उज्जैन: महाकाल मंदिर (Mahakal Temple) में बाबा महाकाल को जल चढ़ाने की सुविधा दो वर्षों बाद भी शुरू नहीं की जा सकी है। जबकि मंदिर प्रशासन ने यह कहा था कि महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के बाद आम भक्त महाकाल को जलार्पण कर सकेंगे, बावजूद इसके महाशिवरात्रि के दो दिन बीतने के बाद भी इस सुविधा को शुरू नहीं किया जा सका है। हालांकि यह बात अलग है कि जिन श्रद्धालुओं द्वारा 1500 रूपए की रसीद कटवाई जाती है उन्हें जल चढ़ाने की अनुमति है।
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दोहरी नीति से भक्तों में नाराजगी –
एक ओर जहां शासन-प्रशासन यह दावा कर रहा है कि कोरोना पूरी तरह से खत्म हो गया है। यही कारण है कि सूबे की शिवराज सरकार ने प्रदेश में से सारे प्रतिबंध समाप्त कर दिए है। चाहे धार्मिक आयोजन हो या फिर सामाजिक या फिर राजनीतिक आयोजन ही क्यों न हो किसी तरह से पांबदी नहीं है लेकिन महाकाल मंदिर में आम श्रद्धालुओं को जल चढ़ाने का प्रतिबंध नहीं हटाया जा सका है। ऐसा नहीं है कि 1500 रूपए की रसीद कटवाने वाले श्रद्धालुओं को अंदर जाकर जल चढ़ाने से रोका नहीं जाता है तो फिर प्रशासन द्वारा आम और खास में अंतर क्यों। मंदिर व जिला प्रशासन की इस दोहरी नीति के कारण आम श्रद्धालुओं द्वारा नाराजगी व्यक्त की गई है।
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पुराणों में है जलाभिषेक का उल्लेख –
विद्वानों का कहना है कि शिव के जलाभिषेक करने का उल्लेख पुराणों में भी है वहीं शिव का जलाभिषेक करने से उनकी प्रसन्नता भी प्राप्त होती है। इसके अलावा समुद्र मंथन के समय भगवान शिव ने विषपान किया था, इस विष की ही गर्मी या उष्णता के शमन हेतु जलाभिषेक का महत्व है। जानकारों का कहना है कि भगवान भोलेनाथ को जल अर्पित करने से भगवान शिव प्रसन्न तो होते ही है वहीं भक्तों की मनोकामना भी अवश्य पूरी हो जाती है।