क्या है यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट? इलाहाबाद HC ने किया रद्द, 15.75 लाख छात्र होंगे प्रभावित

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यह अधिनियम धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करता है और डिग्री देने के यूजीसी के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करता है। वहीं कोर्ट के इस फैसले से 15 लाख से अधिक छात्र और हजारों शिक्षक प्रभावित होंगे। हालांकि ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि मदरसा अधिनियम के समाप्त होने के बाद प्रदेश में बड़ी संख्या में मौजूद मदरसों में पढ़ने वाले छात्र प्रभावित होंगे। लिहाजा राज्य सरकार उन्हें प्राइमरी, हाई स्कूल और इंटरमीडिएट बोर्ड्स से संबद्ध नियमित स्कूलों में समायोजित करे।

मदरसा एजुकेशन को बढ़ावा देना उद्देष्य
आपको बता दें यूपी में मदरसा एजुकेशन को व्यवस्थित करने के लिए साल 2004 में यह कानून बनाया गया था। इस कानून के तहत अरबी, उर्दू, फारसी, इस्लामिक स्टडीज, तिब्ब (पारंपरिक चिकित्सा), दर्शन और अन्य खास शाखाओं में दी जाने वाली शिक्षा शामिल थी। बोर्ड के अनुसार मदरसा एजुकेशन ऐक्ट के मुताबिक, बोर्ड का काम यूजी (कामिल) और पीजी (फाजिल) डिग्री, डिप्लोमा (कारी), सर्टिफिकेट कोर्स और अन्य शैक्षणिक गतिविधियां प्रदान करना है। इसके साथ ही मुंशी और मौलवी (दसवीं कक्षा), आलिम (12वीं कक्षा) कोर्स की परीक्षा भी आयोजित करना बोर्ड की जिम्मेदारी है। कैसे बदली मदरसा शिक्षा

धर्मनिरपेक्षता के उल्लंघन का हवाला
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पहला कि यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ता के उस तर्क को ध्यान में रखा, जिसमें बताया गया कि मदरसा अधिनियम की योजना और उद्देश्य केवल इस्लाम, इसके नुस्खे, निर्देशों और दर्शन में शिक्षा को बढ़ावा देना है। इसके अलावा हाई कोर्ट न अपने फैसले में इस तर्क को भी आधार बनाया कि मदरसा बोर्ड डिग्री देने की शक्ति रखता है, जो कि यूजीसी का क्षेत्र है। हालांकि इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस आदेश का असर यूपी के 13,329 पंजीकृत मदरसों में पढ़ने वाले 15.75 लाख छात्रों पर पड़ेगा। बोर्ड के अनुसार, 33,689 शिक्षक मदरसों से जुड़े हैं, जिनमें से 9,646 सरकारी वित्त पोषित हैं। राज्य के मदरसों में 13,239 गैर-शिक्षण कर्मचारी हैं।