Marriage Certificate Rules: विवाह हर व्यक्ति के जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जिसमें दो लोग एक साथ जीवन बिताने का वचन देते हैं। भारतीय संस्कृति में विवाह का समारोह विविध रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है, और हर धर्म के लिए अलग-अलग कानूनी प्रक्रियाएं होती हैं। आजकल, शादी के बाद अधिकतर लोग विवाह प्रमाणपत्र बनवाना आवश्यक मानते हैं।
विवाह प्रमाणपत्र: एक कानूनी दस्तावेज
विवाह प्रमाणपत्र एक वैध कानूनी दस्तावेज है, जो शादी के बाद पति या पत्नी में से किसी एक की वैवाहिक स्थिति को प्रमाणित करता है। यह खासकर विवाहित महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। हालांकि, विवाह प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए कुछ नियम और शर्तें निर्धारित की गई हैं।
विवाह प्रमाणपत्र के लिए अयोग्य व्यक्ति
भारत में शादी के लिए कानूनी उम्र सीमा निर्धारित की गई है: लड़की की उम्र 18 वर्ष और लड़के की उम्र 21 वर्ष होनी चाहिए। यदि विवाह के समय इनमें से कोई भी छोटी उम्र का है, तो विवाह प्रमाणपत्र जारी नहीं किया जाएगा। इसके अलावा, यदि कोई व्यक्ति दिल्ली में निवास करता है और उसकी शादी दिल्ली से बाहर हुई है, तो वह भी प्रमाणपत्र के लिए अयोग्य होगा। इसी तरह, यदि कोई अन्य राज्य का निवासी अपने राज्य से बाहर शादी करता है, तो उसे भी विवाह प्रमाणपत्र नहीं मिल सकेगा। यदि कोई व्यक्ति शादी के 5 साल बाद भी प्रमाणपत्र के लिए आवेदन नहीं करता है, तो वह भी अयोग्य होगा।
विवाह प्रमाणपत्र के लिए आवेदन की प्रक्रिया
विवाह प्रमाणपत्र के लिए आवेदन करने के नियम भी स्पष्ट हैं। नवविवाहित जोड़े को शादी के 30 दिनों के भीतर विवाह पंजीकरण के लिए आवेदन करना होता है। यदि वे इस अवधि में आवेदन नहीं करते हैं, तो उन्हें 5 साल तक कभी भी लेट फीस लगाई जा सकती है। इसके लिए उन्हें विवाह रजिस्ट्रार से बात करनी होगी।
विवाह एक सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, और विवाह प्रमाणपत्र इस प्रक्रिया का अनिवार्य हिस्सा है। इसे प्राप्त करने के लिए समझदारी और समयबद्धता आवश्यक है।