इस दौरान : मेरी एक नई कविता, करना होगा थोड़ा इंतज़ार!

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श्रवण गर्ग

नहीं है ठीक समय अभी
करना होगा थोड़ा इंतज़ार
होने के लिए ख़ुश या फिर
दिखने के लिए उदास
चुनना होगा कोई और वक्त
इस एक ज़रूरी काम के लिए !

समझाना होगा और भी लोगों को
मसलन ,वह बच्चा जो जा रहा है
किसी मोटर गराज पर
काम के लिए ,बांधे टिफ़िन
क़द से ऊँची सायकिल पर
या फिर खड़ा है जो उदास-सा चौराहे पर
भींचे हुए मुट्ठियाँ अपनी
दिहाड़ी मिलने के इंतज़ार में
या वह जो बेच रहा है सब्ज़ियाँ और फल
बदल कर नाम अपना बड़े मोहल्लों में !

समझाना होगा इन सब लोगों को-
बना रहे हैं लिस्टें पार्टी के लोग
रखे हुए हैं नज़रें उन पर
मुस्कुरा नहीं रहे हैं जो बिलकुल भी
या खड़े हुए हैं चुपचाप कोनों में
कर रहे रहे हैं बातें अपने आप से !
मान लिया जाएगा बेमुरव्वत—
रच रहे हैं ये कोई संगीन साज़िश
षड्यंत्रकारी हुकूमत के ख़िलाफ़
उखाड़ फेंकना चाह रहे हैं सरकार को !

ठीक नहीं है मौसम अभी
करना होगा इंतज़ार किसी और वक्त का
मर्ज़ी से होने के लिए ख़ुश या उदास !
वक्त आएगा ज़रूर हम सबका भी
हो गए हैं सूर्य भी अब उत्तरायण
खबर तो बसंत के आगमन की भी है
देखना ! बदलने वाला है अब बहुत कुछ !
लौटने वाली हैं ख़ुशियाँ
नहीं होना पड़ेगा ज़्यादा उदास !
बस करना होगा थोड़ा इंतज़ार !