काली देवी का एक ऐसा मंदिर, जहां प्रसाद में मिलते हैं मोमो और चाउमीन, विदेशी भी करते हैं यहां सिर झुका कर प्रणाम

कोलकाता के तंगरा स्थित चीनी काली मंदिर हिंदू और चीनी संस्कृति का अनूठा संगम है, जहां मां काली को मोमो, चाऊमीन जैसे चाइनीज़ व्यंजन चढ़ाए जाते हैं। यह मंदिर करीब 65 साल पहले एक चमत्कार के बाद बना था और आज भी दोनों समुदाय मिलकर पूजा और त्योहार मनाते हैं।

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भारत विविधताओं का देश है, जहां हर कोना अपनी अनोखी संस्कृति और परंपरा के लिए जाना जाता है। ऐसा ही एक अद्भुत उदाहरण है कोलकाता के तंगरा इलाके में स्थित “चीनी काली मंदिर”, जिसे देखकर कोई भी हैरान रह जाएगा।

इस मंदिर की सबसे खास बात है कि यहां पारंपरिक लड्डुओं या हलवे की जगह देवी को मोमो, चाऊमीन, फ्राइड राइस और चॉप्सी जैसे चाइनीज़ व्यंजन चढ़ाए जाते हैं। आइए जानते हैं इस परंपरा के पीछे की कहानी क्या हैं…

65 साल पुरानी है मंदिर की चमत्कारी कहानी

इस मंदिर की शुरुआत एक चमत्कार से जुड़ी हुई है। करीब 65 साल पहले एक चीनी मूल का बच्चा गंभीर रूप से बीमार पड़ गया था, और तमाम इलाज के बाद भी ठीक नहीं हो रहा था। इसी दौरान, उसके माता-पिता ने तंगरा में स्थित एक पुराने पेड़ के नीचे दो काले पत्थरों की वेदी पर मां काली से प्रार्थना की। कहते हैं मां काली की कृपा से वह बच्चा चमत्कारिक रूप से स्वस्थ हो गया। इसके बाद, उस परिवार ने वहां मां काली का मंदिर बनाने का निश्चय किया। तभी से यहां बाकायदा पूजा-अर्चना शुरू हो गई।

हिन्दी-चीनी संस्कृति का अनूठा संगम

तंगरा को कोलकाता का “चाइना टाउन” भी कहा जाता है। 18वीं सदी के अंत में यहां चीनी प्रवासी आकर बसे थे, जिनकी पीढ़ियाँ अब यहीं की स्थायी निवासी बन चुकी हैं। इसी कारण मंदिर में हिंदू और चीनी सभ्यताओं का एक खूबसूरत संगम देखने को मिलता है।मंदिर के प्रवेश द्वार पर चीनी और अंग्रेज़ी में साइनबोर्ड लगे हैं, जो इसे “चीनी काली मंदिर” के रूप में पहचान दिलाते हैं। अंदर की छतों पर आपको चीनी ड्रैगन और फीनिक्स की कलाकृतियाँ देखने को मिलेंगी, तो वहीं देवी काली की मूर्ति के साथ हिंदू देवताओं की तस्वीरें भी सजी हुई हैं।

यहां बंगाली पुजारी करते हैं पूजा

इस मंदिर में हर शाम नियमित रूप से एक बंगाली पुजारी आरती और पूजा संपन्न करते हैं। खासकर शनिवार को यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, जिसमें चीनी समुदाय के लोग भी पूरी श्रद्धा के साथ पूजा में भाग लेते हैं। यह धार्मिक सौहार्द का एक जीवंत उदाहरण है, जहां भाषा, जाति या संस्कृति की सीमाएं कोई मायने नहीं रखतीं।

चाइनीज अगरबत्ती और कागज़ जलाने की परंपरा

मंदिर में एक खास परंपरा यह भी है कि यहां चीनी अगरबत्तियाँ और हाथ से बने कागज जलाए जाते हैं, जिन्हें बुरी आत्माओं को भगाने और शांति लाने का प्रतीक माना जाता है। दिवाली और दुर्गा पूजा जैसे बड़े त्योहारों पर इस मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं, जिनमें चीनी और भारतीय दोनों समुदाय मिलकर उत्सव मनाते हैं।

यहां प्रसाद में मिलता है चाइनीज़ खाना

इस मंदिर की सबसे अनोखी परंपरा है इसका भोग, जिसमें देवी मां को चाइनीज़ व्यंजन चढ़ाए जाते हैं। मोमो, चाऊमीन, फ्राइड राइस, चॉप्सी जैसे व्यंजन न केवल पूजा में चढ़ते हैं, बल्कि बाद में श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में बांटे भी जाते हैं।