दिनेश निगम ‘त्यागी’
इस समय जब ‘कोरोना’ त्रासदी के रूप में सामने है। अस्पतालों में न बेड हैं, न इंजेक्शन, वेंटीलेटर और न ही आक्सीजन। ऐसे में पीड़ित पत्रकारों के लिए दो संगठन ‘संजीवनी’ बन कर उभरे हैं। एक है भोपाल की ‘हेल्थ केयर सोसायटी’, जो वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी के प्रयास से गठित हुई थी और दूसरा, ‘इंदौर प्रेस क्लब’ जो वरिष्ठ पत्रकार अरविंद तिवारी के नेतृत्व में काम कर रहा है। ये पीड़ित पत्रकारों की मदद अपनी-अपनी तरह से कर रहे हैं। सोसायटी को वरिष्ठ पत्रकार सुरेश मेहरोत्रा अकेले अपनी जेब से लगभग 40 लाख रुपए की मदद कर चुके हैं।
सोसयटी गंभीर बीमारी पर पत्रकारों को 10 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक की मदद करती है। पत्रकार के निधन पर परिजनों को एक लाख रुपए की सहायता देती है। अब कोराना पीड़ित पत्रकारों को बिना देर किए 15 से 25 हजार रुपए तक की तत्काल मदद दी जा रही है। यही स्थिति ‘इंदौर प्रेस क्लब’ की है। पीड़ित पत्रकारों की मदद के लिए क्लब दिन-रात साथ खड़ा है। आर्थिक मदद के अलावा बेड, इंजेक्शन और आक्सीजन उपलब्ध कराने में दोनों संगठन लगातार सक्रिय हैं। ये पत्रकारों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं। इस तरह के सकारात्मक प्रयास हर जिले में हों तो मुसीबत में भी पत्रकारों को किसी और की ओर न देखना पड़े।
महाराज! अब होना चाहिए था आपको सड़क पर….
महाराज अर्थात ज्योतिरादित्य सिंधिया, जिन्होंने अतिथि शिक्षकों के लिए सड़क पर उतरने का ऐलान किया था और नाराज होकर अपनी ही पार्टी की सरकार गिरा दी थी। उनका तर्क था कि जनता के काम नहीं हो रहे थे, इसलिए वे कमलनाथ को सड़क पर लाकर भाजपा में शामिल हो गए। संभव है सिंधिया ने तब ठीक किया हो? जनता के सामने कोरोना को लेकर जैसा संकट इस समय है, शायद सिंधिया ने पहले कभी नहीं देखा होगा। मरीजों को बेड, इंजेक्शन, आक्सीजन कुछ नहीं मिल रहा। वे जानवरों की तरह मर रहे हैं।
ऐसे मौके पर महाराज नदारद हैं। एक बार वे प्रकट हुए इस बयान के साथ कि उन्होंने ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर से फोन पर बात कर निर्देश दिए हैं कि कोरोना मरीजों का ठीक इलाज होना चाहिए। दूसरी बार उनके द्वारा 10 हजार रेमडेसिविर इंजेक्शन की व्यवस्था करने की खबर आई। समर्थकों का कहना है कि इंजेक्शन का खर्च महाराज उठाएंगे जबकि दूसरी खबर है कि इसका भुगतान राज्य सरकार करेगी। सच जो भी हो लेकिन ऐसे समय में महाराज का जनता के बीच से नदारद होना किसी के गले नहीं उतर रहा। जनता के लिए अपनी ही सरकार गिराने वाले सिंधिया को संकट के इस दौर में तो सड़क पर होना चाहिए था, वरना वे जनता के कैसे सेवक?
बेनकाब हो रहे जनता के कई रहनुमा….
ज्योतिरादित्य सिंधिया ही नहीं, प्रदेश के कई सांसद और विधायक जनता के बीच बेनकाब हो रहे हैं। उनकी गुमशुदगी एवं लापता होने के पोस्टर लगाए जा रहे हैं। भोपाल में तो सोशल मीडिया में अभियान चलाया गया है कि अपने सांसद-विधायक को घंटी बजाकर तलाशो। भोपाल सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर फिर नदारद हैं। उन्हें बीमार बताया जा रहा है। सवाल यह है कि जनता सांसद और विधायक क्यों चुनती है? संकट में साथ खड़ा देखने के लिए, समस्याओं का समाधान और क्षेत्र का विकास करने के लिए।
कोरोना संकट के ऐसे दौर में जब लोगों को इलाज नहीं मिल रहा, आक्सीजन न होने के कारण मौतें हो रही हैं, श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों में अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं मिल पा रही, तब चुना हुआ जन प्रतिनिधि गायब है या कहीं दुबका बैठा है, तो उसे कैसे माफ किया जा सकता है। ऐसे सांसदों, विधायकों के नाम लिखने की यहां जरूरत नहीं है क्योंकि ये जनता के सामने हैं। अगले चुनाव में जनता ही इन्हें सबक सिखाएगी। हालांकि कोरोना संकट के इस दौर में कुछ सांसद-विधायक जनता के बीच हैं। संक्रमित लोगों के लिए सुविधाएं जुटाने में जुटे हैं। अपनी निधि से पैसा दे रहे हैं और अपने घर से भी। सभी जन प्रतिनिधियों को इनका अनुसरण करना चाहिए।
अलग लकीर खींच चर्चा में गोपाल भार्गव….
कुछ सांसद, विधायक और मंत्री नदारद हैं और जनता के बीच बेनकाब हो रहे हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जो दूसरे से अपनी लकीर लंबी खींचने में भरोसा करते हैं। प्रदेश के पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव कुछ ऐसा ही करने के कारण चर्चा में हैं। कोरोना के पहले दौर में वे भोजन उपलब्ध कराने में सक्रिय थे, इस बार गढ़ाकोटा के व्रद्धाश्रम में उन्होंने एक कोविड सेंटर बनाया है। अपनी तरफ से आक्सीजन, वेंटीलेटर सहित तमाम सुविधाएं जुटाई हैं। इतना ही नहीं उन्होंने एमबीबीएस डाक्टर के लिए एक विज्ञापन निकाला है।
इसमें कहा गया है कि सेवाएं देने वाले डाक्टर को भार्गव अपनी जेब से दो लाख रुपए माह सैलरी देंगे। है न सबसे अलग निर्णय और अपनी ही सरकार पर चुटकी भी। इसी तरह जबलपुर में विवेक तन्खा अपने ढंग से प्रयासरत हैें। इंदौर में संजय शुक्ला के बाद पश्चिम बंगाल से लौटकर आए कैलाश विजयवर्गीय ने मोर्चा संभाल रखा है। विधायक विशाल पटेल ने दो करोड़ अपनी निधि से और 50 लाख निजी तौर पर देने का एलान किया है। छतरपुर में आलोक चतुर्वेदी मदद करने में पीछे नहीं हैं। ऐसे तमाम नेता हैं जो कोरोना संकट के इस दौर में अपने-अपने ढंग से जनता की मदद कर रहे हैं। संकट के इस दौर में नेताओं के बीच इसी प्रतिष्पर्द्धा की जरूरत है।
जिद का खामियाजा भुगत रही दमोह की जनता….
जैसी संभावना थी, वही हुआ। मतदान खत्म होने के बाद से ही दमोह में कोरोना संक्रमण ने रफ्तार पकड़ ली। लगभग डेढ़ सौ लोगों की मृत्यु हो चुकी है। हर रोज सैकड़ों कोरोना पॉजिटिव निकल रहे हैं। आक्सीजन सिलेंडर के लिए सबसे पहले लूटमार की नौबत दमोह शहर में ही आई। साफ है, कोरोना संक्रमण को दबा कर रखा जा रहा था, ताकि रैलियों, सभाओं एवं रोड शो में बाधा न आए। गत वर्ष भी कोरोना प्रकोप के दौरान दो दर्जन से ज्यादा विधानसभा सीटों के लिए उप चुनाव होना थे, लेकिन उन्हें समयावधि के अंदर न कराकर आगे बढ़ा दिया गया था। इस बार कोरोना की लहर पिछली बार से भी ज्यादा खतरनाक है।
लगातार मांग उठ रही थी कि उप चुनाव को आगे बढ़ा दिया जाए। कम से कम सभाओं, रैलियों पर ही प्रतिबंध लगा दिया जाए। जिद के चलते ऐसा कुछ नहीं किया गया। कांग्रेस ने भी उप चुनाव को आगे बढ़ाने की मांग बहुत देर से की। हां, जैसे ही मतदान खत्म हुआ, सरकार का जनता के प्रति मोह जाग्रत हुआ, तत्काल लॉकडाउन लगा दिया गया। तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इसका खामियाजा दमोह जिले की जनता भुगत रही है। गुस्सा इस कदर है कि केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के सामने भी लोग खरी-खोटी सुनाने की हिम्मत करने लगे हैं और पटेल को आपा तक खोना पड़ गया।