भारतीय पत्रकारिता महोत्सव की सांस्कृतिक संध्या ‘ तराना पत्रकारिता ‘ ने दर्शकों पर किया जादू

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इंदौर: स्वतंत्र संग्राम से लेकर पत्रकारिता सिर्फ पत्रकारों ने ही अखबारों में ही नहीं की बल्कि कवियों ने भी अपने समय की पीड़ा और जनभावना को स्वर देकर वाचिक परम्परा से पत्रकारिता की है। इसी बात को रेखांकित करती भारतीय पत्रकारिता महोत्सव की सांस्कृतिक संध्या ‘ तराना पत्रकारिता ‘ ने दर्शकों पर ऐसा जादू किया कि उन्होंने क्रांति के स्वरों के भावप्रवाह और ऊर्जा को महसूस किया। राजेश बादल (शब्द), आलोक त्यागी (संस्मरण) एवं आलोक बाजपेयी (संगीत) की केमेस्ट्री ने ऐसा प्रभाव उत्पन्न किया कि ये शाम दर्शकों के लिए चिरस्मरणीय बन गई।

स्टेट प्रेस क्लब, इंदौर के शब्द की अस्मिता को समर्पित अनुष्ठान भारतीय पत्रकारिता महोत्सव की दूसरी सांस्कृतिक संध्या अपने आप में विलक्षण थी। आम तौर पर होने वाली सांगीतिक आयोजनों से एकदम विलग यहां बात थी क्रान्ति के गीतों की, यादें थीं हिन्दी ग़ज़ल के जन्मदाता दुष्यंत कुमार की और गाया गया आमजन में उम्मीद और उत्साहित करने वाले गीतों को।

विधायक मालिनी लक्ष्मण सिंह गौड़, स्टेट प्रेस क्लब अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल, वरिष्ठ पत्रकार सुदेश तिवारी एवं  कमल कस्तूरी के द्वारा अतिथियों के स्वागत के पश्चात वरिष्ठ पत्रकार एवम् राज्यसभा टीवी के पूर्व संपादक राजेश बादल ने बताया कि आज़ादी की लड़ाई में कवियों ने अपनी रचनाओं से अपने स्तर पर महत्वपूर्ण और पुर असर योगदान दिया। बादल ने एक के बाद कृतिकारों के योगदान को उनकी रचनाओं के माध्यम से स्मरण कराया।

कुछ गीतकारों जैसे सर्व शैलेंद्र, साहिर लुधियानवी, माखनलाल चतुर्वेदी, भूपेन हजारिका इत्यादि की स्वयं की आवाज़ में रचना पाठ के दुर्लभ वीडियो भी बादल ने अपनी प्रस्तुति में पिरोए तो कुछ प्रसिद्ध और कुछ भूल बिसरे गीतों को वरिष्ठ पत्रकार, गायक और बांसुरी वादक आलोक बाजपेयी ने अपनी आवाज़ से जीवंत कर दिया। आंदोलनों के स्वर रहे  दुष्यंत कुमार के सुपुत्र एवं गज़लकार आलोक त्यागी इस अवसर पर विशेष रूप से तशरीफ लाए थे और  राजेश बादल ने उनसे कई महत्वपूर्ण सवाल कर दुष्यंत कुमार के व्यक्तित्व के अनछुए पहलू उजागर किए।

आलोक त्यागी ने दुष्यंत कुमार की दो रचनाओं का पाठ भी किया और एक पुत्र, एक पाठक और एक साहित्यकार के रूप में दुष्यंत कुमार को देखते हुए अनेक दिलचस्प और यादगार बातें कहीं। दर्शकों ने मंत्रमुग्ध होकर सम्पूर्ण सत्र को सुना और एक दुर्लभ आनंद और ज्ञानवर्धन प्राप्त किया।

सांस्कृतिक संध्या के दूसरे भाग में गायक आलोक बाजपेयी ने दुष्यंत कुमार एवं उन कवियों की रचनाओं की भावोत्तेजक प्रस्तुति दी, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद देश के सिस्टम की खामियों को उजागर किया। माशूक के जलवों और साकी की नज़ाकत से परे भूखों – मजलूमों, पीड़ितों के दर्द को अपनी रचनाओं का विषय बनाने वाले सर्व अदम गौंडवी, नागार्जुन, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, पाश इत्यादि की रचनाओं को पूरे भाव और जोश के साथ प्रस्तुत किया तो सम्पूर्ण सदन में भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा।

दुष्यंत कुमार की रचनाओं की भावप्रवण प्रस्तुति का असर कुछ ऐसा पड़ा कि आलोक त्यागी एवं राजेश बादल भी अपने आप को जोश में डूबकर गाने से नहीं रोक पाए। आलोक त्यागी ने पहली बार किसी मंच पर ऐसा एक बार नहीं अनेक बार हुआ जब आलोक त्यागी भावुक हो उठे। काले रंग के वस्त्रों में लाल मफलर डाले तीनों सृजन शिल्पियों की साझा प्रस्तुति ने क्रांति के स्वरों को जीवंत कर उसकी ऊर्जा और ऊष्मा दोनों दर्शकों को महसूस करा दी।

इस यादगार संध्या में श्रेष्ठ संगति दी संगीत संयोजक नीतेश शेट्टी – योगेश पाठक भोला की टीम ने। वायलिन पर अनुराग कामले, ढोलक पर रवि खेडे, ऑक्टोपैड पर कपिल पुरोहित, एवं कोरस पर रमेश भैया एवं दल ने श्रेष्ठ संगति कर खूब दाद बटोरी। स्मृति चिन्ह आकाश चौकसे, डॉ. अर्पण जैन अविचल एवं  पंकज क्षीरसागर ने भेंट किए। आभार प्रदर्शन राकेश द्विवेदी ने किया।