लेखक – वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमठ
भारत-पाकिस्तान विभाजन की त्रासदी जिस प्रकार डॉ ओम नागपाल और उनकी पत्नी नागपाल और उनके परिवार ने झोली ऐसी मिसाल बहुत कम ही देखने को मिलेगी। डॉ ओम नागपाल का परिवार लाहौर में था। विभाजन के बाद वह देहरादून आकर बस गए। वही उनकी पत्नी वीना नागपाल का परिवार पेशावर से था और उनके परिवार का लंबा चौड़ा कारोबार था। जब खून खराबा बहुत ज्यादा होने लगा तो वह लोग देहरादून आए। विभाजन के बाद दोनों के ही परिवार देहरादून आकर बस गए। देहरादून के दयानंद कॉलेज में दोनों सहपाठी थे अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद दोनों ने शादी कर ली।
डॉ ओम नागपाल 1962 में इंदौर आए थे और कृष्णा कॉलेज में राजनीति के अध्यापक बने। डॉ वेद प्रताप बेदी, विक्रम वर्मा और मेरे जैसे सैकड़ो विद्यार्थियों की फौज डॉ ओमनाथ पाल ने तैयार की। ईमानदारी से कहा जाए तो डॉक्टर ओम नागपाल की इस सफलता के पीछे उनकी पत्नी वीना नागपाल का बहुत बड़ा योगदान है। उनकी पत्नी की राजनीतिक विज्ञान में गहरी पकड़ थी। वह अपने कॉलेज के दिनों में भी प्रतिभाशाली विद्यार्थी रही। यही नहीं वीना नागपाल ने उस जमाने के सबसे लोकप्रिय अखबार नवदुनिया में 5000 से ज्यादा आर्टिकल लिखें। जब बाद में डॉक्टर ओम नागपाल भास्कर के संपादक होकर आए उसके बाद उनकी पत्नी वीना नागपाल ने भास्कर के लिए लिखना शुरू किया। जहां तक मेरा मानना है मुझे लगता है कि लगभग उन्होंने 10 हजार के लगभग आर्टिकल लिखे होंगे। बिना नाथ पाल ने अरसे पहले दिल्ली कॉलेज में अध्यापन का काम किया। वे उस समय की सबसे लोकप्रिय अध्यापिका भी रही अखबार में उनके कॉलम का सिर्फ महिला ही नहीं बल्कि सभी लोग बेसब्री से इंतजार करते थे।
डॉ. ओम नागपाल के देहावसान के बाद उन्होंने अपने आप को बिल्कुल अकेला कर लिया था। सारा समय वह घर पर और डॉक्टर ओम नागपाल के शोक संस्थान में अपना समय व्यतीत करती थी जहां प्रतिदिन सैकड़ो विद्यार्थी आकर अध्यन करते हैं। विगत लगभग एक वर्ष पूर्व वे पूर्णरूप से अस्वस्थ थी। अभी 27 जुलाई को उनका 84वीं जन्मदिन था। अपने पति के निधन के बाद अधिकांश समय वह अपने कमरे में ही बिताती थी। मिलना जुलना उन्होंने लगभग बंद कर दिया था। उनका जाना ऐसे ही है जैसे इस जमाने में हमको कोई अकेला छोड़कर चला गया हो। 1965 से मुझे एक छोटे देवर की तरह उनका स्नेह मिलता रहा हैं । भगवान उन्हें अपने चरणों में शरण दें।