कांग्रेस के लिए बंजर हो चुके चंबल संभाग में पार्टी की वापसी, बदला सत्ता का समीकरण

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सिद्धार्थ शंकर गौतम

2018 में मध्य प्रदेश में हुये विधानसभा चुनाव में चम्बल संभाग (ग्वालियर, भिंड, मुरैना, दतिया आदि) ने कांग्रेस के प्रत्याशियों को जिताकर बीजेपी के विजय रथ को रोक दिया था और कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बन गई थी। हालांकि सवा साल बाद ही ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत ने कांग्रेस सरकार को घर बिठा दिया और शिवराज सिंह चौहान पुनः मुख्यमंत्री बन गए। सिंधिया के साथ चम्बल संभाग के कांग्रेसी भी भाजपाई हो गए थे और ऐसा प्रतीत होने लगा था कि उक्त संभाग कांग्रेस के लिये बंजर हो चुका है।

अब उस घटना के दो वर्ष बाद नगरीय निकाय के चुनाव में कांग्रेस ने #ग्वालियर और #मुरैना महापौर पद जीत कर सत्ता के सभी समीकरण उलट-पलट कर दिए हैं। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर सहित सिंधिया,डॉ.नरोत्तम मिश्रा, प्रभात झा, प्रद्युम्न सिंह तोमर, ओपीएस भदौरिया, इमारती देवी सहित दर्जन भर बड़े भाजपाईयों के भागीरथी प्रयासों और मुख्यमंत्री व् प्रदेश अध्यक्ष वीड़ी शर्मा के दौरों के बाद भी यदि भाजपा ने अपने गढ़ों में हार पाई है तो इसके गहरे निहितार्थ हैं।

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1. जनता अब बगावत करने वालों को नहीं भूलती। उन्हें माफ़ भी नहीं करती।
2. जनता सत्ता की लालसा में अंधे हो चुके नेताओं को जमीन दिखा देती है।
3. वादे, वादे और सिर्फ वादे चुनाव में हार दे देते हैं।
4. एक ही चेहरे को लम्बे समय तक जनता बर्दाश्त नहीं करती।
5. स्वयं को राजा मानने वाले को फकीर बना देती है।
6. अति आत्ममुग्ध राजनेता की राजनीतिक कब्र खोद देती है।

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2023 में मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं और भाजपा का यह गढ़ अब कांग्रेस हथियाती दिख रही है तो उसका सबसे बड़ा कारण है कि ‘बागी’ जनता अब ‘डाकू’ नेता नहीं चाहती। भाजपा यदि अभी नहीं संभली तो यह क्षेत्र उसके लिये नासूर बन जायेगा, यह तय है। पुनश्चय- 2018 से पूर्व चम्बल संभाग में जो गुटबाजी कांग्रेस में देखने को मिलती थी वह अब बगावती नेताओं के भाजपा में शामिल होने के बाद भाजपा में दिखने लगी है। यानि किसी बड़े खिलाड़ी में कमी अवश्य होगी। अब जनता तय करे कि किस खिलाड़ी को घर बिठाना है और किसे सिंहासन पर बिठाना है?