सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें गुजरात की एक रेप पीड़िता को 28 हफ्ते की गर्भधारण के दौरान अबॉर्शन करने की अनुमति दी गई। इस मामले में, 25 साल की महिला ने 19 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में आवेदन किया था। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां ने शनिवार की छुट्टी के बावजूद इस मामले की त्वरित सुनवाई की।
सुप्रीम कोर्ट ने महिला की ताजगी मेडिकल रिपोर्ट की मांग की थी और इसे रविवार को प्रस्तुत किया गया था। सोमवार को सुनवाई के दौरान, जस्टिस बीवी नागरत्ना ने महिला को अबॉर्शन की अनुमति दी। विधि के तहत, 24 हफ्तों से अधिक गर्भधारण की स्थिति में अबॉर्शन की अनुमति आवश्यक होती है।
पहले इस मामले में, गुजरात हाईकोर्ट ने 17 अगस्त को पीड़ित महिला की याचिका को खारिज कर दिया था। हालांकि, इस आदेश की प्रतिलिपि जारी नहीं की गई थी। इसके बाद, याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट की ओर आगे बढ़ी थी। 19 अगस्त को सुनवाई के दौरान, जस्टिस नागरत्ना ने गुजरात हाईकोर्ट की तरफ उँगली उठाई और कहा कि जब ऐसे मामलों में हर दिन महत्वपूर्ण होता है, तो सुनवाई की तारीखों को टाला क्यों गया? इस बार की तारीख को हाईकोर्ट ने 11 अगस्त को सुनवाई नहीं की थी, बल्कि इसे 12 दिन बाद की तारीख पर रख दिया था।
मामले की विशेषता और हाईकोर्ट में घटित घटनाओं की जानकारी
याचिकाकर्ता के पक्षकार वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 7 अगस्त को एक याचिका हाईकोर्ट में दायर की गई थी, जिसमें गर्भपात के संदर्भ में अपनी प्राथमिकता थी। अदालत ने 8 अगस्त को इस मामले की सुनवाई की, जिसमें गर्भावस्था की स्थिति की जाँच की आवश्यकता थी। उसी दिन, गर्भावस्था की स्थिति को जानने के लिए एक चिकित्सा मंडल का गठन करने का आदेश जारी किया गया था।
इसके परिणामस्वरूप, 10 अगस्त को उस मंडल ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। 11 अगस्त को उस रिपोर्ट को नोटिस किया गया और मामले की सुनवाई की तारीख 23 अगस्त के लिए तय की गई।