इंदौर। हमारी कमर को मजबूती देने के लिए हमारे शरीर में रीड की हड्डी, डिस्क और मांसपेशियां हैं। अगर यह मजबूत हैं तो समझो कमर मजबूत हैं। एक समय के बाद इनमें भी उम्र के साथ साथ कमजोरी नज़र आती हैं। लगभग 60 साल की उम्र के बाद इसमें इस तरह की समस्या देखने को सामने आती है। लेकिन जब कम उम्र में हमारी रीड की हड्डी, डिस्क और मांसपेशियां कमजोर होती है तो बचपन में ही कमर दर्द की समस्या सामने आती है। आजकल हमारी लाइफ स्टाइल इन हाउस हो गई है जिस वजह से सन एक्सपोजर भी नहीं मिल पाता हैं। हड्डियों की मजबूती के लिए लगभग 30 से 45 मिनट का सन एक्सपोजर और दूसरी एक्टिविटी जरूरी है। यह बात डॉ. अक्षय जैन ने अपने साक्षात्कार के दौरान कही। वह हाल ही में इंदौर एसोसिएशन ऑफ आर्थोपेडिक सर्जन एक्जीक्यूटिव में सचिव पद पर चुने गए हैं। वह शहर के प्रतिष्ठित विशेष ज्यूपिटर हॉस्पिटल में स्पाइन सर्जन के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
सवाल. क्या गलत पोस्चर में बैठने से कमर दर्द की समस्या सामने आती है, अगर हां तो बैठने का सही एंगल क्या है
जवाब.वयस्क व्यक्तियों में 90 प्रतिशत कमर दर्द आमतौर पर खराब पोस्चर में बैठने से होता हैं। ज्यादातर लोग गलत पोस्चर में बैठकर गर्दन झुकाकर मोबाइल चलाते हैं या कमर झुकाकर काम करते हैं जिससे से यह आगे चलकर कुबड़ का रूप ले लेता है। इसका एक फंडामेंटल रूल यह है कि हमेशा 20 डिग्री एंगल को बैठने के दौरान फॉलो करें इससे ज्यादा झुककर बैठने को कुबड़ कहा जाता है।जब भी हम बैठे तब हमारे शरीर का वजन बराबर भागों में बंट जाना चाहिए और हमारी मांसपेशियां रिलैक्स होनी चाहिए। जब हम सीधे बैठते हैं तो हमारी कमर और पीठ का घुमाव बराबर होता है वहीं जब हम आगे से झुककर कंधा झुकाकर बैठेंगे तो पीठ का घुमाव कमर के घुमाव से ज्यादा रहेगा। जिस वजह से पीठ पर ज्यादा प्रेशर होने से हमारी कमर और पीठ में दर्द होगा।
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सवाल. बच्चों में आमतौर पर देखे जाने वाली कुबड़ की समस्या जेनेटिक होती है या इसका कारण कोई बीमारी है
जवाब.हम आमतौर पर जिस टीबी को समझते है वह लंग्स का टीबी होता है। जिसमें खांसने खंखारने की समस्या देखी जाती है। वहीं रीड की हड्डी का टीबी भी होता है जो रीड की हड्डी में इन्फेक्शन कर इसे कमजोर कर देता है। इसका सही समय पर इलाज़ कर इसे खत्म किया जा सकता हैं। कई लोगों में जन्म से ही कुबड़ यानी कमर का टेढापन पाया जाता है। जन्म के साथ उभरी यह बिमारी धीरे धीरे उम्र के साथ बढ़ती चली जाती है। वहीं यह कई बार जेनेटिक भी होता हैं। भारत में टीबी के बैक्टीरिया लगभग हर जगह मौजूद हैं। जब हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होती है तो वह टीबी के इस बैक्टीरिया को पनपने नहीं देती हैं। कई बार कमजोर इम्यूनिटी सिस्टम, खान पान में पोषक तत्वों और प्रोटीन की कमी के चलते यह हावी हो जाती है।
सवाल.आपने अपनी मेडिकल फील्ड की पढ़ाई कहां से कंप्लीट की है
जवाब. मैने अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज जबलपुर से पूरी की। इसके बाद एमएस आर्थोपेडिक एमवायएच से कंप्लीट किया है। वहीं स्पाइन सर्जरी में स्पेशलाइजेशन लीलावती हॉस्पिटल मुंबई से पूरा किया। इसी के साथ लंदन और कोयंबटूर से स्पाइन सर्जरी में फेलोशिप प्रोग्राम कंप्लीट किए हैं।
सवाल. क्या बदलते खान पान ने कमर दर्द और इससे जुड़े केस में बढ़ोतरी की हैं
जवाब.ज्यादा समय तक एक पोजिशन में बैठने से कमर पर स्ट्रेस आता है जिस वजह से कमर की गद्दी में कमजोरी देखने को मिलती है। वहीं हमारे बदलते खान पान में अब पैकेज फूड ने जगह बना ली है जिस वजह से विटामिन्स, कैल्शियम और अन्य पोषक तत्वों को कमी के चलते इस तरह की समस्या सामने आती है। यह मेरा निजी अनुभव है कि गांव के मुकाबले शहर के पेशेंट की हड्डियां कमजोर हैं शहरों से यंग एज में कमर दर्द के पेशेंट सामने आते हैं। जिसमें 30 साल तक के पेशेंट भी इस समस्या से जूझ रहे हैं। वहीं कई पेशेंट ऐसे आते हैं जिन्हें जिम में ज्यादा वेट उठाने से मांसपेशियों में खिंचाव या कमर दर्द की समस्या सामने आती हैं। इंसान को कभी भी अपने वेट के दौगुना से ज्यादा वज़न नहीं उठाना चाहिए।
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सवाल. बच्चों को रीड की हड्डी में टेढ़ेपन का ऑपरेशन किस उम्र तक करवाना चाहिए
जवाब.पहले लोगों में यह भ्रांति हुआ करती थी कि रीड की हड्डी के टेढ़ेपन का ऑपरेशन 17 साल की उम्र के बाद करवाना चाहिए, वहीं अब इसको लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ी है। अब 6 साल की उम्र तक के बच्चें भी अब ऑपरेशन के लिए आने लगे हैं। सही समय पर इलाज़ करवाने से इस समस्या को ट्रीटमेंट से दूर किया जा सकता है। अगर बात कुबड़ की समस्या और इसके ऑपरेशन की करी जाए तो 90 प्रतिशत पेशेंट 11 से 18 साल तक के बच्चें होते हैं।
सवाल. पहले के मुकाबले क्या रीड की हड्डी के ऑपरेशन को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ी है
जवाब.जब में पढ़ाई कर रहा था उस दौरान लोगों का ऐसा मानना था कि इंदौर में स्पाइन सर्जरी करना आसान नहीं है। यहां पहले कुबड़ और रीड की हड्डी के ऑपरेशन नही होते थे। अब में 2012 से शहर में ही कुबड़ और अन्य ऑपरेशन करता हूं, पहले मुझे पेशेंट को समझाने में थोड़ी दिक्कत हुआ करती थी लेकिन अब लोगों में बढ़ती जागरूकता और टेक्नोलॉजी के चलते यह संभव हो गया है।