इंदौर के पानी संकट को लेकर 1890 में सिरपुर और 1902 में पीपल्यापाला तालाब बना, शहर में रोजाना 750 एमएलडी लगता है पानी

Suruchi
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इंदौर। पानी के बिना मानव जीवन की कल्पना नही की जा सकती है। 22 मार्च को वर्ल्ड वॉटर डे के रूप में मनाया जाता है, अगर बात धरातल पर की जाए तो, पानी के बिना कुछ संभव नही है। पीने योग्य पानी का स्तर दिन ब दिन घटता जा रहा है। अगर बात इसकी फिजुल खर्ची की करी जाए तो इसमें काफी इजाफा हुआ है। करीब 32 लाख की जनसंख्या वाले इस शहर के लिए वर्तमान में पीने के पानी का सबसे बड़ा ज़रिया नर्मदा पाईप लाइन है। कुछ सालों में शहर की आबादी और इसका विस्तार काफी बढ़ा है। इसी के साथ बढ़ती आबादी के कारण शहर में पानी की ज़रूरत बढ़ती जा रही है। ज़िले में ज़मीनी पानी की स्थिति पहले ही ख़राब बताई जा चुकी है। यहां नदिया दिन ब दिन दूषित होती नजर आ रही है। आज के दौर में इनका ख़्याल रखना और पानी के लिए बेहतर व्यवस्थाएं बनाना सबसे बड़ा लक्ष्य है।

शहर में रोजाना लगता है लगभग 750 एमएलडी पानी,नर्मदा लाइन से 450 एमएलडी पानी की होती है पूर्ति

शहर में पानी की पूर्ति के लिए बोरिंग, नलकूप, हैंडपंप का सहारा लिया जाता है।अगर बात शहर में नर्मदा की लहरों से शहर के घरों तक पानी लाने पर हर महीने 25 लाख रुपये से ज्यादा खर्च होते हैं। आंकड़ों के मुताबिक इंदौर शहर को रोज़ाना करीब 750 एमएलडी पानी लगता है। वहीं यह खपत गर्मियों के मौसम में करीब 900 एमएलडी तक पहुंच जाती है। नर्मदा लाइन से शहर में 450 एमएलडी पानी की पूर्ति की जाती है। वहीं शहर में पानी की आपूर्ति के लिए तालाब और अन्य स्रोतों का सहारा लिया जाता है।

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शहर के पानी संकट को लेकर 1890 में सिरपुर तालाब और 1902 में पीपल्यापाला तालाब बनाए गए।

अगर बात शहर के पानी के इतिहास की करी जाए तो इसमें कई बदलाव के बाद शहर को पर्याप्त पानी मिलना शुरू हुआ। कहा जाता है कि, लोग पहले सरस्वती और खान नदी का पानी लोग पीने के लिए इस्तेमाल करते थे। लेकिन धीरे धीरे शहर की जनसंख्या में बढ़ोतरी हुई और नदी में प्रदूषण की बढ़ती मात्रा से उपजी जल समस्या के बाद इंदौर में नर्मदा को लाने की मांग उठी। जिसके बाद 1978 को नर्मदा जलप्रदाय योजना का उद्घाटन हुआ।शहर की आबादी बढ़ने पर पेयजल व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए 1860 में सरस्वती नदी पर एक बांध बनाया गया। उस समय शहर की आबादी सात हजार थी। इसके बाद 1890 में सिरपुर तालाब और 1902 में पीपल्यापाला तालाब बनाए गए। इनसे शहर में हर दिन लगभग तीन लाख गैलन पानी दिया जाने लगा।

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1978 को नर्मदा जलप्रदाय योजना का उद्घाटन, 1918 में बिलावली तालाब को राऊ तक बढ़ाया गया

जानकारों के मुताबिक 1904 में इंदौर में पानी की समस्या ने विकराल रूप हासिल कर लिया। तब 15 लाख रुपये की लागत से बिलावली तालाब में ग्रेविटी वाटर सप्लाई स्थापित करने की योजना को स्वीकृत किया गया।सन्‌ 1918 में फिर जलसंकट की स्थिति बनी। बिलावली तालाब का जलभराव क्षेत्र राऊ की ओर छह वर्गमील तक बढ़ाया गया।1925 में शहर में जलसंकट की स्थिति बनी। वहीं होलकर राज्य शासन ने जलसंकट के समाधान के लिए गंभीर नदी से इंदौर के लिए पानी लाने की योजना पर सहमति बनी। 1929 में डेढ़ लाख आबादी के गंभीर योजना को लेकर देशभर के जल विशेषज्ञों से विचार-विमर्श किया गया।

80 लाख रुपये की लागत से 1935 में पूरी हुई। 1951 में इंदौर की आबादी 3 लाख इसे लेकर यशवंत सागर बांध में सुधार किए गए थे। इसी के साथ 1965 से 1967 में शहर में कम बारिश हुई। तब कुएं खुदवाए और हैंडपंप लगाए गए। 1976 तक इंदौर में 28 हजार नल कनेक्शन, 1400 सार्वजनिक नल और 580 हाईड्रेंट थे। 31जनवरी 1978 को नर्मदा जलप्रदाय योजना का उद्घाटन हुआ। इसी के साथ आज भी शहर में पानी को लेकर नई नई योजनाओं पर कार्य चल रहा है।