भगवान शिव को समर्पित महाकाल मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित है। श्रद्धा और आस्था से भरपूर ये जगह शहर शिव नगरी के नाम से भी जानी जाती है। सालभर यहां भक्तों की भारी भीड़ रहती है, दुनियाभर से यहां लोग ज्योंतिर्लिंग के दर्शन के लिए आया करते हैं। विशेषतौर पर सावन माह में इस मंदिर श्रद्धालूओं की ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है। सावन के महीने में महाकालेश्वर मंदिर महाकालेश्वर मंदिर का ज्यादा महत्व होता है। बता दें कि शिव जी के 12 ज्योंतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर मंदिर में मौजूद है। यहां आने वाले भक्तों को दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के दर्शन होते हैं। आइए आपको महाकालेश्वर मंदिर से जुड़े ऐसे रहस्य जीने जान हैरान हो जाएंगे आप
विश्व का एक मात्र दक्षिणमुखी शिवलिंग
12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर। इस मंदिर में लोगों को दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंगों के दर्शन होते हैं। महाकालेश्वर मंदिर मुख्य रूप से तीन हिस्सों में बटा हुआ है। जिसके ऊपरी हिस्से में नाग चंद्रेश्वर, नीचे ओंकारेश्वर और सबसे नीचे महाकाल मुख्य ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजित नजर आते हैं। यहां भगवान शिव के साथ गणेश, कार्तिके और माता पार्वती की मुर्तियों के भी दर्शन होते हैं। पुराने समय में यह एक तांत्रिक पीठ के रूप में भी देखा जाता था, दक्षिण मुखी होने से यहाँ तंत्र सिद्धि की जाती थी
स्वयंभू है महाकाल
पौराणिक कथा के अनुसा वेद प्रिय नाम का एक ब्राह्रण अवंती नामक नगर रहता था. वो शिव का परम भक्त था. प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग बनाकर बाबा की पूजा करता था. नियमित रूप से धार्मिक कर्मकांड के कामों में उसकी विशेष रूचि थी. एक बार दूषण नामक राक्षस नगर में आया और लोगों को धार्मिक कार्य करने से रोकने लगा. राक्षस को ब्रह्मा जी से विशेष वरदान प्राप्त था. इसी कारण उसका आतंक बढ़ता गया. राक्षस की पीड़ा से दुखी होकर सभी ने शिव से रक्षा के लिए विनती की.भोलेनाथ ने नगरवासियों को राक्षस के अत्याचार से बचाने के लिए पहले उसे चेतावनी दी.दूषण राक्षस पर इसका कोई असर नहीं हुआ और उसने नगर पर हमला कर दिया. भोलेनाथ क्रोधित हो उठे और धरती फाड़कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए. शिव ने अपनी हुंकार से राक्षस को भस्म कर दिया. ब्राह्रणों ने महादेव से यहीं विराजमान होने के लिए प्रार्थना की. ब्राह्मणों के निवेदन से प्रसन्न होकर शिव जी यहां महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने लगे
राजा नहीं बिता सकते उज्जैन में रात
इस मंदिर के दौरे के समय कोई भी राजा या सीएम रात नहीं बिताते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां के राजा स्वयं महाकाल हैं, इसलिए जब कोई यहां शासक रूकता है तो उसकी सत्ता चली जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा विक्रामित्य के समय से ही कोई राजा यहां नहीं रूकता है। भारत के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई एक बार यहां रात में रूके थे, अगले दिन उनकी सत्ता चली गई थी।
क्यों भस्म आरती में महिलाओ का प्रवेश वर्जित है
महाकालेश्व मंदिर एकलौती ऐसी जगह है, जहां शिव को भस्म से आरती की जाती है। प्राचीन कथाओं के अनुसार यहां चिता की राख से यह आरती की जाती थी, हालांकि आज के समय में ऐसा नहीं है। आज कंडे की राख से भस्म आरती की जाती है। भस्म आरती के समय महिलाओं की उपस्थिति वर्जित है ऐसा कहा जाता है की जब महाकाल को भस्म चढ़ती है तब वे पूर्ण रूप से स्नान अवस्था में होते है ऐसे में कोई भी महिला उन्हें नहीं देख सकती, जिसके लिए महाकाल मंदिर में भस्मारती में साड़ी पहनना और घुघट में बैठना अनिवार्य है
अनोखा है नाम ” महाकाल “
शिव के इस मंदिर को महाकाल क्यों कहा जाता है दरअसल काल के दो अर्थ है “समय और मृत्यु ” ऐसा कहा जाता है की शिव मृत्यु और काल के देवता है। ‘अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चांडाल का, काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का’ कालों के काल महाकाल राजा की महिमा अद्भुत है. काल और मृत्यु पर राज करने वाला महाकाल कहलाता है, अवंतिका नगरी में जिस राक्षस के वध के लिए भगवान स्वयं आये थे वह मानवो के लिए मृत्यु का रूप ही था इसलिए भगवान ने जब उसका संघार किया तो भक्तो ने शिव को महाकाल का नाम दिया तब से महाकाल अवंतिका नगरी में निवास करते है
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