साल 2025 में भी आम आदमी को महंगाई से राहत मिलने की उम्मीद नहीं दिख रही है। गेहूं-आटा और सब्जियों के बाद अब चाय, साबुन और स्किन क्रीम जैसे उत्पादों की कीमतें 5 से 20 फीसदी तक बढ़ सकती हैं। दरअसल, एफएमसीजी कंपनियां सीमा शुल्क और उत्पादन लागत में वृद्धि की भरपाई के लिए अपने उत्पादों के दाम बढ़ा रही हैं।
इन बढ़ते दामों की प्रमुख वजह पाम ऑयल को माना जा रहा है, जिसका उपयोग खाद्य तेलों सहित कई उत्पादों में किया जाता है। पाम ऑयल की कीमतों में तेजी का असर देश की महंगाई पर गहराई से पड़ता है। सितंबर 2024 में सरकार ने आयात शुल्क में 22 फीसदी की बढ़ोतरी की थी, जिससे पूरे साल में कुल 40 फीसदी तक वृद्धि हुई। इससे कंपनियों की उत्पादन लागत में इजाफा हुआ है। पाम ऑयल का उपयोग केवल खाद्य तेलों तक सीमित नहीं है; यह कुकिंग ऑयल, बेकरी उत्पादों, प्रोसेस्ड फूड, साबुन, शैंपू, ब्यूटी प्रोडक्ट्स और बायोडीजल जैसे कई उत्पादों में भी किया जाता है।
पाम ऑयल महंगा, खाने के तेल पर पड़ेगा सीधा असर
विशेषज्ञों का मानना है कि पाम ऑयल की कीमतों में बढ़ोतरी का सीधा प्रभाव आम आदमी की जेब पर पड़ता है। पाम ऑयल महंगा होने से सभी प्रकार के खाने के तेलों की कीमतें बढ़ जाती हैं, क्योंकि इसका उपयोग खाद्य तेलों के उत्पादन में बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसके अलावा, बिस्कुट, नूडल्स जैसे अन्य खाद्य उत्पाद भी महंगे हो जाते हैं। पाम ऑयल की कीमतों में वृद्धि के कारण इन सभी वस्तुओं के दाम फिर से बढ़ सकते हैं, जैसा कि कुछ महीनों पहले देखा गया था।
खाने के तेल से लेकर अर्थव्यवस्था तक, पाम ऑयल के प्रभाव का विश्लेषण
पाम ऑयल को सोया तेल से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है, लेकिन इसके बावजूद इसकी मांग वैश्विक स्तर पर अधिक बनी रहती है। बाजार में विभिन्न प्रकार के तेल उपलब्ध होने के बावजूद, पाम ऑयल का उपयोग सबसे ज्यादा होता है। यही कारण है कि खाने के तेल की कीमतें अक्सर इसके दाम बढ़ने के साथ ऊपर जाती हैं।
इसके अलावा, पाम ऑयल का उपयोग खाद्य पदार्थों के साथ-साथ बायोफ्यूल के उत्पादन में तेजी से बढ़ रहा है, जिससे भविष्य में इसकी कीमतों में और वृद्धि हो सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि पाम ऑयल के दामों में लगातार हो रहे उतार-चढ़ाव का भारतीय अर्थव्यवस्था पर सीधा असर पड़ता है। इससे न केवल महंगाई बढ़ रही है, बल्कि ग्राहकों के खर्च और औद्योगिक उत्पादन की लागत में भी इजाफा हो रहा है। अगर सरकार ने इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए, तो महंगाई का दबाव लंबे समय तक बना रह सकता है।