नई दिल्ली: अंतरिक्ष के क्षेत्र में लगातार अपनी ताकत बढ़ा रहा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र जदल ही चंद्रयान-3 लॉन्च करेगा। ISRO ने इसकी तैयारियां भी शुरू कर दी है। चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर से थोडा अलग होगा। चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर में सिर्फ चार ही इंजन होंगे। चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर में पांच इंजन थे।
इस मिशन में लैंडर और रोवर जाएंगे। चांद के चारों तरफ घूम रहे चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर के साथ लैंडर-रोवर का संपर्क बनाया जाएगा।चंद्रयान-2 में विक्रम लैंडर के चारों कोनों पर एक-एक इंजन था जबकि एक बड़ा इंजन बीच में था लेकिन इस बार चंद्रयान-3 के साथ जो लैंडर जाएगा उसमें से बीच वाला इंजन हटा दिया गया है।
इससे फायदा यह होगा कि लैंडर का भार कम होगा। साइंटिस्ट ने लैंडर के पैरों में भी बदलाव करने की सिफारिश की है। इसके अलावा लैंडर में लैंडर डॉप्लर वेलोसीमीटर (LDV) भी लगाया गया है, ताकि लैंडिंग के समय लैंडर की गति काी सटीक जानकारी मिले और चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर जैसी घटना न हो।
चांद के गड्ढों पर चंद्रयान-3 के लैंडर-रोवर अच्छे से उतर कर काम कर सकें, इसके लिए बेंगलुरु से 215 किलोमीटर दूर छल्लाकेरे के पास उलार्थी कवालू में नकली चांद के गड्ढे तैयार किए जाएंगे। इसरो के सूत्रों ने बताया कि छल्लाकेरे इलाके में चांद के गड्ढे बनाने के लिए हमने टेंडर जारी किया है। हमें उम्मीद है कि सितंबर के शुरुआत तक हमें वो कंपनी मिल जाएगी जो ये काम पूरा करेगी। इन गड्ढों को बनाने में 24.2 लाख रुपये की लागत आएगी।
ये इसलिए बनाए जा रहे हैं ताकि हम चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर के मूवमेंट की प्रैक्टिस कर सकें। साथ ही उसमें लगने वाले सेंसर्स की जांच कर सकें। इसमें लैंडर सेंसर परफॉर्मेंस टेस्ट किया जाएगा। इसकी वजह से हमें लैंडर की कार्यक्षमता का पता चलेगा।
इन नकली चांद के गड्ढों पर चंद्रयान-3 का लैंडर 7 किलोमीटर की ऊंचाई से उतरेगा। 2 किलोमीटर की ऊंचाई पर आते ही इसके सेंसर्स काम करने लगेंगे। उनके अनुसार ही लैंडर अपनी दिशा, गति और लैंडिंग साइट का निर्धारण करेगा। इसरो के वैज्ञानिक इस बार कोई गलती नहीं करना चाहते इसलिए चंद्रयान-3 के सेंसर्स पर काफी बारीकी से काम कर रहे हैं।
इसरो के अन्य वैज्ञानिक ने बताया कि हम पूरी तरह से तैयार लैंडर का परीक्षण इसरो सैटेलाइट नेविगेशन एंड टेस्ट इस्टैब्लिशमेंट में कर रहे हैं। फिलहाल हमें ये नहीं पता कि यह कितना उपयुक्त परीक्षण होगा और इसके क्या नतीजे आएंगे लेकिन परीक्षण करना तो जरूरी है, ताकि चंद्रयान-2 वाली गलती न होने पाए।