निशिकांत मंडलोई
गायकी के साथ अभिनय में भी रुतबा था किशोर दा का
ऐसा कहा जाता है कि हर जीनियस व्यक्तित्व कुछ सिरफिरा होता है लेकिन, यही सिरफिरापन उस व्यक्ति की सबसे अलग एक विशिष्ट पहचान होती है। ऐसी ही पहचान के धनी थे सुरों के बेताज बादशाह जाने माने पार्श्व गायक और अभिनेता-निर्माता किशोर कुमार। किशोर दा ने अपने फिल्मी जीवन में गायकी तथा अभिनय में एक उम्दा मुकाम हासिल किया। गंभीर से गंभीर बात को भी हँसी में कह जाना उनके जीवन की एक कला थी। 4 अगस्त 1929 को खंडवा के गांगुली परिवार में जन्मे आभाष यानी किशोर कुमार की उत्कट अभिनय क्षमता व बेजोड़ गायकी का सफर ,, बढ़ती का नाम दाढ़ी तथा चलती का नाम गाड़ी,, के समान चलता रहा। गायकी तथा अभिनय के क्षेत्र के अपना रुतबा जमाने वाले इस कलाकार ने जिंदगी के सफर को बेहद ही जिंदादिली के साथ जिया।
त्रासदी व कामदी के समन्वय बिंदु थे
किशोर कुमार को महज एक मजाकिया,मसखरा अदाकार मानना नाइंसाफी होगी। बेशक उनका विनोद बोध बहुत तीव्रता लिए था और इसे वे फ़िल्म जीवन और गायन में अक्सर प्रकट भी किया । या यूं कहें कि वे एक बेहद बेचैन किस्म की रूह थे। एक व्यक्ति की तरह किशोर तनिक जटिल नजर आते थे
उनकी तमाम नाटकीयता, अटपटापन और अपने किस्म के नए निरालेपन से सभी चौक जाते थे। किशोर दा एक आला दर्जे के मनोरंजनकार थे। लोगों को उन्होंने हँसाया और रुलाया भी खूब। अगर वे गा रहे होते थे तो उसका एक गहरा अर्थ हुआ करता था। वे त्रासदी और कामदी (कॉमेडी) का समन्वय बिंदु थे। यह अलग बात है कि यह तलाशना हमेशा मुश्किल रहा कि त्रासदी कहां शुरू और कामदी कहाँ खत्म हो गई। उनके संवेदनशील मन में एक ही समय में कई किस्म की चाहतें पल रहीं होती थीं।
एक यादगार मुलाकात
अपने जीवन में यूडलिंग करने वाली इस चक्रम शख्सियत से 28 अक्टूबर 1986 को सुबह खंडवा में उनके पुश्तैनी निवास गौरीकुंज में मुलाकात का मौका मिला। उन दिनों वे बम्बई की कोलाहल व आपाधापी के माहौल से आजीज होकर शेष जीवन खंडवा में बिताने का निश्चय कर मकान को व्यवस्थित कराने आए हुए थे। तभी उनके साथ गुजरे पलों को आपके साथ साझा करने का अवसर है।
सार्थक बातचीत
गौरीकुंज के चौकीदार ने जैसे ही हमें अंदर बुलाया तो किशोर दा बड़े ही सहृदयता से पास ही रखी लकड़ी की बेंच की ओर इशारा करते हुए बैठने का कहकर स्वयं भी उस समय की गोदरेज की फोल्डिंग चेयर खोल कर बैठते हुए बोले- कहो कैसे आना हुआ। उस समय मेरे साथ एक पत्रकार साथी रमेश सोमानी (अब स्वर्गीय) भी थे। उनकी इस खुशमिजाजी देख मैंने पूछ लिया- दादा हम तो सोच रहे थे कि शायद आप मिलने से इंकार कर देंगे पर आपसे मिलकर ऐसा नहीं लगता कि आपके बारे में जो सनकी, झक्की जैसी कही जाने वाली बातें सच हैं। तभी बीच में ही रोकते हुए बोले-देखो भई, प्यार से प्यार लात से लात वाली बात है। किसी से मुलाकात करना, बतियाने पर रोक नहीं है, पर पता नहीं पत्रकारों से क्यों मुझे मिलने का मन नहीं करता। खासकर फिल्मी पत्र पत्रिकाओं के खबरनवीसों से। उनका उद्देश्य होता है कि कोई आदमी बड़ा हो जाए तो उसे कैसे गिराना। यह खूबी बम्बई के फिल्मी पत्रकारों में है। क्योंकि वे उलजुलूल बातें लिखते हैं। पत्रकार देवयानी का विशेष रूप से जिक्र किया व फ़िल्म पत्रिका स्टार डस्ट को बेकार डस्ट तथा स्टार एंड स्टाइल को बकवास स्टाइल बताया। किशोर दा बोले, देखो भई, हाथी चले बाजार, कुत्ते भूके हजार वाली बात है। अच्छी बात पूछो अच्छा जवाब देंगे।
लता अवार्ड पाकर खुश थे
मई 1986 में लता मंगेशकर अवार्ड मिलने के संबंध में उनके विचार क्या हैं पूछने पर प्रसन्नता उनके चेहरे से झलक रही थी। खुशी जाहिर करते कहा- मेहनत कभी बेकार नहीं जाती।
अपनत्व तो खंडवा में ही है
खंडवा में ही जीवन के बाकी दिन बिताने की बात पर किशोर दा बोले अपनत्व तो खंडवा में है अपनों के बीच। बस अब माता(गौरी बाई) पिता(कुंजबिहारी) की स्मृति में एक सभागार खंडवा में बनाना और शेष जिंदगी यहीं सुकून से बिताना यही तमन्ना है। अब तो खाना और गाना दोनों ही लिमिट में कर दिया है। कम खाना ज्यादा जीना वाला सिद्धांत अपनाया है। कबीर के दोहे गुनगुनाता रहता हूं। खंडवा की आबोहवा तथा यहां के इंसान अच्छे हैं।
गाना या संगीत अच्छा है
गानों के गिरते स्तर को लेकर वे चिंतित थे। उन्होंने कहा कि आजकल के गायकों में अपना खुद का कुछ नहीं है। कॉपीराइट हैं। नए गायक पैसा कमाना चाहते हैं। म्यूजिक डायरेक्टर तथा गायकों की प्रतिस्पर्धा में क्वालिटी बिगड़ गई है। म्यूजिक में एक शक्ति होती है। गाना या संगीत अच्छी चीज है। संगीत के प्रति जानवर में भी फिलिंग होती है।
चाय का दौर
किशोर दा बातचीत के सिलसिले को विराम देते हुए बोले- अब थोड़ी चाय हो जाए और चौकीदार को बुलाकर कहा, देखो चाय लाओ और हाँ ध्यान रखना कड़क मीठी लाना। इसी बीच उनके भाई अनूप कुमार भी आ गए थे ।चाय की चुस्कियां लेने के दौरान उनसे पूछा कि लोग आपको कंजूस कहते हैं तो उन्होंने कहा- देखो, जीवन में मेरी एक बात गांठ बांध लेना। पैसा है तो सब है। दुनिया में कोई किसी का दोस्त नहीं। भलाई करना मतलब गाली लेना है। मैंने जिसकी भी मदद मि उसने मुझे कभी उपकृत नहीं किया। सही भी है,,, याद करते उन्होंने गुनगुनाया ,, पांच रुपैया बारह आना,,।
आज किशोर दा खंडवा वाले हमारे बीच नहीं हैं लेकिन हवाओं में, दूर गगन की छाँव में उनके घुले स्वर,,, हवाओं पे लिख दो हवाओं के नाम,,,
सुनाई देते रहेंगे। सुरों के बेजोड़ बादशाह को सादर नमन।
कैसे किशोर होगी किशोर दा की जन्म स्थली
किशोर के गाए गाने गाकर तो सभी अपने को किशोरवय में पाते है लेकिन किशोर दा की खंडवा स्थित जन्म स्थली जिसका उपेक्षा के कारण दिन प्रतिदिन क्षरण बदस्तूर जारी है यह बहुत दुखद है। इसे सहेजना, संवारना और यादगार बनाना केवल खंडवावासियों और किशोर प्रेमियों का ही नहीं बल्कि समस्त संगीतप्रेमियों का भी कर्तव्य है।
भारत रत्न दिए जाने की मांग
कोरोना संक्रमण के कारण 4 अगस्त को किशोर कुमार के खंडवा स्थित समाधि स्थल पर किसी भी प्रकार के आयोजन पर प्रशासन ने प्रतिबंध लगाया है। खंडवा के सदभावना मंच के अध्यक्ष श्री प्रमोद जैन ने प्रतिबंध से मुक्त कर आयोजन की अनुमति भी चाही है। उन्होंने मंच के माध्यम से किशोर कुमार को भारत रत्न देने की भी मांग की है। उनके अनुसार कोरोना संक्रमण की रोक में अनिवार्य मास्क भी किशोर मास्क के नाम से जैन पेट्रोल पंप पर निःशुल्क वितरण की व्यवस्था नागरिकों के लिए की है।