मध्यप्रदेश में 205 बाघों की जगह रह रहें 706, जगह की लड़ाई में 39 की मौत

anukrati_gattani
Published on:

देश में जैसे फिलहाल चीता प्रोजेक्ट चल रहा है। वैसे ही लगभग 50 साल पहले 1973 में टाइगर प्रोजेक्ट शुरू किया गया था। आपको बता दें कि शुरू में भारत में 9 टाइगर रिजर्व थे, जिसमें से मध्यप्रदेश का कान्हा टाइगर रिजर्व शामिल है। वहीं, मध्यप्रदेश में अब 6 टाइगर रिजर्व है और सबसे ज्यादा 206 की संख्या में कान्हा टाइगर रिजर्व में हैं।

आपको बता दें कि 50 साल पहले 1973 में टाइगर प्रोजेक्ट को शुरू किया गया था। यह प्रोजेक्ट बाघों को बसाने के लिए शुरू किया था। मध्यप्रदेश में भी उस टाइम एक टाइगर रिजर्व था। उसके बाद तो एमपी में टाइगर प्रोजेक्ट काफी काम हुआ और अब हमारे राज्य में 6 टाइगर रिजर्व है। वहीं, मध्यप्रदेश में टाइगर का आंकड़ा लगभग 706 तक है।

 

बाघों की बढ़ती संख्या

दरअसल अब यह टाइगर प्रोजेक्ट तो रच बस गया लेकिन, उन्हें रखने की समस्या बढ़ गई हैं। बढ़ती संख्या देख बाघों के लिए जगह कम पड़ने लगी है। इस कारण इंसानों और बाघ के बीच आए दिन मुठभेड़ के मामले आते रहते हैं।

मध्यप्रदेश को बाघों के लिए बहुत माना जाता है। दरअसल, यहां 6 टाइगर रिजर्व है जिनमें बांधवगढ़, पेंच, सतपुड़ा, कान्हा, संजय और पन्ना हैं। आंकड़ों की माने तो यह बांधवगढ़ में 31 टाइगर की क्षमता होने के बावजूद यहां 220 बाघ रह रहें हैं। इसी तरह कान्हा टाइगर रिजर्व में 41 बाघों की जगह 149 बाघ है। वहीं, पन्ना में 32 बाघों की जगह पर 83 रह रहें है। जबकि पेंच की बात करें तो 24 की जगह 129 बाघ है। संजय में 34 की जगह पर 35 है। हालांकि यहां ज्यादा फर्क नहीं है । पर सतपुड़ा में 43 की जगह 90 टाइगर है। मध्यप्रदेश में 205 टाइगर के रहने का इंतजाम जबकि 706 बाघ यहां पर हैं।

जिस हिसाब से मध्यप्रदेश में बाघ है उस हिसाब से यहां उनके लिए पर्याप्त जगह नहीं है। अपने क्षेत्राधिकार के लिए बाघ आजकल एक दूसरे से लड़ते दिखाई पड़ते है या फिर शहर की और चल देते हैं। आपको बता दें भोपाल में मैनिट शिक्षण संस्था में एक बाघ आ गया था जो कि पूरे एक महीने बाद पकड़ा पाया था। बाघों के लिए उनके हिसाब से जगह न होने के कारण अब वो आपस में लड़ते नजर आते हैं। वहीं, इस आपसी लड़ाई से मध्यप्रदेश में 39 बाघों की मौत हो चुकी हैं।