लेखक- आनंद शर्मा। जब मैं नौकरी में लगा तो ख़ुद के काम के लिए सिफ़ारिश करवाना, ख़ास कर नेताओं से सिफ़ारिश कराना अच्छा नहीं माना जाता था। ऐसा नहीं है कि तब सिफ़ारिशें नहीं कराई जाती थीं, लेकिन जो सिफ़ारिश कराके ट्रांसफ़र-पोस्टिंग पाता था, उसे अच्छी निगाहों से नहीं देखा जाता था। अनुविभाग स्तर के अधिकारी तो सोच भी नहीं सकते थे कि किसी सब डिवीज़न में सिफ़ारिश से जाया जा सकता है।
बात तब की है जब मैं राजनांदगाँव में अपना परिवीक्षाकाल गुज़ार रहा था, और विकास खण्ड की ट्रेनिंग के सिलसिले में दो विकासखंडों क्रमशः बोड़ला और कवर्धा में विकास खंड अधिकारी के रूप में कार्य कर ज़िले में अपनी आमद दे चुका था। एक दिन मैं ज़िले के ए.डी.एम. श्री मिश्रा जी के कक्ष में बैठा उनसे प्रशासनिक गुर सीख रहा था, तभी कलेक्टर का हरकारा आया और मुझसे बोला आपको कलेक्टर साहब याद कर रहे हैं। मैं उठा और सीधे कलेक्टर के कक्ष में पहुँच गया, तब ज़िले के कलेक्टर श्री हर्षमंदर हुआ करते थे।
कलेक्टर ने मुझे सामने की कुर्सी पर बैठने को कहा और फिर मुझसे कहने लगे कि मैं तुम्हें डोंगरगढ़ का एस.डी.ओ. बनाने का सोच रहा हूँ ।सच कहूँ तो मैं इस सूचना से हतप्रभ रह गया , कुल जमा नौकरी छह माह भी न हुए थे, सो बजाय उत्साहित होने के मैं कुछ सोच में डूब गया । उन्होंने पूछा , क्या बात है? मैंने उनसे कहा कि सर अभी तो मैंने मेरी विभागीय परीक्षा ही पास नहीं की हैं , यदि एस.डी.एम. बन गया तब तो पढ़ ही नहीं पाऊँगा और समय से परीक्षा उत्तीर्ण ना की तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी। हर्षमंदर मुस्कुराए और बोले अच्छा सोच लो , मुझे कल बताना।
मैं उठ कर वापस मिश्रा जी के कमरे में आया । नए डिप्टी कलेक्टर के लिए तो ए.डी.एम. महागुरु होता है। मिश्रा जी ने उत्सुक्ता से पूछा , क्या बात थी ? मैंने पूरी बात बतायी, और कहा सोच कर बताने को बोला है। मिश्रा जी बोले “ अरे भाई लोग एस.डी.एम. बनने के लिए कैसे कैसे जुगाड़ करते हैं, और तुम मना कर आये। मैं बोला सर इस चक्कर में मेरे डिपार्टमेंटल एक्ज़ाम रह जाएँगे। मिश्रा जी अब नाराज़ हो गये, बोले जो डिपार्टमेंटल परीक्षा के लिए पढ़ोगे उसीका तो प्रेक्टिकल करने भेज रहे हैं आपको, बिना पानी में उतरे तैरना कैसे सीखोगे? मिश्रा जी तहसीलदार से ए.डी.एम. तक का सफ़र किए हुए अनुभवी अधिकारी थे और मुझ पर बड़ा स्नेह रखते थे, मुझे दो मिनट में ही उन्होंने राज़ी कर लिया।
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मैं दूसरे दिन सुबह कलेक्टर के कक्ष में गया और उन्हें बताया कि मैं जाने के लिए तैयार हूँ। उन्होंने मुझे बिठाया और सब डिवीज़न के बारे में, कुछ महत्वपूर्ण बातें बतायीं कि किस तरह से माँ बमलेश्वरी के मंदिर होने, स्थानीय सांसद का घर होने, स्थानीय मंत्री का विधान सभा होने और प्रदेश के मुख्य मंत्री की आराध्य देवी का शहर होने के कारण यह सब-डिवीज़न महत्वपूर्ण है। बहरहाल इसके बाद जब मैं ज़िला मुख्यालय में पदस्थ अपने वरिष्ठ साथियों से औपचारिक विदाई ले रहा था तो रंगलाल जयपाल साहब ने मुझसे पूछा कल कैसे जाओगे? मैंने सरलता से जवाब दिया कि सर मुझे तो ये भी नहीं मालूम कि डोंगरगढ़ है कहाँ, कल बस स्टैंड जाकर पता करूँगा की कौन सी बस जाती है, फिर उससे चला जाऊँगा। जयपाल साहब ने मुझे प्यार भरी झिड़की लगायी और बोले अरे एस.डी.ओ. बन के जा रहे हो , बस से क्यों जाओगे मैं तुम्हें छोड़ कर आऊँगा, कल मेरा उसी क्षेत्र का दौरा है।
रंगलाल जयपाल मुझसे नौकरी में सोलह साल वरिष्ठ थे और उन दिनों वहाँ अनुसूचित जनजाति क्षेत्र विकास प्राधिकरण (टी.ए.डी.पी. ) के सी.ई.ओ. थे, इस कारण मैं संकोच कर रहा था, पर उन दिनों आपस में सहकर्मी के प्रति बड़ा स्नेह का माहौल रहा करता था, तो दूसरे दिन अपनी अटैची और बैग में कपड़े भर मैं जयपाल साहब की जीप में डोंगरगढ़ का चार्ज लेने रवाना हो गया। जब हम डोंगरगढ़ में कार्यालय के समक्ष पहुँचे तो ख़ुद बी.पी.एस. नेताम हमें लेने खड़े थे जो उन दिनों खैरागढ़ के साथ-साथ डोंगरगढ़ के भी एस.डी.एम. थे और मुझसे वरिष्ठता में सात बरस बड़े थे। रंगलाल जयपाल की प्रतिष्ठा के कारण मुझे भी ऐसा ग्रैंड वेलकम मिला।