जब मैं 3 साल की थी तब डॉक्टर की लापरवाही की वजह से व्हीलचेयर पर आ गई, लेकिन मैंने हौसलों को कभी नहीं टूटने दिया – दिव्यांग सपना शर्मा राष्ट्रीय आर्म रेसलिंग ब्रांज मेडल विजेता

इंदौर। हाल ही में उत्तर प्रदेश के मथुरा में सम्पन्न राष्ट्रीय आर्म रेसलिंग प्रतियोगिता में शहर की दिव्यांग सपना शर्मा ने ब्रॉन्ज मेडल जीतकर शहर और प्रदेश का नाम रोशन किया है। इस प्रतियोगिता में कुल 1300 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था, जिसमें 67 दिव्यांग थे। इनमें सपना शर्मा ने तीसरा स्थान हासिल किया है। ब्रोंज मेडल हासिल करने के बाद सपना शर्मा का चयन भारतीय आर्म रेसलिंग टीम में कजाकिस्तान में होने वाली अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा के लिए हुआ है।

जब मैं 3 साल की थी तब डॉक्टर की लापरवाही की वजह से व्हीलचेयर पर आ गई, लेकिन मैंने हौसलों को कभी नहीं टूटने दिया - दिव्यांग सपना शर्मा राष्ट्रीय आर्म रेसलिंग ब्रांज मेडल विजेता

सवाल: आपके साथ क्या हुआ था जिस वजह से आपकी जिंदगी बदल गई?

जब मैं 3 साल की थी तब डॉक्टर की लापरवाही की वजह से व्हीलचेयर पर आ गई, लेकिन मैंने हौसलों को कभी नहीं टूटने दिया - दिव्यांग सपना शर्मा राष्ट्रीय आर्म रेसलिंग ब्रांज मेडल विजेता

 

जवाब: मैं जब 3 साल की थी तो एक डॉक्टर ने ट्रीटमेंट के दौरान लापरवाही बरती और इस वजह से मेरी जिंदगी पूरी तरह बदल गई। मेरी जिंदगी व्हीलचेयर पर आ गई। मुझे जब भी स्कूल में जाती थी और अन्य जगहों पर खेलने जाती थी तो बच्चे मेरे साथ कम खेलते थे जो गेम वह खेल सकते थे वह मेरे लिए खेलना मुश्किल था लेकिन ना मुमकिन नहीं। मैं बेबस जरूर थी लेकिन मैंने कभी हौसला नहीं छोड़ा। मैंने पढ़ाई के दौरान भी कई प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी की सफलता नहीं मिली लेकिन मैंने अन्य संस्थानों में कार्य किया। और कभी अपने हौसले को टूटने नहीं दिया। 2016 में मैंने संदीप शर्मा से लव मैरिज की उसके बाद कुछ अपनों की मदद और उनके मार्गदर्शन में मेरे खेल की दुनिया का सफर शुरू हुआ। और आज मैं इस मुकाम पर पहुंची हूं।

जब मैं 3 साल की थी तब डॉक्टर की लापरवाही की वजह से व्हीलचेयर पर आ गई, लेकिन मैंने हौसलों को कभी नहीं टूटने दिया - दिव्यांग सपना शर्मा राष्ट्रीय आर्म रेसलिंग ब्रांज मेडल विजेता

सवाल: अभी तक आपने कितने नेशनल और इंटरनेशनल गेम में पार्टिसिपेट किया है?

जवाब: मैने तीन बार नेशनल लेवल पर पार्टिसिपेट किया है जब पहली बार मैंने पार्टिसिपेट किया तो मुझे जीत नहीं मिली इस वजह से मैं हताश हुई लेकिन हिम्मत नहीं हारी में 2022 और 23 में गुजरात के साथ खेली इसमें उपविजेता रही हाल ही में मुझे मध्यप्रदेश दिव्यांग महिला टीम का कप्तान बनाया गया है। मैंने अपने खेल जीवन में यह अनुभव किया है कि दिव्यांग लड़कियां खेल में कम आना चाहती है मुझे बॉयज के साथ प्रैक्टिस करनी पड़ती है क्योंकि दिव्यांग लड़कियां खेलों में बहुत कम है। मुझे लगता है कि सरकार को इस दिशा में पहल करना चाहिए और लड़कियों को लड़कियों की तरह सुविधाएं मुहैया करवाई जानी चाहिए।