अर्जुन राठौर
इंदौर के श्रम विभाग द्वारा इन दिनों शहर भर के संस्थानों तथा फैक्ट्रियों को कर्मचारियों के शोषण और लूट की खुली छूट दे दी गई है इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि श्रम विभाग द्वारा संस्थानों का न तो समय पर निरीक्षण किया जाता है और ना ही यह देखने की कोशिश की जाती है कि जिन संस्थानों में 20 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं वहां पर कर्मचारियों को बोनस दिया जा रहा है या नहीं ।
इसके अलावा उन्हें न्यूनतम मजदूरी दी जा रही है या नहीं इसके साथ ही संस्थानों द्वारा प्रोविडेंट फंड तथा अन्य सुविधाएं प्रदान की जा रही है या नहीं इन्हें देखने की कोशिश भी नहीं की जाती इसका नतीजा यह है कि इंदौर के अनेक बड़े नामी-गिरामी संस्थानों में 20 से अधिक संख्या होने के बावजूद वहां पर न तो श्रम कानूनों का पालन हो रहा है और ना ही कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन दिया जाता है ,ना उन्हें छुट्टियां दी जाती है और ना उन्हें बोनस मिलता है और इन सब के पीछे श्रम विभाग के अधिकारी यह तर्क देते हैं कि शासन ने ऐसा कहा है कि जब शिकायत मिले तभी निरीक्षण करो ।
इस तथाकथित आदेश का सहारा लेकर श्रम विभाग द्वारा संस्थानों से निरीक्षण नहीं करने की कीमत पर वसूली भी की जाती है अब रहा शिकायत का प्रश्न तो काम करने वाला कर्मचारी अगर शिकायत करेगा श्रम विभाग में तो सबसे पहले उसकी नौकरी जाएगी ऐसी स्थिति में कोई भी कर्मचारी अपनी नौकरी गंवाने के लिए शिकायत क्यों करेगा। हालत इतनी बदतर है कि इंदौर की तमाम बड़ी मिठाइयों की दुकानों से लेकर रेडीमेड के बड़े कारखाने तथा विक्रेता इन तमाम लोगों के यहां 20 से अधिक लोगों का स्टाफ कार्यरत है लेकिन कर्मचारियों को श्रम कानून का कोई लाभ नहीं मिल पाता इस बारे में श्रम विभाग के पूर्व पदाधिकारी का यह भी कहना है कि श्रम विभाग अपना दायित्व नहीं निभा रहा है और संस्थानों से सांठगांठ करके उन्हें लूट की खुली छूट दे दी गई है ।