अरविंद तिवारी
भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश में एक अलग रणनीति पर काम कर रही है। दिल्ली से भोपाल तक पार्टी का मानना है कि मध्यप्रदेश में 50 सीटें तो वह आंख भींचकर भी जीत रही है। सत्ता बरकरार रखने के लिए 75 सीटों पर मशक्कत की जरूरत है और अब पार्टी का सारा फोकस इसी पर है। इस दिशा में काम शुरू हो चुका है और ये 75 सीटें चिह्नित कर पूरी ताकत यहां झोंक दी गई है। इनमें ज्यादातर सीटें ग्वालियर-चंबल, विंध्य-बुंदेलखंड और मालवा-निमाड़ की हैं। इन सीटों पर पार्टी द्वारा तैनात विस्तारकों ने मोर्चा संभाल लिया है और डे-टू-डे का फीडबैक दिल्ली-भोपाल भेज रहे हैं। इन विस्तारकों के सामने स्थानीय क्षत्रपों की भी चल नहीं पा रही है।
बड़े बदलाव की राह पर भाजपा, टारगेट 2024 का लोकसभा चुनाव
भाजपा अब बड़े बदलाव की राह पर है और उसका टारगेट मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव न होकर 2024 का लोकसभा चुनाव है। इस बदलाव में कई राज्यों के प्रदेशाध्यक्ष बदलें जाएंगे और केंद्रीय मंत्रिमंडल का भी नया स्वरूप देखने को मिलेगा। जिन राज्यों में चुनाव होना है, वहां भी दिल्ली की दखल से कई समीकरण बदलेंगे। बदलाव का ये खाका केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और संगठन महामंत्री बी.एल. संतोष ने तैयार किया और अंतिम स्वीकृति की मुहर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगाई। यह बदलाव अभी तक लूप लाईन में चल रहे कई नेताओं को भी फायदे का सौदा साबित होने वाला है।
आईना कांग्रेस को दिखाया और अपनों की उम्मीदों पर फेरा पानी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों कांग्रेस के परिवारवाद पर जमकर हल्ला बोल रहे हैं। उनकी सभाओं में कांग्रेस का परिवारवाद मुख्य मुद्दा रहता है। परिवारवाद पर प्रधानमंत्री के इस वार से पार्टी का एक बड़ा वर्ग तो खुश है, लेकिन इसने नरेंद्र सिंह तोमर, प्रभात झा, गोपाल भार्गव सहित मध्यप्रदेश में भाजपा के एक दर्जन से ज्यादा दिग्गज नेताओं की नींद उड़ा दी है। ये नेता इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने बेटे-बेटियों को उम्मीदवार के रूप में देखना चाहते हैं। इनमें से कई ऐसे भी हैं, जो इस बार उम्मीदवारी की दौड़ से बाहर होकर परिजनों को आगे बढ़ा रहे थे।
सुरजेवाला को मिल सकता है मध्यप्रदेश का जिम्मा
कांग्रेस में इन दिनों मध्यप्रदेश को लेकर एक नई खबर सुनने को मिल रही है। भरोसेमंद सूत्र दावा कर रहे हैं कि जल्दी ही जयप्रकाश अग्रवाल की मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रभारी पद से विदाई हो जाएगी और यह काम प्रियंका-राहुल गांधी के भरोसेमंद रणदीपसिंह सुरजेवाला संभाल लेंगे। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े भी शामिल हैं, मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव में अपनी दखलांदाजी चाहता है। शांत और शालीन अग्रवाल के रहते यह संभव नहीं दिख रहा है। इधर, कर्नाटक के नतीजों के बाद केंद्रीय नेतृत्व का सुरजेवाला में भरोसा बढ़ा है और उन्हें मध्यप्रदेश भेजने की तैयारी है।
सर्वे कमलनाथ का, सूची दिल्ली की
सर्वे के आधार पर टिकट बांटने का दावा करने वाले कमलनाथ के चारों सर्वे पूरे हो गए हैं। दिल्ली दरबार ने भी अपने स्तर पर एक-दो सर्वे करवाए हैं। सर्वे के आधार पर कमलनाथ की सूची तैयार है और सर्वे के नतीजों पर मध्यप्रदेश के नेताओं के बीच मंथन शुरू हो गया है। इसी मामले में दिल्ली के नेताओं से भी संवाद चल रहा है। सुनने में यह आ रहा है कि कमलनाथ के सर्वे और दिल्ली दरबार के सर्वे में कई सीटों को लेकर भारी विरोधाभास है। कमलनाथ का सर्वे जिन सीटों पर कांग्रेस को 100 फीसद जीता हुआ मान रहा है, उनमें से कुछ सीटों को दिल्ली वाले भाजपा के लिए ज्यादा अच्छी संभावनाएं बता रहे हैं। देखते हैं किसका सर्वे सही है, पर इतना तय है कि कांग्रेस की सूची कमलनाथ के सर्वे पर ही तय होगी।
दिल्ली में है मध्यप्रदेश के नौकरशाहों का दबदबा
दिल्ली में मध्यप्रदेश के नौकरशाहों का दबदबा बढ़ता जा रहा है। पंकज अग्रवाल, कोल इंडिया के लंबे समय तक चेयरमैन रहने के बाद अब केंद्रीय ऊर्जा सचिव हो गए हैं। अलका उपाध्याय एनएचएआई की चेयरमैन रहने के बाद अब केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय की सचिव हो गई हैं। राव दंपति यानि कांता राव और नीलम राव के पास भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। विवेक अग्रवाल राजस्व जैसे महत्वपूर्ण महकमें में अतिरिक्त सचिव होने के साथ ही एक और महत्वपूर्ण भूमिका में हैं। हरिरंजन राव के पास भी अच्छा विभाग है। आने वाले समय में मध्यप्रदेश के कुछ और अफसरों को दिल्ली में बड़ी भूमिका मिलने वाली है। यह सब इसलिए महत्वपूर्ण है कि इस दौर में दिल्ली की नियुक्तियां बहुत सोच-समझकर हो रही हैं।
चलते-चलते
मनीष रस्तोगी कहने को तो मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव हैं, लेकिन काम वे मुख्य सचिव के प्रमुख सचिव जैसा कर रहे हैं। मंत्रालय के गलियारों में इसकी बड़ी चर्चा है। नौकरशाह कहते हैं कि रस्तोगी एक बार मुख्यमंत्री का कहना टाल सकते हैं, लेकिन मुख्य सचिव का नहीं। वैसे विधानसभा चुनाव के पहले रस्तोगी दंपति के मध्यप्रदेश छोड़कर दिल्ली जाने की भी चर्चा है।
पुछल्ला
जूनापीठाधिश्वर अवधेशानंद गिरि जी महाराज कुछ महीने पहले जब इंदौर आए थे, तब यह संकेत मिले थे कि वे गौड़ परिवार यानि मालिनी गौड़ और एकलव्यसिंह गौड़ से नाराज हैं। स्वामीजी के रुख से भी ऐसा ही लगा था, लेकिन इस बार गौड़ परिवार ने उन्हें साध लिया, उनकी नाराजगी दूर की और स्वामीजी भी आशीर्वाद देने लोधीपुरा के नए बंगले पर पहुंच गए।
बात मीडिया की
दैनिक भास्कर भोपाल की संपादक उपमिता वाजपेयी ने भास्कर समूह को अलविदा कह दिया है। उनके एकदम भास्कर समूह को छोडऩे का कारण समझ में नहीं आ रहा है। उनकी अगली भूमिका मीडिया इंडस्ट्री से इतर भी हो सकती है। कई वर्षों तक न्यूज 18 चैनल में अपनी सेवाएं दे चुके वरिष्ठ पत्रकार विकास सिंह चौहान अब टीम पत्रिका का हिस्सा हो गए हैं। चौहान बेहद संजीदा रिपोर्टर हैं और क्राईम बीट के एक्सपर्ट माने जाते हैं। कहा जा रहा है कि भोपाल में तैनात वरिष्ठ साथियों से तालमेल न जमने के कारण चौहान ने यह फैसला लिया।
वरिष्ठ पत्रकार चंद्रप्रकाश शर्मा ने बहुत कम समय में पत्रिका समूह से त्यागपत्र दे दिया है। वे अब देवास में नईदुनिया के ब्यूरोचीफ होंगे। शर्मा पहले भी नईदुनिया में सेवाएं दे चुके हैं। राजनीतिक मामलों पर इनकी अच्छी पकड़ है। इंदौर के दो बड़े मीडिया संस्थानों मैं रिपोर्टर अलग-अलग कारणों से परेशान हैं। भास्कर में कई रिपोर्टर बिना बीट के ही काम कर रहे हैं तो पत्रिका में एक ही बीट पर दो दो रिपोर्टर भी काम कर रहे हैं।