शहर में लगातार कोरोना संक्रमण बढ़ रहा है। इलाज के लिए न तो बिस्तर बचे हैं न ही अस्पताल। लेकिन इस हालात को खत्म करने के बजाए इंदौर में इसे बढ़ाने के लिए अधिकारी, नेता सभी लगे हुए हैं। कोई कोरोना को नहीं रोकना चाहता है, सभी चाहते है तो केवल चुनाव। इंदौर में जनता से ज्यादा चिंता चुनावों की हो रही है। नेता हो या अफसर फैसला चुनावों को देखते हुए ले रहे हैं। हर समय डर में रहकर पल-पल तनाव में मर रहे लोग भी इस नौटंकी को देख रहे हैं, लेकिन बोलने की हिम्मत नहीं दिखा रहे हैं। कभी अपने हक के लिए लडऩे वाला ये शहर आज एक बड़े श्मशान के समान लगता है, जिसमें चारों और जहनी तौर पर मुर्दे हो चुके लोग भटक रहे हैं। इन्हें न तो अपनी परवाह है न ही अपने परिवार की। बस डर है तो इस बात का की मौत आ जाएगी। क्योंकि इन्हें इस तरह से डराया जा रहा है। कोरोना को रोकने के लिए आगे बढ़कर बोलने की हिम्मत किसी में नहीं है। शहर के कर्ताधर्ता बने अफसरों को न तो अपनी गलतियां दिखती है न ही वे इसके बारे में सुनना चाहते हैं। चारणभाटों की फौज में रहने वाले अफसर, लॉकडाउन के जरिए इसे काबू में पाने के विकल्प को मानने के बजाए चुप बैठे हुए हैं। अफसरों के चारणभाट बने हुए ये लोग अफसरों की बातों को ही दुनिया का अंतिम सच बताने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं। अफसरों की चरणरज को सुहाग का सिंदूर समझने वाले चारणभाटों में से किसी ने कभी उन घरों की तरफ मुंह भी नहीं किया होगा जिन घरों के दीपक इस बीमारी में बुझ चुके हैं। कभी उनका हाल जानने की जहमत भी नहीं की होगी इन्होने। इंदौर में सांसद, पूर्व सांसद, विधायक, पूर्व विधायक, पूर्व पार्षद, सरपंच कुल मिलाकर 5 हजार से ज्यादा नेता होंगे। लेकिन कोरोना में जनता को बचाने के लिए किसी की आवाज नहीं निकल रही है। शर्म तो इस बात के लिए आ रही है कि अपने राजनैतिक फायदों को लेकर पार्टियों की गाइड लाइन और उनके अनुशासन को ठेंगे पर रखने वाले नेता भी पार्टी की गाइड लाइन के नाम पर जनता को मरने के लिए अपने हाल पर छोडकर तमाशबीन बने हुए हैं। कभी खुले तौर पर अपनी पार्टी की चुनावों में खिलाफत कर प्रत्याशी को लगभग हरवाने की कगार पर पहुंचाने वाले भी चुप हैं। वहीं 31 सालों तक शहर का चेहरा बनने वाले जो कि कभी फैसला सुना दिया करते थे, वो आज चिट्ठी लिखने में भी डर रहे हैं। ये सब लोग ये भूल गए की जब जंगल में आग लगती है तो वो छोटे बड़े कोई पेड नहीं बचता है। घास से लेकर दरख्त तक सब जलते हैं। सरकार को जनता की चिंता नहीं है सरकार को चुनावों की चिंता है। ओर सरकार की चिंता में उनकी पार्टी से ज्यादा अधिकारी चिंतित हैं। चुनाव जितने के लिए तो सरकार को अधिकारी अपनी तैयारी बता रहे हैं, लेकिन कोविड को रोकने में फैल होने के कारण न तो सरकार जानना चाहती है, न अधिकारी बताना चाहते हैं। लगता है सरकार तो प्रदेश को जमीन मान बैठी है, उसकी नजर में जनता का कोई मतलब ही नहींहै। यदि कोरोना ऐसे ही बढ़ता रहा तो मुझे लगता है शायद जनता बचे ही न। सरकार और अधिकारी राज तो करना चाहते हैं लेकिन ये भूल गए कि राज करने के लिए भी जनता चाहिए। यदि जनता ही नहीं बची तो राज किस पर करोगे। शायद मुर्दों पर। राज करने की इस प्रवृत्ति के लिए वैसे भी पहले ही इंदौरवालों को जहनी तौर पर तो मुर्दा बना ही चुके हैं और अब यदि ये शरिर से भी मुर्दे हो जाएंगे तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि इन्हें ङ्क्षजदा रहने वालों से अपनी जयजयकार करवाने का हुनर आता है।
बाकलम- नितेश पाल