क्यों लगातार कम हो रहा है विदेशी मुद्रा भंडार, जानें क्या हैं इसमें कमी की वजह

srashti
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भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले कुछ हफ्तों से लगातार गिर रहा है। 27 दिसंबर 2023 को समाप्त हुए सप्ताह में यह 4.11 अरब डॉलर घटकर 640.28 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो कि करीब 8 महीने का न्यूनतम स्तर है। यह चौथा लगातार सप्ताह है जब भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट देखी गई है।

रिकॉर्ड उच्चतम से अब तक की गिरावट

27 सितंबर 2023 तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 705 अरब डॉलर के उच्चतम स्तर पर था। लेकिन उसके बाद से इसमें लगातार कमी देखने को मिल रही है। इस दौरान विशेष रूप से विदेशी करेंसी एसेट्स में गिरावट आई है, जो 551.9 अरब डॉलर तक पहुंच गया। हालांकि, गोल्ड रिजर्व में 54.1 करोड़ डॉलर की वृद्धि हुई है और यह अब 66.268 अरब डॉलर तक पहुँच चुका है।

गिरावट का प्रमुख कारण

विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट के पीछे एक बड़ा कारण भारतीय रुपये का अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर होना है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) को रुपये को स्थिर रखने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार से हस्तक्षेप करना पड़ता है। पिछले साल अक्टूबर में, RBI ने डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट को रोकने के लिए 9.28 अरब डॉलर की शुद्ध बिक्री की थी। उस समय रुपया 83.79 के स्तर पर था, लेकिन अब यह 85.77 तक गिर चुका है, जिससे RBI पर दबाव बढ़ गया है।

विदेशी मुद्रा भंडार का महत्व

विदेशी मुद्रा भंडार एक देश की आर्थिक सेहत को मापने का एक महत्वपूर्ण संकेतक होता है। इसमें विदेशी करेंसी, गोल्ड रिजर्व, स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स (SDR), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से मिली रकम, और ट्रेजरी बिल्स शामिल होते हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य देश के भुगतान संतुलन की निगरानी करना, मुद्रा विनिमय दरों में स्थिरता बनाए रखना और वित्तीय बाजारों में संतुलन बनाए रखना है।

विदेशी मुद्रा भंडार के फायदे

जब विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त होता है, तो इसका असर सकारात्मक होता है। यह देश की अंतरराष्ट्रीय छवि को मजबूत करता है और वैश्विक व्यापारियों को यह सुनिश्चित करने का विश्वास देता है कि वे अपने भुगतान समय पर कर सकते हैं। साथ ही, एक मजबूत भंडार वित्तीय संकटों से निपटने में सहायक होता है और देश को अपनी देनदारियों को समय पर पूरा करने में मदद करता है।

भंडार के घटने से होने वाले नुकसान

अगर विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार गिरावट आती है, तो इससे देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। इससे आयात बिल का भुगतान करना मुश्किल हो सकता है और आर्थिक संकट गहरा सकता है। इसके अलावा, इससे सरकार और RBI के लिए संकटों से निपटने में कठिनाई हो सकती है।

RBI के पास देश के विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन करने की जिम्मेदारी होती है। यह केंद्रीय बैंक सरकार के साथ मिलकर एक पॉलिसी फ्रेमवर्क के तहत काम करता है, जो वित्तीय और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है। अगर भंडार कम होता है, तो RBI को अधिक दबाव का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उसे रुपये की गिरावट को नियंत्रित करने के लिए और आर्थिक संकटों से बचने के लिए सक्रिय कदम उठाने होते हैं।