत्याशी की छबि निर्माण का ध्यान रखना होता है.
गायक कपिल पुरोहित ने कहा कि चुनावी गीत बनाने वाले को चुनावी राजनीति की समझ होना काम आता है. उन्होंने चुटकी ली कि आजकल हर प्रत्याशी के साथ सरल, मृदुभाषी, विनम्र, ईमानदार, जनता के सच्चे सेवक आदि रटे -रटाये शब्दों का इस्तेमाल होने लगा है, भले ही प्रत्याशी का मूल स्वभाव कैसा भी हो. जबकि चुनावी गीत ऐसा होना चाहिए जो प्रत्याशी के गुणों को वोट में बदले, अवगुणों को दबाये और जिसमें जनता वास्तव में नेता की छबि देख सके. चुनावों का काम भी आजकल इवेंट कंपनियों को दिया जाने लगा है तथा प्रचार में नकारात्मकता का चलन भी बढ़ा है. कई नौसिखिए भी बिना शब्दों का महत्व समझे चुनावी गीत बनाने लगे हैं. ऐसे में अच्छा गीत बनना और उससे कैंपेन में लाभ मिलना भी भाग्य की बात हो गई है.
संगीतकार पवन भाटिया ने कहा कि इंदौर में तो शालीन गीत बनते हैं लेकिन आसपास के क्षेत्रों में चुनावी गीत में डीजे जैसा शोर पसंद किया जाने लगा है. ट्रक के ट्राले में बजने पर कार्यकर्ताओं को नचाना ज़रूरी होने लगा है. उन्होंने इस बात के लिए दुःख व्यक्त किया कि प्रत्याशी इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए स्थानीय कलाकारों को उतनी उदारता से बजट नहीं देते जितने खुले हाथ से बाहर के कलाकारों को.
तीनों ही कलाकारों ने चुनावी गीतों में प्रामाणिकता घटने पर चिंता जताई। आजकल चुनावी गीतों में भी झूठ का समावेश हो गया है. पांच करोड़ के आंकड़े को पचास करोड़ ही नहीं पांच सौ करोड़ करके बताते हुए प्रत्याशियों को हिचक नहीं होती। चुनावी गीतों के निर्माण से जुड़े तीनों ही सृजनधर्मियों ने चुनावी गीतों से जुड़े कई रोचक किस्से भी सुनाये तो सभागार ठहाकों में डूब गए. अपने पसंदीदा गीतों की बानगी भी उन्होंने प्रस्तुत की. चुनाव के एक अलग पहलू समेटे यह विविधरंगी आयोजन दर्शकों को खूब पसंद आया और कई रोचक जानकारियाँ दे गया.
प्रारम्भ में कमल कस्तूरी,रवि चावला, सुदेश गुप्ता एवं ऋतू साहू ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का कसा हुआ संचालन बहुविध संस्कृतिकर्मी आलोक बाजपेयी ने किया। स्मृति चिन्ह सोनाली यादव, अजय भट्ट, मीणा राणा शाह एवं विवान सिंह राजपूत ने भेंट किए. अंत में प्रवीण कुमार खारीवाल ने आभार व्यक्त किया।