अगर चाहते हैं भगवान शिव का आशीर्वाद, तो सावन में इन बातों का रखें खास ध्यान

सावन का महीना भगवान शिव की आराधना और तपस्या का पावन समय है, जो 2025 में 11 जुलाई से शुरू हो रहा है। इस दौरान बाल-दाढ़ी कटवाना, तेल मालिश, दही सेवन और बिस्तर पर सोना वर्जित माना गया है, ताकि शिव कृपा सहजता से प्राप्त हो सके।

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अगर चाहते हैं भगवान शिव का आशीर्वाद, तो सावन में इन बातों का रखें खास ध्यान

हिंदू धर्म में सावन का महीना विशेष धार्मिक महत्व रखता है, जिसे भगवान शिव की भक्ति और तपस्या के लिए सबसे उत्तम समय माना गया है। साल 2025 में यह शुभ महीना 11 जुलाई से शुरू हो रहा है। इस पूरे मास में शिव भक्त पूजा, उपवास और धार्मिक क्रियाओं में विशेष रूप से लीन रहते हैं। यह महीना न केवल भक्ति का, बल्कि आत्मसंयम और शुद्ध आचरण का प्रतीक भी माना जाता है।

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मान्यता है कि इस अवधि में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखा जाए तो भगवान शिव की कृपा सहज ही प्राप्त होती है। वहीं, कुछ कार्य ऐसे हैं जिन्हें सावन में करने से परहेज करना चाहिए, वरना शिव कृपा में बाधा आ सकती है।

सावन में बाल और दाढ़ी कटवाने से परहेज

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन के महीने में बाल या दाढ़ी कटवाना वर्जित है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान शरीर के किसी भी अंग का कटाव नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है और इससे जीवन में विघ्न उत्पन्न हो सकते हैं। शिव भक्ति के इस समय आत्मसंयम और शारीरिक पवित्रता को बनाए रखना आवश्यक माना गया है।

तेल मालिश से बचें

‘स्कंद पुराण’ में यह स्पष्ट रूप से वर्णित है कि सावन में शरीर पर तेल लगाने से नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढ़ सकता है। खासतौर पर सोमवार के दिन, जो शिवजी को समर्पित होता है, उस दिन तेल का प्रयोग वर्जित माना गया है। यह नियम विशेष रूप से शिव भक्तों के लिए है जो सोमवार का व्रत रखते हैं।

सावन में दही का सेवन क्यों नहीं?

धार्मिक मान्यता यह भी कहती है कि सावन के महीने में दही का सेवन शुभ नहीं माना जाता। ऐसा करने से शुक्र दोष उत्पन्न होने की संभावना होती है, जिससे व्यक्ति के जीवन में भाग्य का साथ कमजोर पड़ सकता है। इसके साथ ही, इस अवधि में वात और पित्त विकार भी बढ़ सकते हैं, इसलिए आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से भी इसका त्याग उचित माना गया है।

बिस्तर छोड़ें, ज़मीन पर सोएं

सावन में उपवास करने वाले श्रद्धालुओं को बिस्तर की बजाय ज़मीन पर सोने की सलाह दी जाती है। ऐसा करने से तप और संयम की भावना मजबूत होती है और यह भक्ति की गंभीरता को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, कांसे के बर्तनों में भोजन करने से भी बचने की सलाह दी जाती है, क्योंकि यह धार्मिक रूप से अशुभ माना गया है और मानसिक अशांति का कारण बन सकता है।

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