वट पूर्णिमा पर करें ये उपाय, बढ़ेगा दांपत्य प्रेम, वैवाहिक जीवन में होगी खुशहाली और सौभाग्य की प्राप्ति

वट पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है, जो पति-पत्नी के वैवाहिक जीवन में प्रेम, सौभाग्य और सौहार्द बढ़ाने के लिए मनाई जाती है। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा और परिक्रमा कर त्रिदेवों का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है, जिससे वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। पूजा के साथ कुछ विशेष उपायों से दांपत्य संबंध और भी मजबूत होते हैं।

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हिंदू धर्म में वट पूर्णिमा का विशेष महत्व है, विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के लिए। यह पर्व न केवल पति की दीर्घायु के लिए उपवास और पूजा का प्रतीक है, बल्कि यह पति-पत्नी के बीच प्रेम, सामंजस्य और विश्वास को भी गहरा करने वाला दिन माना जाता है। इस दिन वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा कर परिक्रमा की जाती है, जो दांपत्य जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और स्थायित्व लाता है।

वट वृक्ष में रहता हैं त्रिदेवों का वास

वट वृक्ष को हिन्दू शास्त्रों में अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली माना गया है क्योंकि इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास माना जाता है। इस वृक्ष की पूजा करने से त्रिदेवों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत है और इसकी परिक्रमा करने से घर-परिवार से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। यदि किसी के वैवाहिक जीवन में समस्याएं चल रही हों, तो वट पूर्णिमा का व्रत और पूजा विशेष रूप से लाभकारी होती है।

वट पूर्णिमा का व्रत और पूजा का शुभ मुहूर्त

द्रिक पंचांग के अनुसार, वट पूर्णिमा की पूर्णिमा तिथि 10 जून 2025 को सुबह 11:35 बजे से आरंभ होकर 11 जून को दोपहर 1:13 बजे तक रहेगी। व्रत 10 जून, मंगलवार को रखा जाएगा और स्नान-दान 11 जून को किया जाएगा।

 वट पूर्णिमा की पूजन विधि 

सुहागिन महिलाएं इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें और सोलह श्रृंगार करें। पूजा की थाली में चावल, रोली, फूल, धूप, दीपक, अगरबत्ती, मौली, फल, मिठाई, चने और सुहाग की सामग्री रखें। वट वृक्ष के पास जाकर उसकी सफाई करें और जड़ों में जल अर्पित करें। त्रिदेवों का स्मरण करते हुए विधिवत पूजा करें।

पति के साथ करें परिक्रमा

पूजा के बाद पति के साथ वट वृक्ष की परिक्रमा करें। परिक्रमा करते समय मौली का धागा वृक्ष पर लपेटें। परिक्रमा की संख्या अपनी श्रद्धा अनुसार 7, 11, 21 या 108 हो सकती है, जिनमें 108 परिक्रमा सबसे पुण्यदायी मानी जाती है। हर परिक्रमा के साथ पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना करें।

मंत्र जाप के रूप में आप यह मंत्र बोल सकते हैं:

“अवैधव्यं च सौभाग्यं पुत्रपौत्रादि वर्धनम्। देहि देवि महाभागे वटसावित्री नमोऽस्तुते।।”
या फिर “ॐ नमः शिवाय” या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप भी कर सकते हैं।

सावित्री-सत्यवान की कथा और आरती

परिक्रमा के पश्चात वट वृक्ष के नीचे बैठकर सावित्री-सत्यवान की कथा पढ़ें या सुनें। यह कथा पतिव्रता धर्म और नारी शक्ति के अद्वितीय उदाहरण को दर्शाती है। इसके बाद वृक्ष की आरती करें और पूजा संपन्न करें। पूजा के अंत में अन्य सुहागिन महिलाओं को सुहाग की सामग्री (चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर आदि) और फल भेंट करें। घर लौटकर प्रसाद का वितरण करें और व्रत का पारण दिन ढलने के बाद सात्विक भोजन से करें।

सुखी दांपत्य जीवन के लिए विशेष उपाय

वट पूर्णिमा पर कुछ विशेष उपाय अपनाने से वैवाहिक जीवन और भी मधुर बनता है। इस दिन पति को लौंग का जोड़ा भेंट करें, इससे आपसी प्रेम गहरा होता है। पान के पत्ते का आदान-प्रदान रिश्ते में मिठास लाता है। अगर संभव हो तो जीवनसाथी को तुलसी की माला भी दें, जिससे मन शांत रहता है और पारिवारिक तनाव दूर होता है।

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