विज्ञान ने इस दुनिया को कहां से कहां पहुंचा दिया है. वैज्ञानिकों ने कमाल की तकनीक ढूंढ़ निकाली है जिससे व्यक्ति कुछ भी कर सकता है. एक बार फिर वैज्ञानिकों ने कमाल करते हुए एक ऐसी तकनीक विकसित कर ली है जिसकी वजह से अब 60 की उम्र का व्यक्ति 30 साल का नजर आएगा. जी हां यह सुनने में थोड़ा अजीब है लेकिन वैज्ञानिकों ने इस तकनीक को विकसित कर लिया है. इस तकनीक का उपयोग शरीर के जिस भी हिस्से पर किया जाएगा वह अपना पुराना काम भूलेगा नहीं बल्कि ज्यादा सक्रियता से वह अंग काम करेगा.
इंग्लैंड के बाब्राहम इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने इस तकनीक को विकसित किया है. इस तकनीक को ‘टाइम जंप’ नाम दिया गया है. जिससे व्यक्ति की त्वचा 30 साल कम दिखाई देगी साथ ही उसी तरह काम भी करेगी. बता दें कि इस इंस्टीट्यूट में एक रिसर्च प्रोग्राम चलाया जा रहा है जिसके तहत यहां पर पुरानी कोशिकाओं को रिस्टोर करने की कोशिश की जा रही है, ताकि वह मॉलिक्यूलर स्तर पर अपनी जैविक उम्र ना खोएं.
वैज्ञानिकों द्वारा की गई इस स्थिति को आज एक जर्नल में प्रकाशित किया गया है और स्टडी के मुताबिक वह रीजेनरेटिव मेडिसिन जो उम्र को कम करती है उनका भविष्य बदलने वाला है, क्योंकि तकनीक विकसित हो चुकी है. रीजेनरेटिव मेडिसिन वो दवाई होती है जिनमें हमारी कोशिकाओं के काम करने की क्षमता को बढ़ाने में मदद करने की क्षमता होती है. ढलती उम्र के साथ जिनोम बुढ़ापे की ओर जाने लगते हैं. रीजेनरेटिव बायोलॉजी अब पुरानी कोशिका को बदलकर नई कोशिकाएं डालने और मरम्मत करने का काम करता है जिसमें हमारा शरीर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इस तरह की प्रक्रिया को इंड्यूस्ड स्टेम सेल कहा जाता है.
इंड्यूस्ड स्टेम सेल की प्रक्रिया कई हिस्सों में पूरी की जाती है क्योंकि इन कोशिकाओं में इतनी शक्ति होती है की ये किसी भी तरह की कोशिका में खुद को बदल सकती है. इसकी मदद से पुरानी कोशिका को हटाकर उसके जैसी नई कोशिका बनाई जाती है. यह प्रक्रिया ठीक उसी तरह काम करती है जैसे एक इंसान दूसरे का काम कर देता है.
बता दें कि इससे शानदार तकनीक को नोबेल पुरस्कार विजेता एक साइंटिस्ट ने तैयार किया है. यह तकनीक बुढ़ापे की समस्याओं को खत्म कर देगी. वैसे भी आजकल हर कोई हर उम्र में जवान देखना चाहता है इसीलिए यह तकनीक बूढ़ी हो रही कोशिकाओं को हटाकर उसकी मरम्मत करके उन्हें फिर से नया बना देगी. बता दें कि इस तकनीक को अभी विकसित नहीं किया गया है बल्कि सामान्य कोशिकाओं को रिप्रोग्रामिंग कोशिका में बदलने का काम पहली बार साल 2007 में कर दिया गया था.
स्टेम सेल फ्री प्रोग्रामिंग की प्रक्रिया लगभग 50 दिन की होती है इस दौरान किसी भी तरह की कोशिकाओं में इन्हें बदला जा सकता है. इन्हें शरीर के अंदर डाल कर जिस अंग की कोशिकाओं को बदलना है उसके जैसा काम करवाया जाता है. इसके लिए चार मॉलिक्यूल बनाए गए हैं जिन्हें यामानाका फैक्टर्स कहा जाता है. कोशिकाओं को बदलने के तरीके को मैच्योरेशन फेज ट्रांजिएंट रिप्रोग्रामिंग कहां जाता है. 13 दिनों के लिए यामानाका फैक्टर्स को कोशिकाओं के साथ मिक्स किया जाता है. इसके बाद कोशिकाओं को विकसित होने का समय दिया जाता है और यह देखा जाता है कि जिस कोशिका को रिप्रोग्राम किया गया है वह असली कोशिका की तरह काम कर पा रही है या नहीं. बता दें कि इस प्रक्रिया को त्वचा की कोशिकाओं पर काम करने के लिए विकसित किया गया है. प्रक्रिया को करने के बाद जब कोलैजन का उत्पादन सही मात्रा में होने लगता है इसका मतलब है कि रिप्रोग्राम कोशिका सही तरीके से काम करेगी.
आम आदमी अपनी भाषा में कहता है कि उम्र सिर्फ एक संख्या है लेकिन वैज्ञानिकों के मुताबिक यह संख्या नहीं बल्कि एक बीमारी है जो आपके शरीर को बुढ़ापे की ओर ले जाती है जिससे आपके शरीर के हर अंग पर असर होता है सबसे ज्यादा असर त्वचा पर दिखाई देता है क्योंकि आपके अंग का बाहरी हिस्सा है. और इस नई तकनीक के जरिए कोशिकाओं को रिप्रोग्राम्ड कर आप अपनी बढ़ती उम्र की परेशानियों से निजात पाकर जवान दिख सकते हैं. भविष्य में इस तकनीक से कई बीमारियों का इलाज भी किया जा सकेगा. इस तकनीक को परफेक्ट बनाने के लिए इस पर अभी भी बहुत सारा काम करना बाकी है, जिसके सकारात्मक नतीजे आने की उम्मीद है.